सिर्फ़ ' क ' को 'ब' ही तो पढ़ा था ,बच्चे की जान लोगे क्या ?
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मिश्र के अपने हालिया दौरे से प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान से संबध सुधारने की पहल की थी । मीडिया के लोग कहते है कि जरूरत क्या थी । प्रधानमंत्री कहते है कि "तुम दोस्त बदल सकते हो पड़ोसी नही "है न मार्के की बात । यह बात अगर पंडित नेहरू कहे होते तो तमाम एन सी आर टी की किताबों में मोटे मोटे अक्षरों में छपा होता । बीजेपी वाले कहते है कि आगरा शिखर वार्ता के दौरान मुशर्रफ़ आतंकवाद के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए राजी नही हुआ तो अटल बिहारी वाजपेयी ने वार्ता से माना कर दिया था । भाई ये भी क्या दादा गिरी है कोई तुम्हारी बात से राजी नही है तो क्या उसे जबरदस्ती मनाओगे। मनमोहन सिंह ने एक कदम आगे बढ़कर पाकिस्तान के प्रधानमत्री युसूफ रजा गिलानी की सारी इच्छा पुरी कर दी । बेचारा गिलानी साहब जिसे पाकिस्तान में कभी सद्र जरदारी धमका देता है तो कभी आर्मी चीफ कियानी तो कभी आई एस आई चीफ पासा । उसके सियासी जिन्दगी में यह बिग डे था कि उसने जो बात प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कहा उसे हमारे प्रधानमंत्री ने मान लिया । इस जोइंट स्टेटमेंट से भले ही हमारे यहाँ अपने प्रधानमंत्री का कद छोटा कर रहे हों लेकिन पाकिस्तान में वजीरे आजम गिलानी ने अपना कद बढ़ा लिया है आज वह पाकिस्तान में अपने सद्र पर भी गुर्रा रहा है ।
अगर आप मिश्र में प्रधानमंत्री के समझौते को लेकर बमवर्षा कर रहे है तो ऐसी ही गलती ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री ने भी की थी , ऐसी गलती शिमला समझौते में इंदिरा गाँधी ने भी की थी । सबसे बड़ी बात कश्मीर मसले को लेकर संयुक्त राष्ट्र ले जाकर नेहरू ने तो इतनी बड़ी भूल की थी कि जिस से दो चार हमें आज तक होना पड़ रहा है । सो भाई सबने भूल की है ,सबने पाकिस्तान को लेकर दरियादिली दिखाई है ,अगर अपने मनमोहन सिंह ने दिखा दिया तो इतना हंगामा क्यों ।
लोग कहेंगे कि उस समय भारत में इतना तेज तर्रार मिडिया नही था । इतना विश्लेषण नही होता था , या यु कहे है कि इतना बाल की खाल निकालने की परम्परा नही थी । लोग अपना काम कर रहे होते थे सरकार अपना काम । यह मिडिया की धौस है कि विदेश मंत्रालय ख़ुद इस जोइंट स्टेटमेंट से अपना पल्ला छुडा रहा है यानि अगर इसे आप ग़लत मानते हैं तो यह ड्राफ्ट प्रधानमंत्री कार्यालय ने किया था । कोई इन्हे पूछे तो वहां विदेश मंत्रालय क्या कर रहा था ?यह काम अगर प्रधानमंत्री कार्यालय को ही करना है तो फ़िर विदेश मंत्रालय का इतना बड़ा लाव लश्कर क्यों है ?
भारत पाकिस्तान के बीच रिश्तों की पहल वह काजल की कोठरी है जिसने भी पहल की उसपर दाग लगना स्वाभाविक है । नही कम से कम तो अमेरिका के दवाब का आरोप जरूर लगेगा । प्रधानमंत्री के लिए यह एक मौका है अपने को साबित करने का । लेकिन सरकार और पार्टी की तरफ़ से रोज़ रोज़ बदल रहे बयान प्रधानमंत्री के कद को छोटा कर रहा है । कभी कहा जाता है कि जोइंट स्टेटमेंट वाध्यकारी नही है कभी कहा जाता है कि आतंकवाद के अलावा पाकिस्तान से कोई बातचीत नही । खुदा के लिए अगर प्रधानमंत्री ने एक बार पहल की है तो उन्हें इस पहल को आगे तो बढ़ाने दीजिये यकीं रखिये भारत एक धारा का नाम है यह हमेशा बहती रहेगी .इसने कई मुश्किलों को देखा है । इस समझोते से यह धारा नही बदलने वाली है ।
टिप्पणियाँ
बहुत सही !!