क्या मोदी राजनेता हैं या फॉर्मूले का पैकेज !
मोदी सरकार पास या फेल ! पिछले एक हफ्ते से इस सवाल का हल
ढूंढने में मीडिया एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है। लेकिन मूल सवाल पीछे छूट
जाता है कि मोदी सरकार कौन सी परीक्षा दे रही है ? सवाल यह भी फेहरिस्त से
बाहर है कि क्या ऐसे ही सवाल देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों के लिए भी पूछा
गया था ... अगर नहीं तो सिर्फ मोदी के लिए ही क्यों ? सवाल केजरीवाल भी
पूछ रहे है ,नीतीश ,लालू और कांग्रेस के हर नेता पूछ रहे हैं जो मोदी से
अपने को बेहतर मानते हैं।यानि देश को यह बताया जा रहा है कि "कहाँ राजा भोज
और कहाँ गंगू तेली "
पिछले एक दशक में इस मुल्क ने भले ही जी
डी पी ग्रोथ का आंकड़ा डबल डिजिट को छू लिया हो लेकिन राजनेता या राष्ट्रीय
नेता के तौर पर उसे फुके कारतूस ही मिले, क्षेत्रीय क्षत्रपों और जातीय
सरगनाओं की महत्वकांक्षा इस दौर में राष्ट्रीय क्षितिज पर छा जाने की है ,
सेक्युलर गठबंधन से लेकर त्याग और विरासत के कई फॉर्मूले सामने आये लेकिन
देश को राष्ट्रीय नेता के रूप में न तो इंदिरा मिली न ही अटल। न ही लोहिया
मिले न ही नम्बूदरीपाद। . यह दौर ऐसा था जिसमे सत्ता और अपनी व्यवस्था
बनाए रखने के लिए प्रधानमंत्री दिल्ली में नियुक्त किये जाने लगे। . तो
क्या मोदी ने वर्षो बाद इस व्यवस्था को तोड़ दिया था ,क्या मोदी वर्षो बाद
एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित हुए थे । शायद हाँ ! वर्षो बाद पहली
बार इस देश ने उम्मीदों के साथ एक प्रधानमंत्री का चुनाव किया था... फिर
क्षेत्रीय क्षत्रप उन्हें फेल क्यों करार दे रहे हैं ? वजह वे मोदी को
सिर्फ फॉर्मूले का पैकेज मान रहे है ,मोदी को राष्ट्रीय नेता मानने में
उन्हें आज भी झिझक है।
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