जय हो राहुल गाँधी ,भय हो वरुण गाँधी ?
उत्तर प्रदेश में एन एस ऐ किसी पर लगाये गए हों और वह बड़ी ख़बर बनी हो ऐसा कभी सुना नही गया था । यहाँ १४ साल के बच्चे पर भी रासुका लगे हैं । पिछले वर्षों में दर्जनों लोग राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के लपेटे में आचुके हैं । लेकिन यह कभी भी राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का मुद्दा नही बना । कुछ मानवाधिकार संगठनों ने इस काले कानून को लेकर अदालत का दरवाजा जरूर ख़त खटाया । लेकिन इस बार मानवाधिकार संगठन चुप हैं और न ही एन एस ऐ उनके लिए कला कानून है । क्योंकि इस बार इसके गिरफ्त में कोई सेकुलर लोग नहीं है । राज्य सरकार वरुण गाँधी को अतीक अहमद ,मुख्तार अंसारी ,गुड्डू पंडित ,हाजी याकूब ,अमर मणि त्रिपाठी जैसे स्वनाम धन्य लीडरों से खतरनाक मानती है । सियासत में सुचिता लाने के लिए संकल्पित सरकार वरुण गाँधी को लोकतंत्र के लिए खतरा महसूस कर रही है । हलाकि उत्तर प्रदेश ने पिछले साल लोक सभा में आपराधिक चरित्र के राजनेताओं की सबसे बड़ी सूचि भेजी थी । कमोवेश ऐसी ही सूरत इस बार भी होने वाली है । कह सकते है की एक पिछडे प्रदेश में सियासत कांग्रेस राहुल जी की जय हो के सहारे कर रही है । मायावती राहुल गाँधी का भय हो बता कर वोट बैंक को गोलबंद कर रही है तो मुलायम सिंह जी यादव -muslim -पिछड़ा वर्ग को मायावती के ख़िलाफ़ गोलबंद कर रहे हैं । रही बात बीजेपी की तो यह पार्टी अभी तक यह नही तय कर पायी है की वोट वरुण गाँधी के नाम पर मांगे या आडवानी जी के नाम पर । यानी पार्टी में दुभिधा आजभी बरक़रार है ।
चुनावी विगुल बजने के साथ ही यह लगने लगा था कि इस बार भी चुनाव रीजिनल पार्टियों के बीच ही लड़ा जाना है । उत्तर से लेकर दक्षिण तक तमाम क्षेत्रीय पार्टियों ने देश को यह अहसास करा दिया था कि सरकार बनाने में कांग्रेस और बीजेपी की भूमिका से ज्यादा क्षेत्रीय पार्टियों की होगी । यानि भारत के संघीय सवरूप को दुनिया के सामने लाने में इन क्षेत्रीय पार्टियाँ यानि प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी वाली पार्टियों ने अहम् भूमिका निभाई है । केंद्रीय सरकार, राष्ट्रीय पार्टियाँ ,राष्ट्रीय मुद्दे अब दूर की चीज हो गई है । मौजूदा सरकार में १६ पार्टियों की हिसेदारी थी और वाम मोर्चा सरकार को बाहर से समर्थन दे रहा था । कांग्रेस अपने बूते सिर्फ़ १४५ सीट जीत पाई थी ,बीजेपी से महज ७ सीट ज्यादा । लेकिन साकार में बैठी कांग्रेस ने इसे अपनी सरकार मान ली । छोटे छोटे दलों का अपना स्वार्थ पुरा होता गया और वह कांग्रेस की जय कार करती रही । कांग्रेस पार्टी कह रही है कि यह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार है । तो इस गठबंधन को एक साथ चुनाव में उतरने से कांग्रेस की क्या मजबूरी थी । पाँच साल में सरकार के बड़ी कामयाबियों का सेहरा न सिर्फ़ कांग्रेस का है बल्कि पुरे गठबंधन का है , इसी तरह नाकामयाबी भी पुरे गठबंधन की है । लेकिन कांग्रेस की चालाकी तो देखिये पार्लियामेंट में सरकार के प्रोग्राम को कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का हवाला देती रही , लेकिन आम जनता के बीच इसे कांग्रेस की उपलब्धी बता रही है । यानि सरकार की नाकामयाबी का ठीकरा क्षेत्रीय पार्टियों पर कांग्रेस फोड़ रही है । कांग्रेसी बड़े गर्व से कहते है की राहुल जी पार्टी का अखिल भारतीय स्वरुप लौटना चाहते है वो पूर्ण बहुमत की सरकार चाहते है । जरा उनसे कोई पूछे सिर्फ़ मोबाइल नेट्वर्किंग बढाकर कोई ओबामा बन सकता है क्या । पिछले पाँच वर्षों में राहुल ने किस राज्य में अपने संगठन को मजबूत करने की पहल की । सिर्फ़ चुनाव के वक्ता उन्हें बिहार की याद आती है उन्हें बताया जाता है की यहाँ भी कभी आपके नाना और दादी का जागीर था । आज अगर लालू यादव ने ३ सीट देकर उनकी औकात याद दिलाई है तो क्या गुनाह किया है । अगर अमेठी का मतलब भारत है तो निश्चित रूप से राहुल सिर्फ़ कांग्रेस के ही नही पुरे भारत के राजकुमार हैं । लेकिन यह मानने से यु पी ऐ के तमाम दल ही नही तैयार है तो कांग्रेस देश से क्या अपेक्षा करती है । राजनितिक पंडित कहते हैं कि देश में अवसरवाद की राजनीति हावी है । शरद पवार से लेकर लालू यादव , मुलायम से लेकर रामविलास ,पी एम् के से लेकर एम् दी एम् के ... यानि हर कोई अवसर वाद की राजनीति कर रहा है । सिधांत ,चरित्र ,सुचिता जैसी चीजे इस चुनाव से गायव हो गई है । हर क्षेत्रीय पार्टी के सामने देवेगोडा आदर्श हैं इसलिए हर नेता प्रधानमंत्री के दावेदार हैं । अबतक चार फ्रंट हमारे सामने है लेकिन असली फ्रंट १६ मई के बाद अवतरित होने वाला है । लेकिन सियासी हलचल कभी भी करबते बदल सकती है । राहुल जी की "जय हो "का प्रोमो चल चुका है । इसकी काट में बीजेपी का" भय हो "अपनी टी आर पी बढ़ा रही है । कल तक वरुण गाँधी से पल्ला झड़ने वाले बीजेपी के लीडर आज उससे मिलने एता जेल जा रहे है । बीजेपी को पता है उसका इंडिया शिनिंग भी चुनावी मुद्दा नहीं बना था । बीजेपी के तमाम आर्थिक सुधार को लोगों ने नकार दिया था । नरसिंह राव के सुधार के तमाम प्रयासों को लोगों ने अंगूठा दिखा दिया था । इसलिए कांग्रेस को यह ग़लतफ़हमी नही पालनी चाहिए कि उसके "आम आदमी के साथ कांग्रेस का हाथ" को लोग हाथों हाथ लेने जा रहे है । इसमे कोई दो राय नही कि बीजेपी के तमाम मुद्दे पहले ही पिट चुके है। इसलिए आर पार की लड़ाई अब जल्द ही राहुल की जय हो और वरुण का भय हो के बीच होने वाली है ।
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