इंडिया के लिए आई पी एल और भारत के लिए नक्सल



आर्थिक मंदी से गुजर रही दुनिया के लिए यह ख़बर चौकाने वाली हो सकती है कि इंडिया में खिलाड़ियों पर लगने वाली बोली ने अबतक के तमाम रिकॉर्ड को तोड़ दिया है । आई पी एल- २ के लिए होने वाली मैच के लिए इंग्लैंड के फ्लिंतोफ्फ़ को लगभग ८ करोड़ रूपये मिले है जबकि दुसरे क्लब ने पिएतेरसेन के लिए भी ८ करोड़ की बोली लगायी है । आप अंदाजा लगा सकते है कि आई पी एल में शामिल ८ क्लब में लगभग २०० खिलाड़ी है और उनपर हमारे धनकुबेरों ने अरबो रूपये वर्षाये हैं । भारत में आर्थिक मंदी का साया पड़ने लगा है । सिर्फ़ इस आशंका के बिना पर लाखों लोगों की छटनी हो चुकी है ,लाखों लोगों के सर पर तलवार लटकी हुई है और उनकी नौकरी कभी भी जा सकती है । बाजार में रूपये गायब हो जाने की ख़बर ने सरकार को इस कदर चिंतित कर रखा है कि सरकार ब्याज दर लगातार कम करने के साथ साथ कई बेलोउट पैकेज लाने की तयारी में है । सरकारी बाबू से लेकर अफसरों को पे कमीशन के नाम पर लाखों करोडो के अरिएर का भुगतान हो रहा है ताकि बाज़ार संभले । लेकिन बाज़ार रूठा हुआ है । लेकिन यह बात समझ से पड़े है कि क्रिकेट के लिए कौन सा बाज़ार है जहाँ लीकुइदिटी की कोई समस्या नही है ।
दरअसल एक ही देश में दो दुनिया है एक का नाम भारत है तो एक का नाम इंडिया । बाज़ार का संकट अपने प्रभाव में भारत को धीरे धीरे प्रभवित कर रहा है जबकि इंडिया शायद इससे बिल्कुल अछूता है । विकास दर की रफ़्तार ने इंडिया को मालामाल कर दिया ,आज दुनिया में सबसे ज्यादा मिल्लिओनेर भारत में है ,ग्लोब्लिज़शन की उची उड़ान ने इंडिया को चाँद पर उतरने का मौका दिया तो एक नई फाइव स्टार कल्चर भी । लेकिन भारत की हालत जस की तस् है । नेशनल सैम्पल सर्वे की माने तो आज भी २३ फीसद से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे है जिन्हें हर दिन दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती । संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट पर अगर गौर करे तो भारत में भूख और कुपोषण के शिकार दुनिया में सबसे ज्यादा है , आर्थिक मंदी की मार इसकी संख्यां और बढ़ा सकती है । जबकि सरकार यह दावा करते हुए लगभग इतराती है की देश के एक अरब आबादी के भोजन का उसके पास पुख्ता इनजाम है । सरकार अगले दो साल के फ़ूड स्टॉक का भी दावा करती है । लेकिन इस मुल्क के लाखो बच्चे रोज भूके सो जाते है तो लाखों बच्चे एक जून की रोटी के लिए ९ से दस घंटे की कड़ी मिहनत करते है । यह हमारे राजनितिक व्यवस्था की खामी है या हमारी नौकरसाही तंत्र का, ये अलग बहस का मुद्दा है । लेकिन इस अव्यवस्था और इंडिया के चश्मे से देखने की आदत ने आज १५ से ज्यादा राज्यों और ५० करोड़ से ज्यादा लोगों को हिंसा के दल दल में झोंक दिया है । आज देश के ८० जिलों में सरकार और शाशन नाम की कोई चीज नही है नक्सालियों का वहां हुकुम ही कानून है ,इन इलाकों में उन्ही का साम्राज्य है । सरकार की माने तो नौकरशाहों का तर्क है कि नक्सालियों ने बन्दूक के जोर पर वहां समान्तर सरकार बनाली है । सवाल यह है बन्दूक और ताकत तो हमेशा स्टेट के पास रहा है फ़िर नक्सालियों ने स्टेट को कैसे हरा दिया । यह सीधे समस्या से आँख चुराने जैसी बाते है । हर साल नाक्साली प्रभावित इलाकों में सरकार करोड़ों रूपये खर्च करती है ,विकास के बड़े बड़े वादे किए जाते है फ़िर भी आज देश में सबसे ज्यादा सुर्क्षवालों की मौत इन इलाकों में हो रही है ।और यहाँ भी इंडिया योजना के करोड़ों रूपये हजम कर जाता है ।
पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में नक्सल प्रभावित राज्यों की एक उच्स्तरिय बैठक हुई थी , महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चौहान ने जोर देकर यह दावा किया था कि महारष्ट्र में ऐसा कोई भी इलाका नही है जहाँ सरकार की पहुँच न हो और जहा नक्सल का खतरा हो । ठीक एक हफ्ते के बाद महारष्ट्र के गढ़चिदोली में नक्सालियों ने १५ पुलिस वालों को बेरहमी से मार डाला । असहाय पुलिस वालों को नक्सालियों से लड़ने के लिए ने तो आधुनिक हथियार थे ने ही उचित ट्रेनिंग । यह हालत अगर मुंबई की सरकार की है तो दुसरे राज्यों की हालत को समझा जा सकता है । जाहिर है या तो महाराष्ट्र के मुख्या मंत्री को राज्य की तनिक भी समझ नही है या उनके लिए रिपोर्ट और भाषण तैयार करने वाले ऑफिसर उन्हें अंधेरे में रखा हुआ है । कमोवेश यही सूरत दुसरे नक्सल प्रभवित राज्यों की है । आदिवासी और दलित इलाकों में आज नक्सालियों का साम्राज्य है तो इसकी वजह को समझा जा सकता है । जंगल में रहने वाले आदिवासियों से जंगल छीन लिया गया तो जमीन जोतने वाले किसानों से जमीन । ६० के दशक में चारू मजूमदार ने माओ को अपना आदर्श मान कर बन्दूक के जोर पर जमीन जोतने वालों को हक़ दिलाने का अभियान शुरू किया तो बिहार और बंगाल के दलितों ने उन्हें सियासी जमीन देने का भरोसा दिलाया । लेकिन नाक्साल्वारी आन्दोलन को कुचल कर सरकार ने दलितों और शोषितों के तथकथित बन्दूक क्रांति को दफ़न कर दिया । लेकिन ८० के दशक में आँध्रप्रदेश के पीपुल वार ग्रुप और बिहार में एम् सी सी के उदय ने एक बार फ़िर नक्सल क्रांति से यह एहसास कराया की सिर्फ़ चिगारी बुझी थी धुआं कायम था सिर्फ़ हल्की हवा की जरूरत थी और चिंगारी एक बार फ़िर सुलग उठी । इसमे कोई दो राय नही की इस आन्दोलन ने अपना आधार बिहार ,बंगाल ,उड़ीसा , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र , झारखण्ड , कर्न्ताका तक फैलाया । लेकिन नक्सल आन्दोलन कई मोर्चे में बट गया । २००४ में पीपुल वार ग्रुप और माविस्ट कम्युनिस्ट सेंटर ने सभी नक्सल संगठन को एक झंडे और एक मोर्चे में शामिल करके इसे सी पी आई ,माओबादी नामका एक नया संगठन अस्तित्वा में लाया । केन्द्र सरकार भले ही अबतक नक्सल समस्या को कानून व्यवस्था की समस्या मान रही हो , हर राज्य अपने अपने नफा नुक्सान के आधार पर नक्सालियों से मोर्चा ले रही हो लेकिन नक्सालियों ने एक रेड कॉरिडोर से ,एक फोर्मुले ओउर एक विचार को सामने रख कर सरकार के हर प्रयास को नाकाम बना रहे हैं । इंडिया के लिए पॉलिसी बनाने वाले लोग भारत के उस गाँव से नक्सालियों को मार भागना चाहते है जहाँ साथ ६२ साल के आज़ादी के बाद न तो सड़क है न तो पिने के पानी की व्यवस्था , न तो स्कूल है न ही हस्पताल । आज भी इन गाँव के लोग बिजली और मोटर गाड़ी शहरों में ही देख पाते है । यहाँ नक्सालियों ने ग्रामीण को जंगल का अधिकार दिलाया , यहाँ जमीन जोतने वाले मजदूरों को अपनी जमीन मिली । यहाँ कोई बी डी ओ साहब नही पहुचते । नाक्साली के दालान और जनादालत लोगों की समस्या का हल कर रहा । इंडिया के लिए आई पी एल का 'जय हो 'रहा है तो भारत के ग्रामीण इलाकों में नक्सालियों का जय हो रहा है । इस तरह या तो पुरे देश को इंडिया का दर्जा मिले या पुरा देश एक भारत देश बने तभी हम अलग अलग राज्यों में अलग अलग मकसद से जारी हिंसा पर लगाम लगाने की बात सोच सकते है । हर समस्या के लिए हम भले ही राजीनीतिक व्यवस्था को दोषी ठहराए लेकिन हमें नौकरसाही को भी जवाबदेह बनाना होगा ।

टिप्पणियाँ

बिलकुल ठीक. जिम्मेदार केवल राजनेता और नौकरशाही ही नहीं, कुछ हद तक हम भी हैं. अपनी जिम्मेदारी को भी महसूस करने की ज़रूरत है.

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