भारत का नक्सली और इंडिया का आई पी एल
झारखण्ड के पूर्व विधानसभा स्पीकर इन्दर सिंह नामधारी ने कभी राज्य की सरकार को यह सुझाव दिया था कि एक साल तक झारखण्ड मे सारे विकास के काम रोक दिए जाय .सरकार और मीडिया मे इसका माखौल उड़ाया गया था . नामधारी जी की यह दलील थी की आदिवासी इलाके में विकास के नाम पर जो पैसे का बंदर बाट हो रहा है उसमे सबसे ज्यादा फायदा नक्सालियों को ही हो रहा है .सरकार की हर योजना में नक्सलियों का ३० फिसद देना तय तय है .यानि नक्सली आन्दोलन को बढ़ने से रोकना है तो तो उसके फंडिंग के इस सुलभ तरीके को रोकने होंगे .सरकारी पैसा ,सरकारी हथियार लेकिन नक्सलियों के निशाने पर वही सरकार .यानी पैसे उगाहने के लिए नक्सलियों ने कमोवेश वही प्रबंध किया है जो तरीका आई पी एल के धुरंधरो ने राजनेताओ के साथ मिलकर किया है .
कभी आई पी एल के बारे मे गृहमंत्री चिदम्बरम ने कहा था कि कुछ चलाक लोगों ने क्रिकेट को मनोरंजन के चासनी मे डाल कर इसे एक फ़ॉर्मूला बना दिया है .लेकिन नक्सलियों के कुसल प्रबंधन को समझने मे वे अब तक नाकाम रहे है .
दंतेवाडा नक्सली हमले से आह़त गृह मंत्री ने एक बार फिर नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई है .पिछले महीनों मे इस तरह की बैठके कई बार हो चुकी है लेकिन इस बार खास यह है इन राज्यों के नक्सल प्रभावित जिलों के सांसदों को भी इस बैठक मे बुलाया गया है .झारखण्ड के एक सांसद इन्दर सिंह नामधारी कहते है ' उन्होंने पिछले महीनो मे गृह मंत्री को चार चिठिया लिखी है ,हमने यह मांग की थी कि नक्सल प्रभावित जिले पलामू और चतरा मे सड़क निर्माण का काम बोर्डर रोड ओर्गनिजसिओन यानि बी आर ओ को दिया जाय .नामधारी का मानना है कि इन इलाके मे सड़के नक्सालियों की मर्जी के बगैर बन नहीं सकती .अपने इलाके के एक सड़क निर्माण को लेकर जब उन्होंने एक ठेकेदार से सवाल किया तो ठेकेदार का जवाब था आर्डर नहीं मिला है यानी ये आर्डर यहाँ ड़ी एम् के ऑफिस से नहीं आते ये आर्डर जंगल से आते है .वो भी ३० फिसद हिस्सा लेने के बाद .नामधारी बताते है रोड कैसा बने ये भी तय नाक्साली करते है .झारखण्ड के कई इलाके मे पक्की सड़कों के नीचे ,तारकोल डाले हुए सड़कों के नीचे मिले बारूदी सुरंग चौकाने वाले है .यानी पैसा सरकार का लेकिन नक्सली ठेकेदारों की मदद से इन इलाकों में सुरक्षाबलों के लिए मौत का कुआँ खोद रहे है . केंद्र सरकार कल भी नक्सली समस्या को कानून व्यवस्था की समस्या मान कर राज्यों को आगे कर रही थी कमोवेश वही सूरत आज भी है ,
दंतेवाडा के हमले के बाद अपने गृह मंत्री का सुर और ताल दोनों बदल गए है .सीधे जंग की बात करने वाले गृह मंत्री इनदिनों यह मानने लगे है कि नक्सली हमारे दुश्मन नहीं है .अचानक बचाव की मुद्रा मे आचुके गृहमंत्री के हालिया बयानों के पीछे कई वजह है .खुद उनकी पार्टी कांग्रेस के कई आला लीडरों ने खासकर दिग्विजय सिंह ,मणि शंकर अय्यर और अजीत जोगी ने सार्वजानिक तौर पर चिदम्बरम के स्टायल और नीतियों को जमकर लताड़ा है .यानि इन नेताओं ने चिदम्बरम के स्टायल को कांग्रेस संस्कृति के अनुरूप नहीं पाया है .हैरानी की बात तो यह है कि नक्सल के किसी भी मामले को लेकर सार्वजानिक रूप से बात करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय ने सिर्फ गृह मंत्री को अधिकृत किया है .पी एम् ओ से इस आशय के पत्र भी निर्गत किये गए थे .लेकिन फिर भी नक्सल समस्या को लेकर भ्रान्तिया फैलाई जा रही है और कांग्रेस आलाकमान चुप है तो मना जायेगा की यह कांग्रेस के अंदर सत्ता के समीकरण की यह सियासी चाल है .बाटला हाउस एन्कोउन्टर मे मारे गए पुलिस ऑफिसर को सरकार मरणोपरांत सम्मानित करती है ,इस साजिश मे लगे गुमराह नौजवानों की धड पकड़ मे पुलिस आज भी लगी हुई है लेकिन यही दिग्विजय सिंह पुलिस की करवाई और बाटला हाउस एन्कोउन्टर पर सवालिया निशान लगाते है .
