आर्टिकल 370 की विदाई और कोऑपरेटिव बैंक के पूर्व चेयरमैन के खिलाफ एंटी करप्शन ब्यूरो का लुकआउट नोटिस : फर्क पड़ता है

याद कीजिये गृह मंत्री अमित शाह का संसद में दिया गया भाषण। उन्होंने कहा था कि आर्टिकल 370 की विदाई मतलब करप्शन और आतंकवाद पर हमला। खास बात यह है कि करप्शन का मामला जम्मू कश्मीर में तक़रीबन हर बार चुनावी  मुद्दा बनता है लेकिन आजतक किसी भ्रष्टाचारी,नेता ,मुलाजिम पर कार्रवाई नहीं हुई। लेकिन  पहली बार  जम्मू कश्मीर के एंटी करप्शन ब्यूरो ने जम्मू कश्मीर कोऑपरेटिव बैंक के पूर्व  चेयरमैन के खिलाफ  लुकआउट नोटिस जारी किया है। ऐसा पहली बार हुआ है 223  करोड़ रूपये की धोखाधड़ी और लूट के लिए बैंक के  पूर्व चेयरमैन मोहमद शफी डार की सुचना देने वाले को इनाम देने की बात कही गयी है। यानी सिस्टम में करप्शन  में  बर्दास्त नहीं की जायेगी 

मालूम हो कि मोहम्मद शफी डार ने 223 करोड़ रुपया का लोन  कई फेक कॉपरेटिव सोसाइटी को सैंक्शन किया था। पैसे के बंदरबाट की कश्मीर यह पहली कहानी नहीं है ऐसे सैकड़ो फण्ड गवन और लूट के मामले आये होंगे कई पर ऍफ़ आई आर भी दर्ज हुए लेकिन सजा आजतक किसी को नहीं हुई है। वजह करप्शन के खिलाफ सख्त कानून और राजनितिक इच्छाशक्ति की रही है। 
आर्टिकल 370 हटने के बाद  सरकार ने 106 केंद्रीय कानून को जम्मू कश्मीर में लागु किया  था ,उसमे प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट भी  था जिसने आज कश्मीर में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कारगर हथियार दे दिया है। यानी जो लोग कहते थे आर्टिकल 370 हटने से क्या फर्क पड़ा वे आज अखबारों में एक पूर्व चेयरमैन के फोटो के साथ जानकरी देने वाले को इनाम दिया जाएगा की सुचना से  फर्क समझ सकते हैं। 
हैरानी के बात यह है कि जम्मू कश्मीर को दूसरे राज्यों से कहीं ज्यादा फण्ड और पैकेज दिया गया। पर्वतीय प्रदेश होने के कारण इसे दी गयी  केंद्रीय मदद भी अनुदान में आता था जबकि बिहार जैसे राज्यों के लिए यह कर्ज होता था। लेकिन कश्मीर में केंद्रीय फण्ड की जांच  सी ए जी से नहीं होती थी। केंद्रीय कानून को  जम्मू कश्मीर में नहीं लागू होने से  फण्ड का निश्तारण अक्सर फाइलों में हो जाती थी जमीन पर ऐसा कम  ही मौके मिलते थे जो प्रोजेक्ट जमीन पर उतरती थी। याद कीजिये पिछले 20 वर्षों में डल लेक और वुलर लेक को साफ़ करने में 11 000 करोड़ से ज्यादा की रकम खर्च हुई है लेकिन एशिया का सबसे बड़ा लेक वुलर एन्क्रोचमेंट के कारण  अब शायद कागजों में मिले डल लेक में वैसे ही श्रीनगर का कचरा जा रहा है। और लोग उसके दायरे को छोटा कर रहे है। पुनर्वास के लिए भारत सरकार ने करोडो रूपये खर्च किये है लेकिन डल लेक के अंदर एक बड़ी आबादी बैठी हुई है। 

अपने कश्मीर रिपोर्टिंग के दौरान एक दिन अलगाववादी नेता   शब्बीर शाह के यहाँ  मुझे जाना हुआ। लोकल मीडिया  इन्हे कश्मीर का मंडेला कहता था। मैंने उनकी गली में आकर सिर्फ उत्सुकता वश शब्बीर शाह का घर पूछा ,उसने कहा इस इलाके में जिसका घर  सबसे बड़ा हो वही शब्बीर शाह का है। श्रीनगर के लोगों ने सोपोर के प्राइमरी स्कूल के एक टीचर सैयद अली शाह गिलानी को भी 30 साल पहले देखा था और आज उनका भव्य किला नुमा घर भी देख रहा है। कश्मीर के बड़े अलगाववादी लीडरों का आलिशान घर देश के कई शहरों में है लेकिन आजतक इनलोगों ने 1  रुपया इनकम टैक्स नहीं भरा है। गिलानी साहब पर 30 साल से टैक्स का मामला चल रहा है। शाबिर शाह के ग्रीन बेल्ट प्रतिबंधित एरिया में भव्य थ्री स्टार होटल ,ऐसे कई पूर्व मंत्रियों  के आलीशान घर और कारोबार है  लेकिन पहाड़ों बसे गुज़र बकरवालों के घर और उनकी दशा  नहीं बदले। ,वादी में किसानो और मजदूरों की हालत नहीं बदली क्योंकि यहाँ 1 रुपया का 25 पैसा भी खर्च नहीं हुआ। लेकिन आर्टिकल 370 हटने के बाद क्या फर्क पड़ा वो आज गुज्जर वकारवालों को भी देख आये  जिनकी जिंदगी में क्या बदलाव ए हैं। आज एन आई ए  की सक्रियता बढ़ने से हुर्रियत नेताओं के फंडिंग बंद पड़े हैं। 

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