खबरिया चैनलों के धमाके
जयपुर के बाद एक बार फ़िर बंगलूर । एक साथ आठ धमाके -- । राजस्थान पुलिश अभी भी धमाके की साजिशों को खंगालने में लगी है । लेकिन अब खबरिया चैनलों के लिए ये ख़बर बासी हो गई है। अचानक बंगलोर के धमाके ने चैनलों की सरगर्मी बढ़ा दी । रक्षा विशेषज्ञों से लेकर आतंकवाद पर नजर रखने वाले पत्रकार तीर कमान के साथ मोर्चे पर डट गए । धमाके के १० मिनट के बाद ही अलग अलग चैनलों से खुलासा होने लगा था की इसमे सिमी का हाथ है , कोई पुख्ता सबूत के तौर पर हुजी का नाम ले रहे थे , किसी ने धमाके की प्रकृति के आधार पर लश्कर और सिमी का हाथ बता रहे थे । लेकिन इस बीच ख़बर ये भी आई की धमाके में सिर्फ़ दो लोगों की मौत हुई है । लो इंटेंसिटी के इस धमाके के रहस्य जानने की तत्परता को हमने कुछ इस तरह समझा । हमारे न्यूज़ डेस्क पर भी थोडी देर तक ख़बर जानने के लिए काफी उत्सुकता थी लेकिन जब उन्हें बताया गया की धमाके में सिर्फ़ एक शहीद हुए हैं उनकी तीब्रता कम हो गई । उनका सवाल था कितने मरे ? ब्यूरो से जवाब आया अभी तक एक के मरने की पुष्टि हुई है । जवाब मिला रहने दीजिये कुछ शॉट्स बना लीजिये ।
धमाके को समझने का ये अपना अपना दृष्टिकोण था । लेकिन खबरिया चैनल के विशेषज्ञों की जिज्ञाषा कहाँ शांत होने वाली थी । पुलिश किसी नतीजा पर पहुंचे इस से पहले पत्रकार बंधुओं ने साबित कर दिया था कि धमाके मे जिलेटिन का इस्तेमाल हुआ था उसके साथ अमोनिया नित्रते का इस्तेमाल किया गया था । किसी ने भारी मात्रा मे आई ई दी के इस्तेमाल की संभावना से इंकार नही की । कई तरह के कार्बोन का नाम लिया जा रहा था जिसमे कई का नाम मैंने पहली बार सुना । ख़बर हर कीमत पर देने वाले लोग या फ़िर सबसे पहले सबसे तेज के दावा करने वाले चैनलों के लिए यह मौका था जिसमे वे अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करना चाहते थे ।
खबरिया चैनल से हटकर सरकार भी अपने अपने मोर्चे पर डटी थी । केन्द्र सरकार यह दावा कर रही थी कि धमाके कि जानकारी राज्य सरकार को पहले दी जा चुकी थी । यानी निकम्मी राज्य सरकार नींद से नहीं जगी । राज्य सरकार इसे अपने खिलाफ साजिश बता रही थी। और धमाके को अंजाम देने वाले इनकी मुर्खता पर कहीं मुस्करा रहे थे । एक दुसरे को नीचा दिखा कर सरकार क्या साबित करना चाहती थी यह बताना मुश्किल है । शायद इन धमाकों में भी सियासत के लिए अपनी जमीन तलासने कि जद्दोजहद जारी थी ।
पिछले वर्षों में विभ्भिन धमोकों मे अब तक ७०००० (सत्तर हजार )से ज्यादा लोग मारे गए है। लेकिन हर बार आई एस आई को कोसकर या फ़िर राज्य सरकार कि नाकामी को बताकर केन्द्र सरकार अपनी जिम्मेबारी से मुक्त हो जाती है। कश्मीर का यह आतंकवाद देश के विभ्भिन हिस्सों में फ़ैल चुका है । सरकार का यह दावा है कि कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों पर काबू प् लिया गया है। लेकिन पिछले तीन सालों में देश में जितने धमाके हुए हैं वे कश्मीर में फिछले २० वर्षों के आतंकवादी वारदातों से कहीं ज्यादा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान से या न जाने कहाँ से आकर आतंकवादी भारत में आकर बोम्ब नही फोड़ जाते हैं । बल्कि देश के कोने कोने मे फैले उनके स्लीपिंग शेल तमाम वारदातों के लिए आधार बनता है। आतंकवादी की गोली या बोम्ब पर किसी मजहब का नाम नहीं लिखा होता है जाहिर है धमाके मे हिंदू , muslim , सिख हर कौम के लोग मारे जाते हैं । लेकिन जब कभी भी आतंकवाद कि बात की जाती है तो इसमें मुसलमान को जोड़ने कि सियासत भी उतनी ही तेजी से होने लगती है। अगर आतंकियों के स्लीपर शेल विभ्भिन शहरों में फैले हुए हैं । तो उसे खोज निकालने में क्या परेशानी है । इस देश को आतंकवादी नुक्सान पहुँचा रहे हैं । तो यह किसी एक खास कोम को फायदा और दुसरे को नुकसान नही पंहुचा रहे हैं। यह पुरे समाज पुरे कॉम , पुरे देश को खोखला कर रहे है।कुछ मुठ्ठी भर लोगों कि सनक को किसी मजहब कि चादर से नहीं ढाका जा सकता है। हम शायद इस बहस से तबतक मुंह चुरा सकते हैं ,जबतक हम इन धमाकों में किसी अजीज को नहीं खोते हैं । सरकार मारे गए परिवार को एक लाख के बदले पाँच लाख रूपये देने का एलान करके अपनी जिम्मेवारी से मुक्त होना चाहती है । ख़बरों के बाजार के लिए धमाके एक बड़ी टी आर पी है । लेकिन हमें यह सोचना होगा कि कल अगर ख़बरों में बंगलोर है तो कभी दिल्ली भी हो सकती है । धमाके में अभी कोई और शहीद हुआ है तो कभी इस फेहरिस्त में हम भी हो सकते हैं , क्योंकि आम आदमी कहीं भी सुरक्षित नहीं है ।
