नजरिये में फसी सियासत .....
"सारी जिंदगी बैठ के खाइये सिर्फ 40 रूपये में " गली में एक व्यक्ति जोर जोर से आवाज़ लगा रहा था। बाहर निकल कर करीब से देखा तो वह व्यक्ति लकड़ी का पीढ़ा बेच रहा था।(ग्रामीण पृष्ठभूमि में लोग पीढ़े पर बैठ कर भोजन करते हैं ) हिंदुस्तान की सियासत में आम आदमी के लिए राजनेता आज वही पीढ़ा बेच रहे हैं । यानी नजरिये की सियासत में फसे लोग गली नुक्कड़ों में लगने वाली हर उस आवाज से प्रभावित हो रहे हैं जो उसे तात्कालिक लाभ का भरोसा देती है। किसान कर्ज माफ़ी के लिए लालायित है ,मध्यम वर्ग ज्यादा से ज्यादा करों में छूट चाहता है ,अनाज से लेकर सारी चीजें सस्ती पाना चाहता है ,व्यापारी के लिए हर टैक्स उसके साथ धोखा है। सरकारी कर्मचारी/अफसर अपने लिए हर सुविधा हर चीज पक्की चाहता है ऊपरी आमदनी के साथ । नौजवान तबका रोजगार चाहता है जो उनका हक़ है । लेकिन इन चाहनेवालो में कोई यह चाहने की कोशिश नहीं कर रहा है कि मुफ्तखोरी से देश की बुनियाद नहीं बनती ,मुफ्तखोरी कभी अगली पीढ़ी के लिए मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं दे सकती । ऊपरी आमदनी कभी योजनाओं को जमीन पर नहीं उतार सकती।
लेकिन नजरिये में फसी सियासत एक रूपये चावल और दो रूपये गेहूं बेचने की वकालत करती है और किसानो को लागत से 1. 5 गुनी ज्यादा एम एस पी देने का वादा भी करती है। देश में आज अनाज से लेकर दलहन और हरी सब्जी का सरप्लस प्रोडक्शन है ,बाज़ार में मांग से ज्यादा आमद है ,स्टोरेज की उतनी व्यवस्था नहीं है क्या यह समस्या किसानो की ऋण माफ़ी से दूर होगी। पिछले 10 वर्षों में 3 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा की रकम ऋण माफ़ी में बाटी गयी। किसानो की समस्या जस की तस है। पिछले वर्षो में टैक्स पेयर की गाढ़ी कमाई 4 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा "मनरेगा" में खर्च किया गया क्या ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर हुई ? क्या इस प्रचंड लूट में गरीबों को रोजगार की गारंटी मिली ? करोडो /अरबो रूपये के इंदिरा आवास जैसे दर्जनों सामाजिक कल्याण योजनाए आम लोगों के जीवन स्तर को उठाने कोई योगदान दे पायी? अगर नहीं तो फिर इन योजनाओं में भारी खामी है या लागू करने वाले शातिर बईमान हैं जिन्होंने सिस्टेमेटिक लूट को संस्थागत रूप दे दिया है।
90 के दशक में प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने अपनी बहुमत बचाये रखने के लिए हर सांसद को क्षेत्र विकास के लिए 25 लाख रूपये की एक स्कीम दी. इस स्कीम की लोकप्रियता का आलम यह है कि यह निधि करोडो रूपये की हो गयी और आज यह सांसद/विधायक निधि योजना करप्शन की जड़ बन गयी है। एक प्रयोग में प्रधानमंत्री मोदी ने आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत की थी जिसमे हर सांसद को एक गांव गोद लेना था और अपने निधि से उस गांव का विकास करना था । आज जरा उन गाँव की हालत देख लीजिये और कम से कम इस योजना को तत्काल बंद करने की पहल कीजिए।
लेकिन इस देश में आमिर खान को डर लगता है ,नसीरुद्दीन शाह को गुस्सा आता है ,शाहरुख़ खान को असहिषुणता दिखती है। अच्छे भले इतिहासकार और गाँधीवादी रामचंद्र गुहा गाय मांस खाकर फोटो सोशल मीडिया पर डालते हैं । बीफ बैन और इसको लेकर उठ रही आवाज़ के कारण कई प्रगतिशील विद्वानों ने अवार्ड वापसी की है। यह देश क्या सचमुच इतना बुदजिल है जो सिर्फ या तो मुफ्तखोरी चाहता है या अपने स्वार्थ में अंधे लोगों के नजरिये से प्रभावित होता है। देश ने वर्षो बाद एक मजबूत प्रधानमंत्री चुना था जिसका एहसास पूरी दुनिया को भी हुआ है लेकिन अगर राज्य दर राज्य चुनाव जितने के चक्कर में प्रधानमंत्री सिर्फ चुनाव जीतेंगे तो देश को उनसे अपेक्षा कभी पूरी नहीं होगी।
चार ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था वाले भारत को अगले पांच वर्षो में चीन के मुकाबले खड़ा होना है ,समृद्ध देशो की पंक्ति में अगली कतार में बैठना है तो प्रधानमंत्री मोदी को एजेंडा 2022 के लिए इन तमाम मुफ्तखोरी की योजनाओ को बंद करना होगा। उन्हें अपने हर नौजवानो के उम्मीदों पर खड़ा उतरना है तो उन्हें भ्रष्ट और निक्कमी नौकरशाहों की नाराज़गी मोल लेनी होगी। उन्हें नजरिये की सियासत की काट में ज्यादा मिहनत नहीं करनी है वे हिमालय से राजनीति की दुनिया में आये थे और वापस लौट सकते हैं। सच तो यह है , जो मोदी इस देश में नोटबंदी लागू कर सकता है और इतनी मुश्किलों के वाबजूद पूरा देश उनके साथ खड़ा रहा। वह व्यक्ति कुछ भी बदलाव ला सकता है और देश उनका साथ देगा। लेकिन अगर मोदी जी सत्ता की सियासत में गलियों में वही पीढ़ा बेचते नजर आये और कांग्रेस /लेफ्ट की भ्रष्ट योजनाओ को बेचते रहे तो यकीन मानिये 75 साल की उम्र का आज़ाद भारत में 2022 में देश का नौजवान तबका सिर्फ अपने हिस्से के पेंशन/भत्ता के लिए सड़को पर संघर्श करते हुए दिखेगा। युवा देश में एक नयी सोच की जरुरत है जहां फैसले का स्वाद भले ही कुछ पल तीखा लगे लेकिन असर खुशहाली लाये और यह खुशहाली हर के अकॉउंट में 15 लाख एकाउंट में डालने के जुमले से नहीं आएगी ।
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