क्या गुजरात का चुनाव सैकोलॉजिकल वॉर है
किसने कहा गब्बर सिंह टैक्स तो किसने कहा तू चाय बेच ,औरंगजेब ,शहजादा ,साहब हर दिन सोशल मीडिया के ट्रेंडिंग गुजरात असेंबली चुनाव में अखबारों और टीवी के हैडलाइन बनाती है। तो क्या गुजरात का चुनाव सैकोलॉजिकल वॉर में तब्दील हो गया और मीडिया सोशल मीडिया के प्रोपेगंडा में ट्रैप होकर रह गया है। तो क्या गुजरात का प्रोग्रेसिव समाज राजनीतिक पार्टियों के बहकावे फंस गया है। 22 साल के बीजेपी शासन के एन्टीइन्कम्बन्सी की चर्चा यहाँ नहीं हो रही है ,सरकार के भ्रष्टाचार की चर्चा कांग्रेस पार्टी अपने मैनिफेस्टो में भी नहीं कर पायी है। तो मुद्दे क्या हैं " पाटीदार " वही पाटीदार समाज जो गुजरात में सबसे धनी और बुद्धिमान समाज है उसे आज अनामत यानी आरक्षण चाहिए।
नेशनल सैंपल सर्वे में इस समाज को सबसे ज्यादा प्रोग्रेसिव माना गया है और है भी ,पार्टी चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी पाटीदार समाज को सबसे ज्यादा सीटे मिली है। यानी 13 फीसद की आवादी वाला पटेल समाज ने दोनों पार्टियों के 140 सीटें झटक ली है। राज्य में सरकार जिसकी भी बने पटेल की भूमिका अहम होगी।
नेशनल सैंपल सर्वे में इस समाज को सबसे ज्यादा प्रोग्रेसिव माना गया है और है भी ,पार्टी चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी पाटीदार समाज को सबसे ज्यादा सीटे मिली है। यानी 13 फीसद की आवादी वाला पटेल समाज ने दोनों पार्टियों के 140 सीटें झटक ली है। राज्य में सरकार जिसकी भी बने पटेल की भूमिका अहम होगी।
कांग्रेस इस चुनाव में फूंक फूंक कर कदम रख रही है। अहमद पटेल और शंकर सिंह बघेला को अलग करके राहुल गाँधी ने चुनाव की कमान को अपने हाथ में लिया है। पिछले 22 सालो से सत्ता से दूर रही पार्टी को हर बूथ के लिए डेडिकेटेड पोलिंग एजेंट न मिल रहे हों लेकिन राहुल गाँधी के रोड शो और रैली में जबरदस्त भीड़ जुट रही है। तो क्या कांग्रेस में राहुल गाँधी ने जान फूंक दी है ? तो क्या कांग्रेस का के सॉफ्ट हिन्दुत्वा का फार्मूला काम करने लगा है ? लेकिन इतना तो तय है कि कांग्रेस अपने बेसिक से दूर हो गयी है और सेकुलरिज्म से तत्काल तौब्बा कर चुकी है। कांग्रेस मैनिफेस्टो रिलीज़ के दौरान एक पत्रकार ने जिज्ञासाबस भरत सिंह सोलांकि से आखिर पूछ ही लिया ,इस मैनिफेस्टो में मैनुरिटी यानी मुस्लिम के लिए क्या है ? कांग्रेस ने इस बार एम शब्द से परहेज कर लिया है ,जैसे ही मुस्लिम में फंसे दूकान बंद ! कांग्रेस ने एक अदृश्य खौफ के कारण सोशल इंजीनियरिंग का अलग फार्मूला बनाया है अब " खाम "के बदले " खाप " हो गया है जिसमे 11 फीसद वोट वाले मुस्लिम नहीं हैं ,क्योंकि उन्हें बताया गया है कि वे अपने हैं।
तो क्या इन वर्षों में राहुल गाँधी अगर मुस्लिम समाज की सुध लेने नहीं पहुंचे तो वे क्या हाशिये पर चले गए हैं ? एक नजारा अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ़्रंट का देख आइये मोदी सरकार ने करोडो रूपये खर्च करके साबरमती के दोनों तट को दर्शनीय स्थल बना दिया ,आज इन इलाकों सबसे ज्यादा मुस्लिम समाज ने ही इसका फायदा उठाया है। गुजरात के औद्योगिकीकरण में मुस्लिम समाज ने काफी तरक्की की है। 2002 के दंगे के बाद गुजरात में एक भी दंगा नहीं हुआ और इसका सबसे ज्यादा फायदा उद्योग को ही हुआ। शहरीकरण में मुस्लिम समाज की बढ़त ने उसे तरक्की में अच्छी भागीदारी दी है। मुख्यमंत्री विजय रुपानी के रोड शो में भारी तादाद में मौजूद मुस्लिम समुदाय को देखकर भले ही इसे एक नयी शुरुआत न माने लेकिन यह समाज यहाँ सिर्फ वोट बैंक नहीं माना जा सकता।
कांग्रेस का जनाधार आज भी गुजरात में है ,इसे इंकार नहीं किया जा सकता। उसके सोशल इंजीनियरिंग के काट में पी एम् मोदी ने गुजरात अस्मिता के नाम पर समाज को जोड़कर 13 साल शासन किया लेकिन अर्थशात्र के जातीय पेंच में यहाँ समाज आज भी फसा हुआ है और यह बात मोदी जी को गुजरात छोड़ते ही मुखर हुई है। लेकिन इतना तो तय है कि यहाँ समाज कभी मोदी के लिए ही एकजूट हुआ था तो मोदी को ही सामने रखकर एक बार फिर कोई फैसला करेगा। पटेल हो या ठाकरे या दलित समुदाय यह कहने आज भी गर्व मह्शूश करता है कि मोदी को पीएम उसने बनाया है।
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