नक्सल के खिलाफ ज़ंग से पहले ही होम मिनिस्टर का यू टर्न




नक्सल आतंक के खिलाफ नवम्बर महीने से जोरदार हमले की तैयारी थी . ऑपरेशन ग्रीन हंट की तैयारी मीडिया के द्वारा छन छन कर लोगों के बीच आ रही थी . नगारे बज रहे थे मानो फाॅर्स बस्तर के जंगल में घुसेंगे और गणपति से लेकर कोटेश्वर राव तक तमाम आला नक्सली लीडरों को कान पकड़ कर लोगों के बीच ले आयेंगे . लेकिन अचानक गृह मंत्री चिदम्बरम ने इन तमाम अभियान पर पानी फेर दिया . गृह मंत्री ने कहा है ओपरेशन ग्रीन हंट मीडिया का दुष्प्रचार था . नक्सल के खिलाफ ऐसे किसी अभियान की बात सरकार अबतक की ही नहीं है . यानि कैबिनेट कमिटी ओन सिक्यूरिटी की बात एयर फाॅर्स के ऑपरेशन की बात . नक्सल प्रभावित इलाके में सेना से मदद लेने की बात .सबकुछ महज एक बकवास था खबरिया चैनल अपने मकसद के कारण ऐसी खबर चला रहे थे . सरकार के इस अभियान के खिलाफ बुद्धिजीवियों का अभियान महज एक स्टेज शो था . गृह मंत्री ने कहा है कि वे नक्सल के खिलाफ अभियान छेड़ने की बात नहीं कह रहे है बल्कि अगर इस अभियान में राज्य सरकार उनसे मदद की अपेक्षा करती है तो उन्हें मदद दी जायेगी . यानि ज़ंग से पहले ही सरकार ने नाक्साली के आगे हथियार डाल दी है . कह सकते है कि नाक्साली मस्त सरकार पस्त .

