इस सियासत का कहीं अंत नहीं

जीले जीले पाकिस्तान , कश्मीर बनेगा पाकिस्तान .......... जैसे नारे देने वाले लोग कश्मीर में लगभग हाशिये पर चले गए थे । कश्मीर की बदली सूरत में एक नई सोच विकसित हुई थी । भारत के प्रति कश्मीर में बदलते रुख ने पाकिस्तान समर्थित जमातों और आतंकवादी संगठनों को हासिये पर ला दिया था । कश्मीर की बदली सूरत की कामयाबी के श्रेय लेने के लिए कई लोग आगे आ सकते हैं लेकिन सबसे बड़ी कामयाबी भारत के लोगों को जाना चाहिए जिन्होंने पुरे धैर्य के साथ हुकुमतो के उल्टे सीधे फैसले को नजरंदाज किया है । नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक कश्मीर पर उनके लिए गए निर्णयों पर चर्चा के लिये यह न तो उपयुक्त जगह है और न ही उपयुक्त वक्त।
मोजुदा समय में अमरनाथ श्रायण बोर्ड के एक फैसले को लेकर शुरू हुए हिंषक झड़प ,को देखें तो आप कह सकते हैं कि कश्मीर आज भी वहीँ है जहाँ ९० में थी । कश्मीर में पत्रकारिता में सक्रिय एक पत्रकार से मैंने इसकी वजह जाननी चाही तो उनका भी वही जवाब था जो शैयद अली शाह गिलानी और यासीन मालिक का था । यानि कश्मीर में यह बात लोगों के दिलो दिमाग में बैठ गई है कि अमरनाथ बोर्ड को दिए गए ४० एकड़ जमीन के जरिये यहाँ की muslim अवादी को अल्पसंख्यक बनाने कि साजिश हो रही है । यहाँ यह बताना जरूरी है कि हर साल अमरनाथ यात्रा के दौरान ५ लाख तीर्थ यात्री कश्मीर पहुचते हैं , जाहिर है एक बड़ी आवादी को यह रोजगार का बड़ा जरिया भी है , पहलगाम के कई लोगों ने मुझे बताया था कि वे पुरे साल कि कमाई इस यात्रा से पूरा कर लेते हैं । माता वैष्णो देवी के दरबार में हर साल ६० -७० लाख लोग आते हैं रियासत के खजाना मंत्री भी मानते हैं कि यहाँ के सरकारी खजाने में सबसे ज्यादा पैसा यहीं से मिलता है , लेकिन फ़िर भी अगर यात्री को थोडी सुबिधा कि बात कि जाती है तो कश्मीर में लीडरों को साजिश कि बू आने लगती है ।
इसे मानसिकता पर सवाल उठाये बगैर भी समझा जा सकता है , कश्मीर में पैकेज के बौछार कर के भारत सरकार ने यह जताने कि कोशिश कि है कि समस्या का कारन पिछडापन है । मुल्क के दूसरे राज्यों कि तुलना में सबसे आधिक कश्मीर को फंड दिया जा रहा है , यह जानते हुए भी कि टैक्स देने के मामले में कश्मीर का स्थान सबसे नीचे है । यहाँ तक कि राज्य सरकार के कर्मचारियों के तन्खों कि चिंता भी केन्द्र सरकार को करनी पड़ती है। इसके बावजूद कि प्रति व्यक्ति आय और रहन सहन के मामले में कश्मीर कई राज्यों से ऊपर है । आतंकवाद प्रभावित इस राज्य को रियायत देने में केन्द्र सरकार ने जो दरियादिली दिखाई है ऐसी दरिया दिली नक्सल प्रभावित राज्यों में नहीं दिखाई गई है। वजह सियासत ज्यादा है । रियायत देने कि सियासत ने कश्मीर को मेहमान का दर्जा दे दिया । जम्मू कश्मीर भारत के २८ राज्यों में एक है यहाँ के लोग भी एक अरब आवादी का एक हिस्सा है लेकिन सियासत ने उन्हें यह समझने का मौका नहीं दिया । हिंशा के सहारे या हिंशा का खौफ दिखाकर आज कश्मीर में कुछ लोग आपनी बात मनवाने कि जिद पर अडे हैं । यही जिद कुछ लोग नॉर्थ ईस्ट से लेकर दार्जिलिंग तक दिखा रहे हैं ऐसी हालत में सरकार अगर आपने किसी फैसले को सियासत के दवाब में बदलती है तो वह एक अंतहीन बहस को जनम देती है ।

टिप्पणियाँ

संजय शर्मा ने कहा…
लिखे तो हैं आप बहुत ही सुंदर बात ! कहा जा सकता है सत्यम शिवम् सुदरम है आपकी सोंच .परन्तु पब्लिक जान समझ के कुछ भी समझने को तैयार नही है . आप लिखिए हम पढेंगे .शुभकामना और आभार !
कश्‍मीर क्‍या है नेताओ का अल्‍पसंख्‍यकवाद
वरना कश्‍मीर कोई समस्‍या नही है
जहॉं देशभक्‍तो का खून लगातार बहता हो और गददारो को बिरयानी खिलाई जाये वहॉं हर कोई गददार बनना पसन्‍द करेगा
मुनीश ( munish ) ने कहा…
thanx for a very indepth analysis of situation.

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