प्यार करो या नफरत हम है बिहारी

बिहार एक बार फ़िर चर्चा में है । चर्चा के कई कारण है ,नक्सली हमले में १६ लोगों की मौत ने
बिहार को एक बार राष्ट्रीय मिडिया की सुर्खियों में ला दिया है । वही लालू यादव और राम विलास पासवान अपने जातीय समीकरण के जरिये दुबारा बिहार में अपनी सियासी जमीन तलाश रहे है । जादिवाद की लडाई में उलझे बिहार में नक्सालियों ने दुबारा २० साल पुरानी रणनीति अपनाई है । ये अलग बात है कि पटना ,गया ,औरंगाबाद ,अरवल ,रोतास ,जेहानाबाद की जातिवादी जंग अब मुंगेर ,खगरिया मे लड़ी जा रही है । एम् सी सी और सी पी आई एम् एल (पी डब्लू ) से आगे बढ़कर नक्सालियों ने अखिल भारतीय स्तर पर सी पी आई माओवादी का चोला पहन लिया है लेकिन बिहार में उसके पुराने प्रयोग जारी है यानि जातियों के बीच रंजिश को नाक्साली ने खंघालने की कोशिश की है । खगरिया में हुए नरसंहार में मारने वाले मुशहर समुदाय के है तो मरने वाले कुर्मी ज़ाति के लेकिन दोनों जाति नीतिश सरकार के समर्थक माने जाते है । नीतिश सरकार के महादलित गठजोड़ का मुसहर समुदाय खास हिस्सा है जिसे रामविलास पासवान के दवंग पासवान जाति के दलित से अलग किया गया है । नीतिश की सियासी रणनीति ने दलितों की ३८ जातियों में ३० को महादलित गठजोड़ बनाकर लालू -पासवान के जातीय समीकरण मे सेंध लगाने की कोशिश की थी । लेकिन अचानक घड़ी को उलटी दिशा मे घूमाने की कोशिश शुरू हो चुकी है । बिहार मे हुए हालिया उपचुनाव इसका उदाहरण है ।
इंडिया टुडे के हालिया कानक्लेव मे बिहार को तक़रीबन हर मामले मे पिछड़ा राज्य घोषित किया गया । अग्रिम राज्यों की सूची मे हिमाचल ,दिल्ली से लेकर पंजाब लगभग सभी पुरस्कार झटक ले गए । बिहार और उत्तर प्रदेश का कोई नाम लेने वाला नही था । कह सकते है की आर्थिक प्रगति ने उत्तर और दक्षिण की खाई को बढ़ा दी है । दक्षिण जहा अपनी प्रगति पर इतरा रहा है वही उत्तर के दो प्रमुख राज्य जनसँख्या के भारी बोझ और जातिवाद की जंग के तले कराह रहे है । उत्तर प्रदेश मे पार्क और महापुरुषों की मुर्तिया लगाया जा रही है तो बिहार मे सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है । एक जगह मूर्तियों के जरियों जातीय पहचान कायम रखने की लगातार कोशिश जारी है दूसरी जगह पर विकास के जरिए जातीय मिथ को तोड़ने की पहल की जा रही है ।
लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद बिहार में जाति संघर्ष बरकार है । तरक्की के मामले मे अगर बिहार को तीन प्रमुख राज्यों की सूचि में रखा जाता है तो यह किसी बिहारी के लिए गर्व की बात हो सकती है । पिछले साल बिहार की यह आर्थिक प्रगति हरियाणा के करीब था यानि लगभग ११ फीसद । यह प्रगति औद्योगिग क्रांति की नही है ,यह प्रगति राज्य मे भारी पूजी निवेश की नही है ,यह प्रगति बिहारी कामगारों की बदौलत सम्भव हो सकी है । आज भी बिहार के हजारो गाँव मनिओर्देर इकोनोमी के बूते कामयावी की अलग तस्वीर पेश कर रहे है । वही गाँव जो कल तक कभी बाढ़ तो कभी सुखा के कारण जर्जर हालत मे थे वहां लोगों के चेहरे पर मुस्कान देखी जा सकती है । आज इन्ही गाँव के बच्चे सुपर ३० और सुपर ६० से कोचिंग लेकर आई आई टी मे अब्बल दर्जा पा रहे है । इन्ही गाँव के हजारो बच्चे दिल्ली ,उत्तर प्रदेश , दक्षिण के राज्यों मे माता पिता की मोटी रकम खर्च करके ऊँची शिक्षा हाशिल कर रहे है । कह सकते है कि बिहार के मध्यवर्गीय समाज ने देश की मुख्यधारा मे अपने बच्चो को शामिल करने के लिए अपना सबकुछ कुर्बान कर रखा है । अनपढ़ और कम पढ़े माता पिता को भी पता है कि पुरी दुनिया आज ग्लोबल विलेज का हिस्सा है जहा सिर्फ़ ज्ञान का चमत्कार का है । कपिल सिब्बल आज जिस नालेज इकोनोमी की बात कर रहे है बिहार के लोग इसे अपने बच्चों पर वर्षों से आजमा रहे है । बिहार में हो रहे इस चमत्कार को मैंने इस बार करीब से देखा है । वर्षों बाद बिहार की यात्रा मेरे लिए कही से रोमांचित करने वाली नही थी । आज भी २०० किलो मीटर सफर तय करने में मुझे १२ घंटे से ज्यादा लगे ,अच्छी सडके लेकिन वाहन के नाम पर आज भी पुश्तैनी लोगों का दवदबा , यानि पुरे ट्रांसपोर्ट निजाम पर बाहुबली का दबदवा आज भी बरक़रार है । गुंडागर्दी की संस्कृति के सिर्फ़ जाति बदले है नाम बदले है लेकिन लोगों पर उसका प्रभाव बरक़रार है । लेकिन मिडिया के प्रसार ने इन बाहुबलियों के खौफ के असर को फीका किया है । सरकार का दावा है कि उसके तमाम आला ओफ्फिसर्स के मोबाइल फ़ोन सार्वजानिक किए गए । कोई भी अपनी परेशानी आला ऑफिसर को बता सकता है । भरोसा बहाल करने की यह सरकारी पहल रंग ला रही है । मेरी भांजी शिवानी अपने मोबाइल में कई आला ओफ्फिसर्स के नम्बर सेव कर रखी है , पटना मे अपने माँ के साथ रहकर वह आई आई टी की तैयारी कर रही है । अपनी स्कूटी से उलझी ट्रैफिक व्यवस्था और एक अदृश्य खौफ के बीच वह रोज कोचिंग करने जाती है । और घर में बैठी माँ दरबाजे पर बैठ कर उसके सकुशल लौटने के लिए निरंतर इश्वर की प्रार्थना करती रहती है । व्यवस्था पर बच्चो का जितना भरोसा बढ़ा है माता पिता में शायद नही ।
लेकिन यह बदलाव सिर्फ़ मध्यम वर्ग के साथ मह्शूश किया जा सकता है । मेरे गाँव मे आर्थिक मंदी का कोई असर नही है । लेकिन अमेरिका से लेकर दुबई तक कई कई मुल्कों से कई नौजवान बेरोजगार हो कर वापस अपने गाँव लौट आए है । हालत बदलने का उन्हें इन्तजार है । लेकिन जमीनी हकीकत तरक्की के इन तमाम दावों को झूठ ला रही है । बिहार के ३८ जिलों मे से ३० पर नक्सालियों का प्रभाव बरक़रार है । ८० के दशक मे यह नाक्साली आन्दोलन खेत में काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी को लेकर शुरू हुआ था । आज वही मजदूर ने ख़ुद खेती बारी का जिम्मा संभाल लिया है । सिर्फ़ एक हिस्सा जमींदारों को पहुचाया जा रहा है । लेकिन फ़िर भी नक्सल की बात हो रही है फ़िर भी दलित, पिछडा ,अगड़ा की बात हो रही है । जातीय समीकरण के आधार खिशक गए है लेकिन राजनीती इस जातीय समीकरण को जिन्दा रखी हुई है । बिहार की चिंता बिहार से बाहर रहने वाले लोग ज्यादा कर रहे है । बिहारी कहलाने का अपमान पी कर निरंतर बिहार की सम्पनता का हिस्सा बन रहे है । सियासत से उन्हें कोई लेना देना नही क्योंकि उन्हें जात से नही बिहार से प्यार है ।


