बाटला हाउस और सेकुलरिस्म
दरबाजे पर टक टक की आवाज होती है... अन्दर से आवाज आती है ... कौन है ? जी मैं वोदाफोन से आया हूँ। इंट्रो से लगा कि पुण्य प्रसून बाजपयी ने मेरठ वाले वेद प्रकाश शर्मा के किसी उपन्यास के कुछ पन्ने चुरा कर कहानी में ट्विस्ट देने की कोशिश की है । प्रसून जी का माने तो ये पुरा एनकाउंटर एक फ्रौड था । ठीक उसी तरह जब १९ तारीक को जामिया नगर के बतला हाउस में देल्ही पुलिस एल १८ पर दस्तक देने पहुंची तो आस पास के लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि पुलिस किसी मुर्गे की तलाश में है । अचानक गोलियों कि आवाज आने लगी तो लोगों को लगा कि कुछ बेक़सूर लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस ज्यादती कर रही है । लेकिन जब लोगों ने इंसपेक्टर मोहन चंद्र शर्मा को सहारा देते हुए दो पुलिस वाले को बाटला हाउस से निकलते हुए देखा तो कुछ लोग अपना अनुभव इस तरह बाँट रहे थे कि पदक पाने की लालच पुलिस कभी कभी अपने पावं पर भी गोली मार लेती है । और मोहन चंद शर्मा ने कुछ ऐसा ही किया होगा । शाम तक जामिया नगर के आस पास कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि यह आतंकवादियों के ख़िलाफ़ पुलिस कि करवाई थी । लोग इसे फेक एनकाउंटर मान रहे थे । शहीद शर्मा जी कि मौत से कुछ आवाज धीमी जरूर हुई लेकिन सियासत बदस्तूर जारी रही । पुण्य प्रसून जैसे नामी पत्रकार इस एन्कोन्टर पर इसलिए सवाल उठा रहे हैं क्योंकि इसमें दो muslim छात्र मारे गए थे जिसका तालुक्कात मशहूर जामिया विश्वविद्यालय से था । सवाल यह उठता है कि क्या कही दविस देने से पहले पुलिस को मीडिया और स्थानीय लोगों को विश्वास में लेकर आगे बढ़ना चाहिए वरना उनकी करवाई को फर्जी कर्रार दिया जायेगा । मोहन चंद शर्मा की मौत के बाद भी ये सवाल पूछा जा रहा है कि उनके कपड़े पर कहीं खून के निशान नहीं थे । एक अंग्रेजी अखबार उनके फोटो को जूम करके और ग्राफिक्स के जरिये यह बताने कि कोशिश कर रहा था कि खून के निशान मौजूद हैं और कहा लगी और कहाँ से बाहर निकल गई । अविश्वास का ऐसा ताना बाना बुना जा रहा है जिससे शहीद पर ही सवाल उठ ने लगे है । जामिया नगर में पुलिस की भारी भीड़ को देख कर प्रसून जी को कश्मीर कि याद आती है , कश्मीर में सुरक्षा वलों की ज्यादती कि याद आती है । कश्मीर की तरह ही वे जामिया नगर में लोगों की आंखों में पुलिस के प्रति नफरत देखते हैं । कश्मीर की तरह ही जामिया नगर में उन्हें हर चप्पे चप्पे पर मानवाधिकार का उल्लंघन होते नजर आता है। यानी ठीक एक एनकाउंटर के बाद जामिया नगर मिनी कश्मीर का शकल ले लेता है। देश का मानवाधिकार आयोग भी पुलिस से जामिया नगर एनकाउंटर का ब्यौरा मांग रहा है । यह बात इसलिए अटपटी नही लगती क्योंकि गृह राज्य मंत्री शकील अहमद ख़ुद पकड़े गए आतंकवादियों को पैरवी करने वाले को तारीफ़ कर रहे हैं । उनकी पुलिस जांच में दिन रात जुटी है लेकिन उसकी कार्य शैली पर ही सवाल उठ रहे हैं । सवाल उठाने वालों कि कमी नही है पहले बाटला हाउस के लोगों ने सवाल उठाया , फ़िर उनके स्वर में स्वर जामिया नगर के लोगों ने मिलाया अब इस आवाज को बुलंद करने ख़ुद जामिया विश्वविद्यालय के वी सी मुसिरुल हसन पकड़े गए नौजवानों को कानूनी मदद देने की वकालात की है । मुसिरुल हसन के इस अभियान को मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह का भी समर्थन मिल गया है । यानी इस देश का सेक्लुरिस्म आतंकवाद पर इतना भारी है की पुलिस को जांच का या फ़िर क्रिमनल को पकड़ने का दवाब हो न हो लेकिन क्रिमिनल को छोड़ने का दवाव जरूर बढ़ जाता है । देल्ही में एक पखवाडे के भीतर दुसरे सिरिअल बोम्ब धमाके इसी सन्दर्भ में देखा जा सकता है । अविश्वास का ऐसा माहौल है कि शायद ही किसी muslim बहुल इलाके से पुलिस खुफिया जानकारी जुटा सकती है ।