इस्तीफा भी दे सकते है प्रधानमंत्री ?

आम तौर पर अपना मुहं बंद रखनेवाले प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने आखिरकार अपना मुह खोला ,कई बार जवान फिसली ,कई बार सवाल टाल गए लेकिन एलोक्ट्रोनिक मिडिया के संपादकों के साथ बातचीत मे उन्होंने यह जरूर साबित कर दिया कि वे ज्यदादिनो तक अपना मुंह बंद नही रखेंगे .आमतौर पर प्रधानमंत्री साल मे सिर्फ एकबार मीडिया से रुबरु होते है लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घिरी सरकार के मुखिया होने के कारण उन्होंने यह जरूरत समझी कि अपना पक्ष लोगों के सामने रखे.उन्होंने यह साफ़ कर दिया कि वे मजबूर है ,उन्होंने यह भी साफ़ कर दिया कि सरकार मे हर फैसले उनके ही मुताबिक नही होते है .उन्होंने यह भी साफ़ कर दिया है कि गठबंधन की सरकार चलानी है तो मुखिया को कही न कही समझौता करना ही पड़ता है .यानि २जी स्पेक्ट्रुम मे मची लूट से वे पूरी तरह वाकिफ थे लेकिन वे राजा पर कोई कारवाई नही कर सके .उन्होंने यह भी साफ़ किया कि राजा को उन्होंने २००७ विधि सम्मत फैसले लेने को कहा था फिर भी राजा ने उन्हें अनसुना किया .खास बात यह है कि जब प्रधानमंत्री राजा के बारे मे सबकुछ जानते थे फिर उन्हें यु पी ऐ -२ के सरकार गठन के मौके पर दुबारा वही मंत्रालय क्यों सौपा  .प्रधानमंत्री कहते है कि ये गठबंधन की मजबूरी है या फिर वे यह कहना चाहते थे कि उन्हें सिर्फ मंत्रियों की लिस्ट दी गयी थी फैसला किसी और के हाथ मे था .
एक ईमानदार प्रधानमंत्री का भ्रष्ट प्रशासन प्रधानमंत्री के लिए जूमला बनगया है .यानि पिछले ७ वर्षों मे २जी ,सी डब्लू सी ,आदर्श ,इसरो -जैसे दर्जनों घोटाले सामने आये .देश का लाखो -करोडो रुपया लूटा जाता रहा और प्रधानमंत्री खामोश रहे क्या कोई इमानदार प्रधानमंत्री ऐसे तमाम आरोपों को अपने सर ले सकता है ?शायद नही यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने चुप्पी तोड़ी है .पिछले संसद सत्र के दौरान जब प्रधानमंत्री ने यह कहा था कि वे पी ए सी के सामने हाजिर होने के लिए तैयार है तो सबसे ज्यादा इस बयान पर आपति प्रणव मुखर्जी को  थी .तब विपक्ष ने मांग की थी जब प्रधानमंत्री पी ऐ सी को जवाब दे सकते है तो जे पी सी को क्यों नही .अपने को बेदाग बताते हुए प्रधानमंत्री ने यह साफ़ कर दिया कि किसी भी घोटाले मे उनका व्यक्तिगत कोई लेना देना नही है लेकिन जब टाइम्स नॉव के संपादक ने इसरो -देवास के मामले मे प्रधानमंत्री कार्यालय पर सवाल उठाया तो सवाल से असहज प्रधानमंत्री ने एक पूरा ड्राफ्ट पढ़ दिया .शायद यह पहला सवाल था जिसका जवाब प्रधानमंत्री ने नोटबुक से दिया था .प्रधानमंत्री के हर जवाब मे मजबूरी झलकती थी उन्होंने राजा के बारे मे जिस सफाई को आगे किया ऐसी सफाई वे दुसरे घोटाले को लेकर नही दे सके .यह उनकी दूसरी मजबूरी है लेकिन इतना तय है कि वे एक कदम आगे बढ़ चुके है .भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपना त्यागपत्र देकर वे कोई आदर्श स्थापित नही करना चाहते है लेकिन उन्हें इस बात का एहसास है कि इस मुल्क मे भ्रष्टाचार कोई बड़ा मुद्दा नही हो सकता .अल जजीरा के संपादक का सवाल लेते हुए प्रधानमंत्री ने अपना विश्वास पुख्ता कर दिया कि यहाँ मिस्र जैसे हालात नही होंगे .यानि लोग इन तमाम चीजो की आदि है .बजट सत्र के ठीक पहले प्रधानमंत्री का यह संवाद दूसरी विपक्षी पार्टियों के लिए एक सन्देश हो सकता था लेकिन सारे तोहमत बीजेपी पर डाल कर प्रधानमंत्री ने यह भी साबित कर दिया कि सत्र सुचारू रूप से चले इसके लिए वे कोई व्यक्तिगत पहल नही करने जा रहे है .तो यह माना जाय कि प्रधानमंत्री की यह प्रेस कान्फेरेंस  आम अवाम के लिए थी या फिर वे कांग्रेस मठाधिशो को यह बताना चाहते थे कि वे मुखिया अपनी शर्तो पर रहेंगे और उसकी तय सीमा उन्होंने बजट सेसन रखा है .सत्र के बाद अगर प्रधानमंत्री को अपने हिसाब से मंत्रिमंडल नही बनाने दिया गया तो वे इस्तीफा दे सकते है .

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