आडवानी जी को है एक मुद्दे की तलाश

भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री के पद के उम्मीदवार लाल कृषण आडवानी को हालिया असेम्बली चुनाव ने जोर का झटका दिया है । प्रधानमंत्री बनने की अपने तैयारी का टेलर आडवानी जी ने इन चुनावों मे दिखाया था । लेकिन वोटरों ने उनके तमाम मुद्दे को फ्लॉप साबित कर दिया है । आसमान छूती महगाई ,आर्थिक मंदी , बढती बेरोजगारी ,नौकरियों से हो रही लगातार छटनी , ऊपर से आतंकवाद फ़िर भी कांग्रेस सत्ता में वापस आ रही है या फ़िर अपनी सत्ता बरक़रार रख रही है तो जाहिर है यह कहा जाएगा की लोगों को बताने के लिए बीजेपी के पास कुछ भी नही है । अगर बीजेपी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का हवाला देती है तो यह उन्हें याद कराने की जरूरत है कि इसका श्रेय आडवानी जी बीजेपी को नही जाता बल्कि यह श्रेय शिव राज सिंह चौहान और रमन सिंह को जाता है । दोनों नेताओं की शालीन छबि और कर्मठता उन्हें सत्ता में दुबारा स्थापित करती है ।
देल्ही में बीजेपी के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार विजय कुमार मल्होत्रा का मुद्दा आतंकवाद था , उन्होंने ऐलान कर रखा था की उनके मुख्यमंत्री बनने के एक सप्ताह के अन्दर जैश ऐ मोहम्मद के आतंकवादी अफज़ल गुरु को फासी की सजा बहाल कर दी जायेगी । मानो दिल्ली के लोगों ने अपने सारे मुद्दे भुलाके अफज़ल की फांसी के लिए अनशन पर बैठे हों । बीजेपी ने दिल्ली में हुए सीरियल बोम्ब ब्लास्ट की याद ताजा कराने की कोशिश की । मुंबई में हुए ठीक एक दिन पहले हुए हमले से लोगों आगाह कराया । अख़बारों में धमाके का इश्तेहार दिया ... लेकिन लोगों ने कहा यह सब बकवाश है ।
पिछले दो वर्षों में १४ बड़े धमाके हुए है जिनमे १००० से ज्यादा लोग मारे गए हैं लेकिन आतंकवाद के खिलाफ लोगों ने सिर्फ़ राजनितिक बयानवाजी ही सुनी । बीजेपी इस आतंकवाद के खिलाफ जितनी तेज आवाज लगाती थी कांग्रेस उतनी ही चालाकी से इन बातों को अनसुनी कर जाती थी । कांग्रेस ने कहा बीजेपी आतंकवाद को मुसलमान से जोड़ कर देख रही है । बीजेपी ने कहा कांग्रेस आतंकवाद पर muslim तुस्टीकरण की राजनीति कर रही है । जबकि इन तमाम बहस से आम जनता दूर रही । मुंबई के ताज और ओबेरॉय होटल पर हुए आतंकवादी हमले के बाद पहली बार टीवी पर लोगों का गुस्सा दिखा । तो इस गुस्से के कारण केन्द्र के गृह मंत्री के साथ साथ महाराष्ट्र के मुख्या और उप मुख्यमंत्री की कुर्शी छीन गई । पहलीबार इस हमले से आतंकवादियों ने यह भी दिखाया था कि उनका शो सिर्फ़ गलियों और नुक्कडों तक ही सिमित नही है ओ अपना शो फाइव स्टार होटल में भी दिखा सकते हैं ।और यही वजह है कि कांग्रेस कुछ हरकत में आई । कुलमिलाकर बीजेपी आतंकवाद पर लोगों की प्रतिक्रिया जानने में नाकाम रही है । जबकि कांग्रेस पार्टी ने लोगों की नब्ज को पहचान ली है ।
बीजेपी का दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा महगाई था । उसने कांग्रेस के प्याज का बदला महगी दाल और टमाटर से लेनी चाही । लेकिन यह प्रयोग भी बेकार साबित हुए और शीला जी ने लगातार तीसरी बार मुख्या मंत्री बनने का तमाम पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए । राजस्थान हो या दिल्ली बीजेपी के तमाम फोर्मुले और टीम वर्क पीट गए । अगर बीजेपी अपने फोर्मुले को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कामयाब मानती है तो फ़िर यही फार्मूला दिल्ली और राजस्थान में भी कामयाब हो सकती थी ।
