क्या कश्मीर भारत के हाथ से फिसल रहा है ?

क्या कश्मीर के नौजवाब स्टोन ऐज में लौट गए हैं  ? क्या अलगाववादी ग्रुप और आतंकवादी  ही इन पथरवाज नौजवानो के आदर्श  हैं ? क्या पाकिस्तान ही इन गुस्साए नौजवानो का लक्ष्य है ? शायद नहीं !  फिर इनका मकसद क्या है ?श्रीनगर में कुछ सन्यासी सी आर पी एफ  के जवानों पर पथ्थरवाजो ने जिस कदर अशोभनीय हरकत की है उससे पूरा देश गुस्से में है। कमाल हसन से लेकर फरहान अख्तर तक गौतम गंभीर से लेकर वीरेंदर सेहबाग तक हर कोई इससे आहत है। लेकिन रियासत के दो पूर्व मुख्यमंत्री इन पथ्थरवाजो के साथ खड़े दिख रहे हैं। यानी एक तरफ जज्वात है तो दूसरी तरफ सियासत। लेकिन इस इस दौर में कश्मीर में सिर्फ जज्वात उफान पर है सियासत चाहे मुख्यधारा की पार्टी की हो या हुर्रियत की, बौनी साबित हुई है। क्या इन पथरवाजो के साथ ,एन सी और पी डी पी के लोग नहीं हैं ?

जज्बाती भाषण देश के  गृह मंत्री भी दे  रहे हैं क्योकि कानून व्यवस्था का मामला राज्य का है ,उसी जज्वात में कश्मीर का हर नेता अपने अपने कॉन्स्टिचुएंसी को सहला रहे है ,उसे भरमा रहे हैं। तो क्या कश्मीर भारत  हाथ से फिसल रहा है? मैं कहता हूँ ,यह दोगली बात वही कर रहे है जिन्होंने  कश्मीर में हिंसा के नाम पर अबतक भरपूर लूटा है। 

कौन है ये कश्मीरी नौजवान जिन्होंने इस्लाम को जाना नहीं लेकिन उन्हें इस्लाम पर खतरा नज़र आ रहा है , उनके साथ जो पत्थर नहीं उठा रहा वह काफ़िर है ? छोटे छोटे बच्चो के हाथ पत्थर पकड़ा कर वो किस्से बदला ले रहे है ?   हम क्या चाहते आज़ादी जैसे चंद जुमले उन्हें   इसलिए याद है क्योंकि उन्हें  पता है कि अब्बाजान की जबतक कमाई है तबतक भोजन और अच्छे लिबास मिल रहे  है।  हुर्रियत के हर छोटे बड़े लीडरान के बच्चे  या तो बड़े मुलाजिम है या बड़ा कारोबारी ,फिर इस पथरवाजो की टोली में कौन लोग हैं । यकीन मानिये इन हुल्लरवाजो का कोई आदर्श नहीं है ,मिलिटेंसी के अवशेष पर खड़ा हुआ यह एक सिंडिकेट है जो हर जगह अलग सरगनाओं से संचालित होता है। कही इनका सरगना जमाते इस्लामी है तो कही पी डी पी कहीं एन सी बेचारे हुर्रियत के लीडर तो मुफ्त में बदनाम हो रहे है और सरहदपार से इनाम पा रहे हैं। कश्मीरियों के दर्द की बात करने वाले फ़ारूक़ अब्दुल्लाह और ओमर अब्दुल्लाह को यह याद दिलाने की जरूरत है कि मिलिटेंसी के दौर में वे पूरा खानदान लन्दन क्यों भाग खड़े हुए थे? और हालत बदलते ही सत्ता सँभालने आ गए।

कश्मीर के लोगों को याद है पाकिस्तानी आतंकवादी मेजर मस्त गूल ने जब मशहूर चरारे शरीफ को जलाया था ,तब भी उसे सरहद पार करने के लिए सेफ पैसेज दिए गए थे , 1993 में जब श्रीनगर के पाक  हजरतबल मस्जिद में आतंकवादियों ने कब्ज़ा जमा लिया था ,उन्हें 15 दिनों तक क्यों वी आई पी ट्रिटमेंट दिया गया? दोहराने की जरूरत नहीं तब किसकी सरकार थी। याद दिलाने की जरूरत यह है कि आज भी गुमराह नौजवान इन्ही कुछ हरकतों से भारत विरोधी जज्वात को हवा देते हैं कल मस्तगुल चरारे शरीफ को जलाकर किया था और आज कुछ बद्तमीज सी आर पी ऍफ़ के जवानो पर लात मार कर जज्वात भड़का रहे  हैं।  लेकिन देश को भूलना यह भी नहीं चाहिए  कि पवित्र जगहों की बेहुरमती जबतब आतंकवादियों ने की है लेकिन यह देश हमेशा उसका भव्य निर्माण कराया है। 
याद दिलाने की जरूरत यह भी है कि अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में मिलिटेंसी इससे ज्यादा गंभीर थी। अस्सेम्ब्ली और संसद अटैक उन्ही के दौर में हुआ था लेकिन वाजपेयी ने कश्मीर से अपना तार कभी टूटने नहीं दिया। जो लोग कहते थे अब्दुल्लाह के बिना कश्मीर नहीं ,बिना रिगिंग के वोट नहीं वहा फ्री एंड फेयर इलेक्शन करवाकर गैर अब्दुल्लाह फैमिली के शख्स को शासन में आने का मौका फ़राहम कराया। हिज़्ब के टॉप कमांडर मजीद डार को बातचीत के टेबल पर लाया और तो और हुर्रियत लीडरान अपनी नुमाइंदगी साबित करने के लिए चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने लगे। ये कश्मीर है जहाँ  लोग एक दिन पहले 85 फीसद पोलिंग करके हुर्रियत के बंद काल को मजाक बना देते हैं तो अगले दिन लाल चौक पर खड़े होकर हम क्या चाहते आज़ादी के नारे में शामिल हो जाते हैं।  
कश्मीर में मौजूदा लीडरशिप फेल हो चूका है ,इस सच को स्वीकारे ,वहां लोग अब अब्दुल्लाह ,मुफ़्ती से भी आगे कोई अपना लीडर खोज रहे हैं तो उन्हें मुख्यधारा में आने का मौका दे। कश्मीर का आतंकवाद और पथरवाज महज चार जिलों की कहानी है उसे पुरे जम्मू कश्मीर से न जोड़े। लदाख और कारगिल हिल डेवलपमेंट कौंसिल बनकर तेजी से विकास कर रहे  है तो यह सुविधा और क्षेत्र को क्यों नहीं ?क्यों हर बार राज्य का  आधा बजट डल लेक और वुलर लेक को साफ़ करने में खर्च हो जाता  है .यकीन मानिये जिस देश का नेतृत्व सर्जिकल स्ट्राइक कराकर सरहद पार घुस कर दशतगर्दों पर चोट कर सकता है उसके लिए चंद पथरवाजो से निपटना मुश्किल नहीं है लेकिन जिन घोड़ों को कश्मीर में दौरा कर पी एम मोदी मसले का हल तलाश रहे है वह घोडा अब नया सवारी मांग रहा है। .. विनोद मिश्रा 

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