सरकार -सरकार के खेल में वोटर एक बार फ़िर हुआ फेल
वोट इंडिया वोट ,पप्पू कांट वोट जैसे दर्जनों अभियान एकबार फ़िर दम तोड़ते नज़र आए । सरकार बनाने मे अपनी भूमिका को लोगों ने एक बार फ़िर खारिज किया । शहरी वोटरों ने कहा सरकार कोई बनाये व्यवस्था बदलने वाली नही है हम अपनी छुट्टी क्यों ख़राब करें । तो ग्रामीण मतदाताओं ने कहा कोई नृप होई हमें का हानी। १९९० के बाद भारत में होने वाले चुनाव की यही कहानी है । यानि सरकार बनाने में अपनी भूमिका को नकारते हुए लोगों ने यह मौका दलालों को दे दिया है । कौन बनेगा प्रधानमंत्री के लिए दिल्ली में मंडी लगनी शुरू हो गई है । मोल तौल शुरू हो चुकी है यह जानते हुए भी कि अभी चुनाव प्रक्रिया ख़त्म नही हुई । जनता का फ़ैसला आना अभी बांकी है लेकिन सरकार सरकार के खेल के लिए बिशात बिछायी जा चुकी है । मोहरे चलने शुरू हो चुके है । २६ फीसद वोट पाकर २००४ में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी । तब यह तर्क दिया गया था कि वोटरों ने सेकुलर गवर्नमेंट बनाने के लिए जनादेश दिया है । तर्क दिया गया कि यह जनादेश किसी एक पार्टी के लिए नही था बल्कि यह गठबंधन के लिए जनादेश था । यानि ७४ करोड़ मतदाताओं ने एक फ़िर नेताओ की सरदर्दी बढ़ा दी है कि इस बार वो कौन सा तर्क देंगें । दिल्ली के चाँदनी चौक लोक सभा क्षेत्र में इस बार जबरदस्त पोलिंग हुई । बीजेपी की और से अपनी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है । यह गणित शहरों का ही नही है ग्रामीण इलाके में भी कम मतदान और ज्यादा मतदान को राजनेता अलग अलग व्याख्या करते है । कश्मीर में अनंतनाग में २० फीसद पोलिंग हुई तो यह मना गया कि पीडीपी का हारना तय है लेकिन श्रीनगर में यही पोलिंग २४ फीसद हुई तो यह कहा गया की फारूक अब्दुल्ला की स्थिति कमजोर हुई है । यानि हमारे नेताओ को पता है कि कौन वर्ग और समुदाय उसे वोट दे रहे है कौन नही । गुजरात दंगे से आहत मुंबई के muslim वोटरों ने बड़ी तादाद में पोलिंग कि तो यह माना गया था कि शहरी इलाकों में इस बार बीजेपी -शिव सेना का सुपरा साफ़ हो जाएगा । और हुआ भी । लेकिन इस बार muslim वोटरों ने वैसा उत्साह नही दिखाया तो क्या माना जाय कांग्रेस का इन इलाकों में सफाया हो जाएगा ?
राजनितिक पंडित का माने तो मुद्दे के अभाव में हमेशा विखण्डित जनादेश आता है । इस बार भी न तो कोई राष्ट्रीय मुद्दे थे न ही राष्ट्रीय विकल्प । कहा जा रहा है कि राजनितिक दल मुद्दे उछालने में नाकामयाब रहे है । यानि यह बताने में राजनेता नाकामयाब रहे कि लोगों को बताये कि चीनी ३० रूपये किलो है ,महगाई आसमान छू रही है । लोगों के रोजगार छीन रहे है । पडोशी मुल्को के राजनितिक संकट भारत को प्रभावित कर सकता है । अगर ये मुद्दे लोगों के बीच से नही आ रहे तो उन्हें इस बात के लिए प्रेरित नही किया जा सकता है । इन मुद्दों को लेकर आडवानी जी ने दर्जनों ब्लॉग लिखे , हजार दस हजार लोगों ने उनके ब्लॉग को जरुर हिट किया लेकिन इन लोगों में सौ से ज्यादा वोट करने नही गए होंगे ।
ये है भारत महान मेरी जान यहाँ सब कुछ अप्रत्यासित होते है । सत्ता के खेल में अब राहुल गाँधी को नीतिश ,चंद्रबाबू नायडू और जयललिता में ढेर सारी खूबियाँ दिखने लगे है । नीतिश की आलोचना करने के कारण एक झटके में वीरप्पा मोइली जैसे सीनियर कांग्रेसी को आलाकमान बाहर का दरवाजा दिखा देते है । सत्ता के इस खेल के कारण मुलायम सिंह यह नही तय कर पा रहे है कि आजम खान को साथ रखे या अमर सिंह को ।
सरकार बनाने अमर सिंह जैसे लीडरों की भूमिका अब शुरू हो ने वाली है ,जाहिर है वीरप्पा मोइली जैसे लोगों का कद और छोटा होगा । नीतिश कुमार की पार्टी जेडीयू के महज २५ उम्मीदवार बिहार में अपनी किस्मत आजमा रहे है । लेकिन नीतिश को भावी प्रधान मंत्री के तौर पर पेश करने की अटकले भी शुरू हो चुकी है । शरद पवार ने बिहार सहित कई राज्यों में ५० से ज्यादा उम्मीदवार खड़े किए है तो जाहिर है उनकी दावेदारी नीतिश से ज्यादा बनती है । इस हिसाब से देखे तो मायावती की पार्टी बीएसपी ने सबसे ज्यादा ५०४ उम्मीदवार खड़े किए है तो उनकी दावेदारी को कौन झुठला सकता है । यानि सरकार सरकार के खेल में आधिकारिक रूप से घोषित उम्मीदवार आडवानी जी और मनमोहन सिंह जी इस चर्चा से दूर होते जा रहे है । एग्जिट पोल पर प्रतिबन्ध है तो क्या हुआ मीडिया को अटकलें लगाने से कौन रोक सकता है । अभी तक चार मोर्चा हमारे सामने है १६ के बाद और कई मोर्चे हमारे सामने आयेंगे । अटकलों के पीछे मजबूत तर्क है वाम दल जिस सरकार को समर्थन देंगे ममता उसके साथ नही होगी । मुलायम ने अपनी शर्त पहले घोषित कर दिया है सरकार वही जो मायावती को वर्खास्त करे इसलिए जहाँ मुलायम होंगे वहां मायावती नही होगी । और मायावती किसी सरकार को मुफ्त में समर्थन देने वाली नही है । यही कहानी जयललिता की है । सबसे बड़ी पार्टी ,सबसे बड़ा प्री पोल गठ्वंधन जैसे कई सवाल अभी आने बांकी है । जाहिर है मनमोहन सिंह जैसे अघोषित नाम एक बार फ़िर सामने आ सकते है । रही बात २७३ के जादुई आंकडे की तो चरण सिंह से लेकर नरसिंह राव तक ,चंद्रशेखर से लेकर गुजराल तक कई प्रधान मंत्री के पास यह जादुई आंकडा नही था । संसद ने जब तक चाहा वे प्रधानमंत्री बने रहे । अलग अलग पार्टियों के सांसद बगैर किसी मोर्चे में शामिल हुए भी किसी सरकार को दीर्घायु जीवन दे सकता है । इस तरह देश के मतदादा भले ही फेल कर गए हो लेकिन हमारे सांसद फेल होने वाले नही है उन्हें अपने देश की लाज बचानी है चाहे आप इस नेक कार्य के लिए उन्हें दलाल कहले या फ़िर कुछ और आखिरकार देश को इन्ही लोगों ने तो समझा है ।
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