सरकारी नौकरी में मुसलमानों के हेड काउंट करने के लिए बने सच्चर कमिटी ने बताया है कि देश के खुफिया विभाग में महज ४ फीसद muslim है । जाहिर है पुलिस व्यवस्था में किसी इलाके में छुपे आतंकवादियों ,स्लीपिंग मोदुलेस और सहानुभूति रखने वाले लोगों को खोज निकालना मुश्किल है । भाषा कि जानकारी की अभाव में इलाके में तैनात बिट किसी होने वाले साजिश से हमेशा बेखबर होता है । आज अगर इंडियन मुजाहिद्दीन के नाम पर जो नौजवान पकड़े जा रहे है , उसके तार आजमगढ़ से ही क्यों जुड़ता है , ये एक बड़ा सवाल है । ऐसा भी उचित नही है कि महज २०० -४०० गुमराह नौजवानों के कारण पुरे आजमगढ़ को बदनाम किया जाय ।लेकिन इतना तो तय है कि कानून aur vuavstha के प्रति लोगों का अविश्वास बढेगा तो पुण्य प्रसून को देश में कई जगह कश्मीर नजर आयेंगे। उत्तर प्रदेश में पकड़े गए हुजी के आतंकवादियों की पैरवी करने से अगर वहां के वकील मनाही करते हैं तो वे कोई देश भक्ति का काम नही कर रहे हो ते है, देश का कानून हर को अपने को निर्दोष साबित करने का हक देता है । कोई वकील यह मौलिक अधिकार नहीं छीन सकते , वे समाज में एक दूरी ही बढाते हैं । यह अलग बात है कि देश का लचर कानून किसी आतंकवादी पर नकेल नहीं दाल सकता । वैसे सजा पा चुके आतंकवादी को कभी हवाई जहाज से दूर देश छोड़ आया जाता है तो कभी देश के सेकुलरिस्म उसे फांसी देने से मन करता है । इंडियन मुजाहिदीन खुली चुनौती दे रही है कि हम धमाके करने जा रहे है , हिम्मत है तो पकड़ लो । यह एक सीधी लडाई है और यह देश हारता हुआ नजर आ रहा है , यह इसलिए नही कि यहाँ कि आर्मी , यहाँ कि पुलिस , यहाँ कि खुफिया निकम्मी है , यह इसलिए कि तथाकथित हमारी सेकुलर सोच समाज में अविश्वास की मोटी लकीर खीच दी है । आज वरेल्वी विचारधारा को मानने वाले muslim समुदाय देव्वंदियों को अपने मस्जिद में नमाज पढने से मन कर रहे है । देश में बढ़ते वहाबी सोच और अहले हदीथ के फलसफे का समर्थ देश में मिल रहा , मुसलमानों में लिबरल सोच के लोग पढ़े लिखे लोग हासिये पर चले गए है , तो जाहिर है अनपढ़ मौलवियों कि एक बड़ा जमात मुसलमानों का लीडर होने का दावा करती है ।नेताओं के लिए ये मौलवी बड़े वोट बैंक है । जाहिर है इस हालत में इंडियन मुजाहिद्दीन पर अंकुश लगाना मुश्किल है ।
टिप्पणियाँ
यहीं बाते लिखते वक्त मैं थोड़ा उग्र हो जाता हूं और कभी-कभी खुद लगने लगता है कि मैं मुस्लिम विरोधी हूं, जबकि ऐसी बात नहीं है. देश का सेक्यूलरिज्म कभी चाहता ही नहीं है कि इस देश का मुसलमान की अपनी सोच हो. जब आतंकवादियों की बात आती है तो बड़े ही शातिराना तरीके से समझाया जाता है कि किसी खास समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. गृहमंत्रालय मंत्र जपने लगता है कि किसी खास समुदाय को आतंकवादी कहने वाला सबसे बड़ा आतंकवादी है. जबकि बात ये है कि देश का कोई भी सभ्य व्यक्ति मुसलमान समुदाय को आतंकवादी नहीं समझता. लेकिन ये सेक्युलर सोच किसी व्यक्ति को हिंदू-या मुसलमान पहले समझता है और भारतवासी बाद में. जबकि जरूरत है कि मुस्लिम समुदाय खुद को पहले भारत वासी समझे उसके बाद खुद मुस्लिम.
आपका कहना बिल्कुल सही है। बटला हाउस पर मैंने भी कुछ लिखने की कोशिश की है। फ़ुरसत मिले तो ग़ौर फ़रमाएं। www.supratimb.blogspot.com
country is facing a turmoil
we the people at large as the guard of democracy r responsible for the same
we have to think something above than religion or caste-- we have think about nationhood, two party system and of course for dictatorship too for some time
its a time to revolt in the country in favor of the present existing system-- in fact in the light of the absolute collapse of multi party system in india
i salute for the big efforts made here to pen down some revolutionary jottings to mr vinod mishra
अमित कुमार