इस में कोई दो राय नहीं की भारतीय राजनीति दो ध्रुब में बट गई है और दोनों का केन्द्र बिन्दु बीजेपी और कांग्रेस है । यानि तमाम छोटी बड़ी रेजिनल पार्टियों को इन्ही दो ध्रुबो के साथ चलना होगा । जाहिर है देश के दो कारपोरेट पार्टी में ही किसी एक चुनना लोगों की विवशता है तो सियासी जमातों की भी । मौजूदा दौर में मीडिया ने इन दोनों पार्टियों को हाई टेक बना दिया है । सो कांग्रेस माने सोनिया गाँधी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हो गई है तो बीजेपी का मतलब आडवानी जी की पार्टी । इनके लिए मुद्दे तलाशने की जम्मेदारी उन लीडरों पर है जिनका आम आदमी से कोई सरोकार नही है । टीवी पर अपनी पार्टी के लिए सौंड बाइयत देने वाले लोग पार्टी के मार्केटिंग मेनेजर बन गए हैं । इनका रुतबा तबतक कायम रहता है जबतक आलाकमान का भरोसा इन पर कायम है । इस हालत में पार्टी की हार जीत से इनके सेहत पर कोई फर्क नही पड़ता । क्या आप उम्मीद कर सकते है की बीजेपी अपनी पराजय के बाद रविशंकर प्रसाद, अरुण जेटली, प्रकश जावेडकर , नकवी ,वेंकैया को पार्टी की जिम्मेदारी से अलग कर सकती है । क्या आप ने कभी कांग्रेस में लगातार हार के बावजूद मनु सिंघवी ,कपिल सिब्बल ,जयंती नटराजन , मनीष,राजीव शुक्ला जैसे तथाकथित लीडरों का बाल भी बांका होते हुए देखा । कांग्रेस एक परम्परा है जिसके प्रधानमंत्री का देश से भले ही कोई सीधा जुडाव न हो लेकिन मैडम की पसंद को आवाम स्वीकार कर लेगा । शिवराज पाटिल को याद किया जा सकता है उन्होंने कहा था वो लोगों की पसंद के कारण गृह मंत्री नही हैं बल्कि मैडम का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त है । इसलिए वे तबतक रहे जबतक मैडम ने उन्हें बनाये रखा । लेकिन आडवानी जी के साथ ऐसा नही है। मुद्दे की बदौलत वे फर्श से अर्श पर पहुचे है । एक ठोस प्रोग्राम लेकर उन्होंने लोक सभा में अपनी संख्या २ से १५० की थी । तब उनके पास एक संगठन था , वैचारिक आधार था । जनमानस में परिवतन की अकंछा थी । आज उनके पास ये सब कुछ भी नही है । सिबाय कुछ मार्केटिंग और मीडिया प्लानर के । रमन सिंह और शिवराज के पास ऐसे हाई टेक टीम जैसी कुछ भी नही थी और वे अपने राज्यों में विकास पुरूष का दर्जा पा चुके हैं । आज लोगों के बीच मुद्दे बदल गए हैं । निजी जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दे उनके लिए अहम् है । विचारधारा की बात करें तो इस मुद्दे पर शहरी और ग्रामीण मत्दातावों में काफ़ी अन्तर है । इसलिए जो मुद्दे शहरी इलाकों में प्रभवित कर सकते है वे ग्रामीण इलाकों में नही । इस सब से अलग आज देश के सामने कोई कद्दावर लीडर नही है । प्रियंका गाँधी को मुंबई धमाके के बाद इंदिरा गाँधी की याद आती है । लेकिन बीजेपी किसे याद करे ... जरूरी है की आडवानी जी को अपनी पार्टी को हर तबके और हर फिरके के बीच ले जाना होगा । समाज के अन्तिम व्यक्ति के पास पहुंचना होगा जिसे न तो राम मन्दिर न तो राम सेतु ,न ही आतंकवाद से कोई सरोकार है । बरैक ओबामा के पास एक ही मुद्दा था 'परिवर्तन '। और अपने अभियान में उसने लोगों का भरोसा जीता कि वह वाकई में परिवर्तन ला सकता है क्या आडवानी जी ऐसा परिवर्तन लाने का भरोसा जीत सकते हैं । इस देश को वाकई में परिवर्तन की जरूत है लेकिन उसके सामने यह भरोसा देने वाला कोई लीडर नही है । क्या आडवानी जी इस रिक्तता को भर सकते हैं?