दरअसल सरकार के मजबूत इरादे पर उसी वक़्त पानी फिर गया था जब नक्सलियों ने राजधानी एक्सप्रेस को अपहरण करके तकरीबन ३५० लोगों को बंधक बना लिया था . खास बात यह है कि सरकार अभीतक यह नहीं तय कर पाई है कि भारीअसलहे से लैश २०० लोगों की भीड़ यात्रियों को डरा रहे थे धमका रहे थे मोटे मोटे अक्षरों मे नक्सल के सन्देश ट्रेन के डिब्बों पर लिख कर राजधानी दिल्ली भेज रहे थे दरअसल वे नक्सली थे या फिर कोई और . पश्चिम बंगाल की सरकार कहती है कि वे ममता बनर्जी के लोग थे ,ममता दीदी
 कहती है वे सारे नक्सली थे . हालत यह है कि ममता ,माओवादी ,मार्क्सवादी के बीच उलझा मामले ने  भारत सरकार को भी एक कदम आगे और दो कदम पीछे चलने पर मजबूर कर दिया है .ओप लालगढ़ के ग्रीन हंट के नतीजे ने सरकार को यह चेताया है कि ढीले ढाले रबैये से नक्सालियों का खात्मा मुमकिन नहीं है , जाहिर है भारत सरकार कह रही है कि राज्य सरकार मोर्चा संभाले पीछे से मदद भारत सरकार करे गी . राज्य सरकार जानती है कि यह चढ़ जाओ बेटा शूली पर भला करेगा राम वाली बात है . हमें यह नहीं भूलना चाहिए शिवराज पाटिल के दौर में देश के ६० जिले नक्सल आतंक से प्रभावित थे आज देश के ६०३ जिलों में से २०३ जिलो पर नक्सलियों का दवदबा है . हरियाणा और केरल जैसे भूभाग बाले बस्तर रेजिओन में नक्सल की अपनी हुकूमत है वहा सरकार की रिट नहीं चलती .नक्सल का फ़रमान ही वहा कानून है . अबुज्मार और नालामल्ला के जंगलों पर नक्सालियों का कब्जा है और उसे खाली करवाने की जिम्मेवारी राज्यों के पुलिस वल पर छोडा जा रहा है .
जरा आप छत्तीसगढ़ सरकार की तैयारी पर गौर करे
राज्य में चार किलो मीटर की दुरी पर एक पुलिस वल की मौजदगी है
नक्सल प्रभावित बस्तर इलाके में एक पुलिस     की मौजदूगी ९ किलो मीटर पर है
राज्य में नक्सल के खिलाफ अभियान छेड़ने के लिए २०००-से ३००० पोलिसवल को जंगल वार्फारे की ट्रेनिंग दी गयी है ,जिसमे अधिकांश जवान राज्य के वी आई पी की सुरक्षा में तैनात है .
जंगल इलाके में खुफिया जानकारी के अभाव में सिर्फ इसी साल १५० से ज्यादा सुरक्षा वल मारे गए है .
जंगल के इलाके में सुर्क्षवालों की जितनी मौत नक्सल के हमलों से नहीं हुई है उससे से ज्यादा मौत मलेरिया से हुई है
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में जंगल लडाई में दक्ष नागा पुलिस फाॅर्स को उतरा गया ,लेकिन कुछ ही महीनो के बाद नागा फाॅर्स को वापस बुलाना पड़ा वजह जो भी हो ,
बस्तर इलाके में ९५ फीसद सड़के कच्ची है जिनमे अधिकांश जगहों पर नाक्साल्लियों का माइयन बिछे पड़े है .
लेकिन हम फिर भी राज्य सरकार से उम्मीद करते है कि राज्य सरकार अपनी लडाई खुद लड़ लेगी .
प्रधानमंत्री की यह चिंता दुरुस्त है कि आदिवासियों को हमने अधिकारों से बंचित किया हुआ है . जनजातीय विभाग के मंत्री कान्ति लाल भूरिया कहते है कि सरकारों की निति एंटी ट्राइबल रही है यही वजह है कि नक्सल ने आदिवासी इलाके में अपना विस्तार किया है अब  सरकार कह रही है नक्सल समस्या कानून व्यवस्था का मामला है ,विकास की धारा तेज करके नक्सल समस्या को ख़त्म किया जा सकता है . भारत सरकार की गुप्ता कमिटी की रिपोर्ट बताती है देश के ७० फीसद से ज्यादा लोग आज भी २० रूपये की आमदनी पर अपने परिवार का पालन करते  है .अगर मुख्या धारा से कटे हुए लोगों ने अभाव और विवशता के कारण बन्दूक उठायी है तो हमें उनके घरों में रौशनी लाने और दोनों वक़्त के भोजन व्यवस्था में इस भ्रष्टाचार सिस्टम मे ५० वर्ष लगेंगे .
गृह मंत्री के दो चेहरे है ,मिडिया के सामने उनका व्यक्तित्वा निर्णायक लीडर जैसे उभरता है लेकिन एक्शन के मामले वे कही से शिवराज पाटिल से अलग नहीं है .गृह मंत्रालय एक बार फिर झारखण्ड चुनाव का इन्तजार कर रहा है क्योंकि नक्सल के खिलाफ अभियान का प्रभाव कांग्रेस के वोट पर भी पड़ सकता है . पिछले महीने इसे महाराष्ट्र चुनाव के कारण विराम दिया गया था .हो सकता है ओपरेशन शुरू करते करते कोई और चुनाव सामने आ जाय . इसलियी हमें चुनाव के लम्बे सिलसिले तक नक्सल के खिलाफ अभियान की प्रतीक्षा तो करनी ही चाहिए .
तब तक हो सकता है कि कोटेश्वर राव और गणपति को ही सदबुधि आ जाय. तब तक अगर और १००० २००० लोग मारे जाते है तो सियासत पर इसका क्या फर्क पड़ेगा .क्योंकि पिछले १० वर्षों में हमने २०००० से ज्यादा लोगों को खोया है तब भी सरकार चल रही है  तब भी सरकार दुबारा चुनी जा रही है .

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