दर असल जो वोट की सियासत इस मामले मे है वही सियासत नक्सलियों के मामले मे भी है .छः साल पहले यु पी ऐ के शासन मे मुल्क के ४५ जिले नक्सली आन्दोलन से प्रभावित थे आज उसी कांग्रेस के नेतृत्वा वाली यु पी ऐ सरकार के दौर मे देश के २१० जिलों पर नक्सालियों का दवदबा कायम है .यानी ७ राज्यों के लगभग ३२० विधान सभा क्षेत्रों और ९४ लोकसभा क्षेत्रों मे वोट के सारे समीकरण को नक्सली बना और बिगाड सकते है जाहिर है कांग्रेस पार्टी ऐसा रिस्क कतई नहीं लेना चाहेंगी
देश के प्रधानमंत्री नक्सली समस्या को आंतरिक सुरक्षा के मामले मे सबसे बड़ा खतरा मानते है लेकिन आंतरिक सुरक्षा को चुनौती देने वाले नक्सलियों पर झारखण्ड मे तब तक कारवाई रोकी रखी गई जबतक वहां चुनाव संपन्न न हो गए .यानी अगर केंद्र सरकार विधान सभा चुनाव के कारण राष्ट्रपति शासन के बावजूद ग्रीन हंट अभियान नहीं चला सकी तो आज वही केंद्र सरकार शिवू सोरेन से कैसे अपेक्षा कर सकती है कि वे नक्सलियों के खिलाफ जंग का बिगुल बजाय .जबकि यह बात हर कोई जानता है कि शिबू सोरेन को झारखण्ड की सत्ता दिलाने मे नक्सालियों की अहम् भूमिका रही है आज अगर बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार गृह मंत्री चिदम्बरम को नशिहत दे रहे है तो इसकी वजह बिहार का आगामी चुनाव ही है . चुनावी नैया पार उतरने के लिए नितीश कुमार कोई रिस्क नहीं लेना चाहते है .आज अगर नक्सली यह एलान कर रहे है भारत पर उनके कब्जे का लक्ष्य २०५० है तो वे कोई दिवा स्वप्न नहीं देख रहे है बल्कि उसके लिए उसने जमीन भी तैयार की है
दंतेवाडा के नक्सली हमले मे ७६ जवान मारे गए .हादसे की जांच करने गयी केंद्र की टीम पर भी नक्सालियों ने .फायरिंग की लेकिन आज तक एक भी नक्सली नहीं पकड़ा गया .१००० की तादाद मे जमा होकर नक्सली सुरक्षाबलों पर हमला करते है और तुरंत बिलीन भी हो जाते है तो इसका अर्थ साफ़ है कि नक्सलियों को स्थानीय समर्थन प्राप्त है .दिल्ली मे बैठे बुद्धिजीवी यह दावा करते है कि ग्रीन हंट अभियान आदिवासियों को जंगल से भगाने के लिए चलाया जा रहा है ताकि खनिज सम्पदा पर उद्योगपतियों का कब्ज़ा हो सके .जाहिर है गरीबी और भूख से पीड़ित आदिवासियों को नक्सली कुछ ऐसी ही भ्रान्ति फैला कर अपने गिरोह मे शामिल किया है .खनन और खनिज उद्योग की वसूली से नाक्साली हर साल १५०० करोड़ रूपये से ज्यादा फंड इकठा कर रहे है लेकिन फिर भी उसे बेसहारों का मशीहा कहा जा रहा है .