टिप्पणियाँ

AAA ने कहा…
aadwani ji is riktata ko nahi bhar sakte----wajah aadwani ji ek mudde ke saath jitna upar pahunch sakte the pahuch gaye hai----aor pm baane ki bachkara jid chor deni chahiye----lekin state elections mein central leadership ko jimmedar tharana thik nahi----khaskar BJP mein----Congres ke liye ye baat thik hai---kyonki demecracy ke ulte uske har faisle mein central leadership ki aymiat hai----aatankwad ka mudda aisa nahi ki bhartiye janmanas ke jehan mein nahi hain aor aisa hota hai to durbhagya hi hoga----ek baat hume samajh leni chahiye ki bharat parivatan ke dour se gujar raha hai aor awam ke bich vikas aham ho chala hai----aisa mein nahi kahta---pichle sabhi state elcetion par nazar dalne se ye baat sabit ho jati hai----
Unknown ने कहा…
मुद्दा तो बहुत पहले से है, पर जैसे हिरन अपनी नाभि में कस्तूरी होते हुए भी उसे इधर-उधर तलाशता रहता है, बैसे ही आडवाणी जी इधर-उधर मुद्दे तलाशते रहते हैं. मुद्दा है आपसी प्रेम को बहाल करना, जो इस नफरत के माहौल में कहीं खो गया है.
मैं ये दोहरी विशलेषण मानसिकता नही समझ पारहा हूँ ,जो मिला उसका पूरा श्रेय दूसरे को ,जोआशा कि थी नही मिला उअका ठीकरा अडवानी के सर वाहः क्याकहने ? ये आप ही नही कर रहे हैं पूरा का पूरा मिडिया जगत इसी नियम का पालन केर रहा है ] अभी शिवराज चौहान इतने सफल और इतने बड़े नही हुए है ] आप लोग लगता है एक अभियान छेड़े हुए हैं ,और लगभग सफल भी है ,कि बी.जे. पी. में जो भी अच्छा नेता उभरने लगे उसका दिमाग खराब दें और वह राजनीतिक गलती करके अथवा ग़लत समय पर राजनीत कि चरम आकांक्षा पाल कर समाप्त हो जाए उदाहरण कल्याण सिंह है जिन्हें किसी ज़माने में द्वितीय पंक्ति का गिने चुने बड़े नेताओं में माना जाता था और वास्तव में थे भी , आप जैसों एवं मीडिया ने इतनी फूंक भरदी कि वे ख़ुद को अटल जी से भी बड़े नेता समझाने लगे यूपी का सर्वेसर्वा मानने लगे अपने आप को राजा कहने लगे , पंचायती राज व्यवस्था में सुधार के नाम पर पूरे प्रान्त कि व्यवस्था ही चौपट करदी और आज यह हाल है कि अशोक प्रधान जैसे नेताओं से घबडाने लगे हैं क्यों कि ,अपने ही क्षेत्र में पकड़ खोने लगे हैं [
मोदी को हमेशा केन्द्रीय नेतृत्त्व के विरुद्ध ही मुसलमानों का सब से बड़ा दुश्मन सिद्ध करने में बड़ी ऊर्जा लगाते रहे हैं , छोटी से छोटी बात उछालते रहे है , अभी अतिक्रम्रण द्वारा बनायी लगभग २०० मन्दिर गिरवा दिए , उसके विषय में आप का मीडिया सन्नाटा खींच गया ] क्योंकि वह आप के मीडिया कि बनाई तस्वीर से उलट हो जाती है , आप के लिए न्यूजवर्दी नही है ,]फूंक भरते भरते आखिर मोदी को भी छुट -भैया नेता वाला प्रचार प्रिय बना ही दिया , मुझे आश्चर्य है कि हर कदम नाप-तौल कर उठाने वाले मोदी मुम्बई हमले के समय आखिर एक ग़लत राजनीतिक कदम वहाँ मुम्बई आकर उठा ही बैठे ] राजनीतिक स्थायित्व के सन्दर्भ में बीजेपी ,कांग्रेस ,बीएसपी को राष्ट्रीय स्तर कि पार्टी के रूप में उभरने दीजिये ,देश का भला ही होगा और इसी में आप कि हमारी आने वाली पीदियों कि भलाई है ]]] आप लोग प्रतिक्रया देने में बहुत जल्दबाज है , इसमें आप का कोई दोष नही है ,यह है ही यूरिया के गंदुम का जमाना ,इस लिए बता दूँ मेरा किसी भी पार्टी से कोई सम्बन्ध नही है ,मुझे केवल अपने देश -समाज से मतलब है ]

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