नो डील वजह क्या है ?
मनमोहन सरकार की यह दलील है कि अमेरिका के साथ भारत का एतिहासिक समझौता कामयाब होता है तो आने वाले वक्त मे देश पॉवर के मामले में सुदृढ़ हो जाएगा । आप कल्पना कीजिये २ लाख किलो वाट पॉवर की जहाँ जरूरत है वहां उसे १५००० से २०००० हजार किलो वाट से पूरा किया किया जा रहाइस हालत में देश की तरक्की की बात कैसे सोची जा सकती है । लेकिन देश को जहाँ पॉवर कि जरूरत है वही सरकार चलाने वाले लोगों को भी पॉवर कि जरूरत है। ख़बर आई कि परमाणु समझौते नहीं हो पाने से दुखी प्रधानमंत्री ने इस्तीफा देने का मन बना लिया है लेकिन अगले दिन कांग्रेस का कोई प्रवक्ता इसका खंडन करता है । यानि कांग्रेस को भी पॉवर चाहिए ,क्योकि कल हो न हो । तमाम सहयोगी दलों ने भी अभियान चला रखे है समझौते के लिए नहीं सिर्फ़ अपने पॉवर के लिए । सरद पवार कहते हैं कि सरकार नहीं रहेगी तो ऐसे समझोते लेकर वो क्या करेंगे । सोनिया गाँधी को त्याग कि देवी बताने वाले कोंग्रेसी आज खामोश हैं । कहा यह गया था कि सोनिया गाँधी को पॉवर से कोई मोह नहीं है इसलिए उन्होंने प्रधान मंत्री का post ठुकरा दिया । आज सवाल यह पूछ जा सकता है कि परमाणु समझौता अगर देश हित में है तो सोनिया गाँधी आज सत्ता से क्यों मोहित है। सहयोगी दलों कि अपनी समस्या है । लालू यादव , राम विलास पासवान का देश बिहार के कुछ इलाके से बाहर नहीं है । शरद पवार मराठा शेर कहलाने का दावा करते हैं तो करूणानिधि के लिए देश का मतलब तमिलनाडु के आलावा कुछ भी नहीं है जाहिर है देश कि चिंता से उपर इनके लिए अपनी चिंता काफी अहम् है। सवाल यह है कि आज परमाणु समझौते के बारे में कोई चर्चा नहीं कर रहा है , चर्चा का दायरा अमेरिका के समर्थन और खिलाफ में हो रहा है। वामपंथी दलों कि चिंता यह है कि परमाणु समझौते पर सहमती देने से उनके मुस्लिम वोटर नाराज हो जायेंगें । वामपंथियों को यह भ्रम है कि भारतीय मुसलमान अपनी घरेलु समस्या से ज्यादा तरजीह फिलिस्तीन कि समस्या को देते हैं । शायद भारतीय राजनेता मुस्लिम समाज कि मानसिकता को समझने में अबतक नाकाम रहे हैं । इसलिए पॉवर के खेल में सिर्फ़ यहाँ दो ही चीजें प्रचारित कि जाती है कोम्मुनल और सेकुलर । पॉवर के खेल में विपक्ष कि भूमिका भी हास्यास्पद है, वामपंथियों को समझौते से विरोध नहीं है बल्कि अमेरिका से विरोध है । भाजपा को अमेरिका से विरोध नहीं है बल्कि समझोते से है । पार्टी के चोटी के नेता इस समझौते पर कुछ नहीं बोल रहे हैं लेकिन पार्टी के प्यादे समझौते की चिर हरण कर रहे है । शायद इस भ्रम में कि यु पी ऐ में मचे इस घमासान का फायदा उन्हें ही मिल सकता है। युरेनिम , थोरियम, फास्ट ब्रीडर रेअक्टेर पर शुरू हुआ यह मलयुध आज नई सरकार कि संभावनाओं को लेकर तेज हो गया है । अगर यह समझौता देश में बिजली संकट को दूर कर सकता है तो यह कांग्रेस और बी जे पी की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि भारत के निर्माण में साझा भूमिका निभाय । पॉवर में आने के लिए अगर बी जे पी इस डील को बेमौत मरने देती है तो यह मुल्क वामपंथी , शरद पवार, लालू यादव , मुलायम , मायावती को दोषी नहीं ठहरेयेगा क्योंकि इन पार्टियों को देश के साथ कोई सरोकार नहीं । लेकिन जो पार्टी आज राष्ट्रीय पार्टी के रूप में अपने को मर्यादित कर रही है उनका यह दायित्व बनता है देश हित से जुड़े मुदे पर आपसी सहमती बनाये ।
टिप्पणियाँ
एक बार बिजली के नंगे तार को देखकर शक्तिमान टाईप पॉवर लेना चाहा.. पॉवर तो नहीं मिला मगर जोर का झटका जोर से लगा.. :D