"इतनी नाराजगी क्यों है "

30 साल पहले सिस्टम से नाखुश युसूफ शाह सरहदपार चला गया और आतंकवादी सईद सलाहुद्दीन बन गया अब पाकिस्तान में जेहादी कौंसिल के चेयरमैन हैं. । ३० साल बाद उसी कश्मीर का एक नाखुश नौजवान बुरहान वानी ,हिज़्बुल मुजाहिद्दीन का कमांडर बनकर सिस्टम बदलने के बजाय मुल्क की अस्मिता पर चोट करने लगा और मारा गया। उसी सिस्टम से नाराज कश्मीर के कुछ नौजवानों ने पत्थर उठा लिया  है और सुरक्षाबलों से दो दो हाथ करने को तैयार है। लेकिन उसी सिस्टम में शब्बीर अहमद पिछले एक हफ्ते से रात -दिन एम्बुलेंस चलाकर रगड़ा में  घायल नौजवानों को हस्पताल पहुंचा रहा है। पथरवाजो के नाराजगी से बचने के लिए वह हेलमेट पहनकर एम्बुलेंस चलाता है लेकिन एक सवाल जरूर पूछता है "इतनी नाराजगी क्यों है " ?


आज हर कोई कुछ ज्यादा ही नाखुश है ,कश्मीर में ओमर अब्दुल्लाह नाखुश है. (उन्ही की हुकूमत में ११० बच्चों की पथ्थरवाजी में मौत हुई थी ) महबूबा नाराज है कि अलगाववादी उन्हें काम करने नहीं दे रहे ,अलगाववादी नाराज है कि महबूबा ने उनकी अहमियत क्यों कम कर दी ? दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल नाराज है ,जनता उनसे सवाल पूछ रही है ऊँगली पी एम मोदी पर उठा रहे है।  राहुल बाबा नाराज है ,यहाँ भी कसूरबार मोदी ही हैं. नीतीश जी नाराज है लालू नाराज है ,मायावती ,मुलायम नाराज है और तो और शिवसेना और अकाली  सरकार की व्यवस्था से नाराज हैं. फिर नाराज़ शब्बीर अहमद जैसे लोग नहीं है जो अपने काम को जिम्मेदारी से करते है और उसी में जीते हैं. 

जिनके हाथ में सिस्टम ठीक करने की जिम्मेदारी है और ओ नाराज है तो माना जायेगा कि वे सिर्फ सियासत करना जानते है और कुछ नहीं।  लेकिन सिस्टम बदलने और चलाने की जिद में एक स्वतः अहंकार कभी कभी लोगो की नाराजगी बढ़ा देती है जो आज कश्मीर में हो रहा है। बुरहान वानी हिज़्बुल का पोस्टर बॉय था ,जिसके हजारो फ्रैड्स फॉलोविंग  थे। यह बात कश्मीर की हुकूमत जानती थी।   ऐसी स्थिति में गुस्साए नौजवानों को पुलिस के भरोसे छोड़ना कितनी समझदारी थी।  हुर्रियत के लोग जनाजे में जाना चाहते थे तो हुकूमत की क्या परेशानी थी ,कानून व्यवस्था तोड़ने के लिए उनको जिम्मेदार ठहराया जा सकता था। आज गुस्साए भीड़ का कोई लीडर नहीं है।    इलाके के  एम एल ए ,एम पी और दूसरे प्रतिनिधि जो  टैक्सपेयर के पैसे से अपनी सियासत करते है वो  कहाँ है ? अगर स्थानीय लोगों का गुस्सा महबूबा सरकार से है तो १० साल से राजभवन में बैठे गवर्नर क्या कर रहे थे ? सत्तापक्ष और विपक्ष अगर कश्मीर में अपनी भूमिका खो चुके थे  ,तो देश का गृहमंत्रालय नज़र रखने के बजाय सीधे दखल क्यों नहीं दे रहा  है ?

अगर कश्मीर हमारा है तो वहां के लोगों की नाराजगी भी हमें समझनी होगी।सिर्फ संसद में चर्चा भर कर लेने से सरकार और विपक्ष अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते । देश की संसद और उसके सांसद अगर लोगों से संवाद करने जमीन पर उतरेंगे तो शायद लोगों में नाराजगी  कम  होगी , टुटा हुआ संवाद फिर जुड़ेगा। . बरना अपनी डफरी ,अपना राग यहाँ सब बजा रहा है ,यहाँ हर कोई हर से नाराज है। 

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