भारत और इंडिया के बीच बटा यह मुल्क भ्रष्टाचार के आकंठ मे इस कदर डूबा हुआ है कि हर किसी ने अपने हिसाब से उर्बर जमीन तैयार की है .इंडिया के लोगों ने अपने लिए लूट और ऐयाशी का जरिया आई पी एल को बनाया है तो नक्सलियों ने ऐसा ही आई पी एल गरीब भारत को बनाया है .गृह मंत्री के मजबूत इरादे को शक की नज़र से नहीं देखा जा सकता .उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है लेकिन अगर वे इस साजिश को ख़तम कर पाते है तो इतिहास मे वे इंदिरा गांधी के बाद पहले नेता होंगे जिन्हें लोग हर मुश्किल के दौरान याद करेंगे .लेकिन यह इतिहास कैसा बने यह भी तय उन्ही को करना है .
देश के प्रधानमंत्री नक्सली समस्या को आंतरिक सुरक्षा के मामले मे सबसे बड़ा खतरा मानते है लेकिन आंतरिक सुरक्षा को चुनौती देने वाले नक्सलियों पर झारखण्ड मे तब तक कारवाई रोकी रखी गई जबतक वहां चुनाव संपन्न न हो गए .यानी अगर केंद्र सरकार विधान सभा चुनाव के कारण राष्ट्रपति शासन के बावजूद ग्रीन हंट अभियान नहीं चला सकी तो आज वही केंद्र सरकार शिवू सोरेन से कैसे अपेक्षा कर सकती है कि वे नक्सलियों के खिलाफ जंग का बिगुल बजाय .जबकि यह बात हर कोई जानता है कि शिबू सोरेन को झारखण्ड की सत्ता दिलाने मे नक्सालियों की अहम् भूमिका रही है आज अगर बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार गृह मंत्री चिदम्बरम को नशिहत दे रहे है तो इसकी वजह बिहार का आगामी चुनाव ही है . चुनावी नैया पार उतरने के लिए नितीश कुमार कोई रिस्क नहीं लेना चाहते है .आज अगर नक्सली यह एलान कर रहे है भारत पर उनके कब्जे का लक्ष्य २०५० है तो वे कोई दिवा स्वप्न नहीं देख रहे है बल्कि उसके लिए उसने जमीन भी तैयार की है
दंतेवाडा के नक्सली हमले मे ७६ जवान मारे गए .हादसे की जांच करने गयी केंद्र की टीम पर भी नक्सालियों ने .फायरिंग की लेकिन आज तक एक भी नक्सली नहीं पकड़ा गया .१००० की तादाद मे जमा होकर नक्सली सुरक्षाबलों पर हमला करते है और तुरंत बिलीन भी हो जाते है तो इसका अर्थ साफ़ है कि नक्सलियों को स्थानीय समर्थन प्राप्त है .दिल्ली मे बैठे बुद्धिजीवी यह दावा करते है कि ग्रीन हंट अभियान आदिवासियों को जंगल से भगाने के लिए चलाया जा रहा है ताकि खनिज सम्पदा पर उद्योगपतियों का कब्ज़ा हो सके .जाहिर है गरीबी और भूख से पीड़ित आदिवासियों को नक्सली कुछ ऐसी ही भ्रान्ति फैला कर अपने गिरोह मे शामिल किया है .खनन और खनिज उद्योग की वसूली से नाक्साली हर साल १५०० करोड़ रूपये से ज्यादा फंड इकठा कर रहे है लेकिन फिर भी उसे बेसहारों का मशीहा कहा जा रहा है .
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टिप्पणियाँ
baut achchhaa likhaa hai | sachmuch desh corruption me doob gayaa hai |
isee par yah link dekheM , aap ke vichaaron kaa intajaar rahegaa |
http://mireechika.blogspot.com/2010/04/blog-post_23.html
yadi aap anumat de to ismein se kuch article apne news portal http://www.samaydarpan.com sath hi iska use print edition samvad darpan ke liyen bhi karna chaunga
Krishna G Mishra
editor of samaydarpan.com