किसका भारत ?
अभी तो ये अंगडाई है बाकि अभी लड़ाई है । बचपन से इस नारे को समझने का हमारा प्रयास कामयाब नहीं हो पाया था लेकिन मौजूदा गुर्जर आन्दोलन ने इसके भाव को स्पष्ट कर दिया है । पूरे देश मे इनदिनों गुर्जर आन्दोलन के अलावे कोई मुद्दा ही नहीं बचा है । राजस्थान हो या हरियाणा या फ़िर उत्तरप्रदेश इन आन्दोलनकारियों का एक ही नारा था ' जो हमसे टकरायेगा चूर चूर हो जाएगा , ये चूर चूर की बात सरकार पर तो कोई असर नहीं कर पाई लेकिन बेचारी आम जनता जरूर चूर चूर हो गई। इस आन्दोलन के दौरान अगर आप कही बंद या फ़िर जाम के शिकार हुए हों तो मेरी तरह आप ने भी ये जरूर ऑफर किया होगा की मेरे हिस्से का आरक्षण आप लेलो लेकिन भगवान् के लिए लोगों को आने जाने की सहूलियत देदो । यह देश गुर्जरों का भी उतना ही है जितना मिनाओं का जितना ठाकुरों का उतना ही पठानों का उतना ही पंडितो का लेकिन ये अलग बात है की सत्ता की दलाली मे कभी मीना धोके से आरक्षण का कोटा पा लेता है । मीना के यह चालाकी गुर्जरों ओ बी सी से और नीचे आने के लिए प्रेरित करता है । ये इस देश मे ही सम्भव है की आर्थिक रूप से जो तबका ज्यादा सम्प्पन है वही अपने को सामजिक रूप से पिछडे होने की जमकर वकालत करते हैं । एक हफ्ते पहले आतंकवादी कारवाई से राजस्थान दहल गया था । अभी जख्म भरे भी नहीं थे की गुर्जरों ने आरक्षण का नया मर्चा खोल दिया इस खौफनाक आन्दोलन मे ५० से ज्यादा लोग मारे गए करोड़ों का नुकसान हुआ नतीजा आख़िर कर बातचीत और कमिटी गठन पर ही खत्म होगा । ये अलग बात है की इस दौर मे मीडिया को बैठे बिठाये सेंसेस्नल , थ्रिल की स्टोरी मिल गया , क्लिमेक्स कभी हिंसा पर खत्म होता था तो कभी शांत नीरवता पर । गुर्जर आन्दोलन में उतेजित लोगों की लाइव प्रतिक्रिया दिखाकर नेताओं के जहर उगलते भासन दिखाकर पता नही हम किसका भला कर रहे थे । अगर गुर्जर आन्दोलनकारी आपनी लाठी के बदौलत आपनी बात मनवाने के लिए तैयार है तो मीडिया भी तथाकथित बोलने की आजादी के नाम पर हद से हद पार कर रहा है । पूरे हफ्ते मे क्या इस देश में मात्र दो ही घटना हुए है लेकिन ख़बर या तो आरुसी की है या गुर्जरों की । आज भी सैकडो आरुशी बे मौत मारी जा रही है लेकिन गाव की ये वारदात कभी खबर नही बनती। क्यों की उन ख़बरों मे सेक्स नही है रोमांस नही है और ओ आरुशी जैसी सभ्रांत घर की बेटी नही है , इसलिए उसमे कोई कानूनी पेंच नही है। सजा सुनाने के लिये एक दरोगा या गाव का दवंग ही काफी है। इसमे कोई दो राय नही की हम बाजार का एक हिस्सा है लेकिन इसका मतलव यह कदापि नही हो सकता लोगों की भावना को हम आलू बिगन तरह बेचें । गुर्जर नेता जब चाहे दिल्ली से लेकर राजस्थान की गति विधि को रोक सकते हैं । मीडिया कुछ ऐसा ही सलूक कर रहा है । कह सकते है की देश चलाने की जिनकी जिम्मेदारी हैं वे मीडिया और लाठी से इतने अभिभूत हैं की आम लोगों की तरह ओ भी अपनी बेचारगी ही दिखा रही है शायद इस भ्रम मे की सत्ता की जुगत मे इसका कभी किया जा सकता है ।
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