धमाके को समझने का ये अपना अपना दृष्टिकोण था । लेकिन खबरिया चैनल के विशेषज्ञों की जिज्ञाषा कहाँ शांत होने वाली थी । पुलिश किसी नतीजा पर पहुंचे इस से पहले पत्रकार बंधुओं ने साबित कर दिया था कि धमाके मे जिलेटिन का इस्तेमाल हुआ था उसके साथ अमोनिया नित्रते का इस्तेमाल किया गया था । किसी ने भारी मात्रा मे आई ई दी के इस्तेमाल की संभावना से इंकार नही की । कई तरह के कार्बोन का नाम लिया जा रहा था जिसमे कई का नाम मैंने पहली बार सुना । ख़बर हर कीमत पर देने वाले लोग या फ़िर सबसे पहले सबसे तेज के दावा करने वाले चैनलों के लिए यह मौका था जिसमे वे अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करना चाहते थे ।
खबरिया चैनल से हटकर सरकार भी अपने अपने मोर्चे पर डटी थी । केन्द्र सरकार यह दावा कर रही थी कि धमाके कि जानकारी राज्य सरकार को पहले दी जा चुकी थी । यानी निकम्मी राज्य सरकार नींद से नहीं जगी । राज्य सरकार इसे अपने खिलाफ साजिश बता रही थी। और धमाके को अंजाम देने वाले इनकी मुर्खता पर कहीं मुस्करा रहे थे । एक दुसरे को नीचा दिखा कर सरकार क्या साबित करना चाहती थी यह बताना मुश्किल है । शायद इन धमाकों में भी सियासत के लिए अपनी जमीन तलासने कि जद्दोजहद जारी थी ।
पिछले वर्षों में विभ्भिन धमोकों मे अब तक ७०००० (सत्तर हजार )से ज्यादा लोग मारे गए है। लेकिन हर बार आई एस आई को कोसकर या फ़िर राज्य सरकार कि नाकामी को बताकर केन्द्र सरकार अपनी जिम्मेबारी से मुक्त हो जाती है। कश्मीर का यह आतंकवाद देश के विभ्भिन हिस्सों में फ़ैल चुका है । सरकार का यह दावा है कि कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों पर काबू प् लिया गया है। लेकिन पिछले तीन सालों में देश में जितने धमाके हुए हैं वे कश्मीर में फिछले २० वर्षों के आतंकवादी वारदातों से कहीं ज्यादा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान से या न जाने कहाँ से आकर आतंकवादी भारत में आकर बोम्ब नही फोड़ जाते हैं । बल्कि देश के कोने कोने मे फैले उनके स्लीपिंग शेल तमाम वारदातों के लिए आधार बनता है। आतंकवादी की गोली या बोम्ब पर किसी मजहब का नाम नहीं लिखा होता है जाहिर है धमाके मे हिंदू , muslim , सिख हर कौम के लोग मारे जाते हैं । लेकिन जब कभी भी आतंकवाद कि बात की जाती है तो इसमें मुसलमान को जोड़ने कि सियासत भी उतनी ही तेजी से होने लगती है। अगर आतंकियों के स्लीपर शेल विभ्भिन शहरों में फैले हुए हैं । तो उसे खोज निकालने में क्या परेशानी है । इस देश को आतंकवादी नुक्सान पहुँचा रहे हैं । तो यह किसी एक खास कोम को फायदा और दुसरे को नुकसान नही पंहुचा रहे हैं। यह पुरे समाज पुरे कॉम , पुरे देश को खोखला कर रहे है।कुछ मुठ्ठी भर लोगों कि सनक को किसी मजहब कि चादर से नहीं ढाका जा सकता है। हम शायद इस बहस से तबतक मुंह चुरा सकते हैं ,जबतक हम इन धमाकों में किसी अजीज को नहीं खोते हैं । सरकार मारे गए परिवार को एक लाख के बदले पाँच लाख रूपये देने का एलान करके अपनी जिम्मेवारी से मुक्त होना चाहती है । ख़बरों के बाजार के लिए धमाके एक बड़ी टी आर पी है । लेकिन हमें यह सोचना होगा कि कल अगर ख़बरों में बंगलोर है तो कभी दिल्ली भी हो सकती है । धमाके में अभी कोई और शहीद हुआ है तो कभी इस फेहरिस्त में हम भी हो सकते हैं , क्योंकि आम आदमी कहीं भी सुरक्षित नहीं है ।
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