टिप्पणियाँ

bahut hi achcha lekh.........

प्यार करो या नफरत हम है बिहारी........

yeh title bahut achcha laga............
सच है दुनिया वालों की हम है बिहारी.
vaishali ने कहा…
आपने देखा है गैर बिहारियों के लिए आखे खोलने वाला है । लेकिन जिस तरह खगडिया में जातिये धमासान को नाक्साल्ली अटैक का रंग दिया जा रहा है, इसमे रत्ती भर भी सचाई नही है ,क्युकी ये बिहार के जातिये संधर्ष की ही अगली कड़ी है जो पिछले पाच साल से नीतिश सरकार ने काफी हद तक लगाम लगाने में कामयाबी पाई थी । लेकिन येही बिहार की ट्रेजेडी है जिन लोगो ने बिहार को ५० साल पीछे धकेल दिया ,जिसकी नीतिश कुमार ने काफी हद तक भरपाई की ,लेकिन ये न तो वह के लोग समझ रहे है और न ही नेता । बिहार बदला जरूर है इसका पुरा श्रेय सिर्फ़ एक और एक ही आदमी को जाता है वो है नीतिश कुमार । पुरे बिहार और उसके सिस्टम को बदलने के लिए एक नीतिश कुमार काफी नही है ।
बेनामी ने कहा…
Mishra ji aapne jaativad ka bahut achhe se beora diya lekin is artcle me kahi na kahi ek prejudice ke boo aati ahi. bar bar have aur have nots ke tulna karke apne ache aanklan ko halka kar diya.

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