स्वच्छ भारत की स्वच्छ राजनीति का मॉडल @75


मेरा वोट किसको ? लोगों  से ज्यादा चिंता मीडिया को है। आपने इससे पहले कभी यह जाना कि आप कैसे हो ,आपकी क्या परेशानी है ? अगर यह नहीं जाना तो सिर्फ यह सवाल क्यों ? लेकिन मेरे पास भी  एक सवाल है मथुरा के उस बुजुर्ग किसान ने थोड़ा आश्वस्त होकर पूछा  "मोदी को हराने के लिए वोट क्यों ? मैं  व्यक्तिगत इसे यक्ष प्रश्न नहीं मानूंगा । अमूमन पिछले 30 वर्षो से  भारत मे लोग हराने  के लिए ही वोट करते हैं जिसमे कोई अदृश्य ही सत्ता की बागडोर संभालते हैं। ऐसा वर्षों बाद 2014 में हुआ जब लोगों ने पूर्ण बहुमत से मोदी को जिताने के लिए वोट किया था। लेकिन यह सवाल आज दुरुस्त है कि क्या हिंदुस्तान सिर्फ नैरेटिव /प्रचार को आधार बनाकर मोदी को हराने के लिए वोट करेगा। या मोदी में स्वच्छ भारत की छवि देखेगा या फिर बंटे हुए समाज का बटा हुआ निर्णय देगा ?
कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी रही है लेकिन आज इसकी हालत ऐसी क्यों है ? यह चिंता किये बगैर  अगर राहुल गांधी सिर्फ मोदी को हराने के लिए चक्रब्यूह की रचना कर रहे हैं तो शयद यह उनकी कोर टीम  की नासमझी होगी। जिसने अपने आधार को विस्तार देने से ज्यादा ध्यान दूसरी राजनीतिक दलों के साथ तालमेल बनाने पर दिया है  । शायद राहुल गांधी इस भ्रम में है कि तक़रीबन 20 राज्यों में अलग अलग क्षेत्रीय पार्टियां मोदी को हराने में कामयाब होती है तो सत्ता के फॉर्मूले में उनकी भूमिका बढ़ेगी। यानी देश की चिंता सिर्फ  राहुल जी करेंगे लोग मोदी के अलावे किसी को वोट करे। फिर उनके घोषणापत्र वाले "न्याय " का क्या होगा ?

लोग अभी तेजश्वी ,अखिलेश ,मायावती ,ममता ,ओबेसी ,के सी आर ,स्टालिन ,सोरेन, रावण ,येचुरी ,देवेगौड़ा को वोट करे ,देश में सुख शांति ये ले आएंगे। आज देश में हर पार्टियों के मेनिफेस्टो में लाखों की तादाद में युवाओं के लिए नौकरी पैदा की जा रही है। बेरोजगारी के नाम पर देश के 42 करोड़ वोटर्स को मोदी को दुश्मन नंबर वन बताया जा रहा है। राहुल जी को शायद  भट्टा पारसोल याद होगा ,अगर देश में जमीन अधिकृत नहीं होगी तो इंडस्ट्री और इन्वेस्टमेंट कहाँ होंगे। आज हर किसान के बच्चों को नौकरी चाहिए लेकिन उसकी एक इंच जमीन अधिकृत नहीं होगी जैसा राहुल गाँधी कहते हैं। हाँ मुलायम सिंह यादव और मायावती जी जैसा अधिग्रहण न हो इसका भी ख्याल रखा जाना जरुरी है। लेकिन सबसे बड़े मुद्दे पर  सभी पार्टियां चुप है कि हर साल देश में 1. 5 करोड़ से ज्यादा नौजवान नौकरी की कतार में लग जाते हैं। इस भयावह जनसंख्या का नियंत्रण कैसे हो ?   हर पार्टी को अपना वोट बैंक चाहिए। और इसी गणित पर गठबंधन हो रहे हैं।
अखिलेश जी सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाते हुए अहीर बटालियन बना देंगे ,किसानों के कर्जा माफ़ कर देंगे लेकिन गरीब बच्चों के क्वालिटी एजुकेशन के लिए उनके पास कोई रोड मैप नहीं है। खेती किसानी को लेकर सबका एक ही रोडमैप है "कर्जा माफ़ " लेकिन उस किसान को सबल बनाने और देश को कर्ज मुक्त बनाने  की कोई पहल नहीं है। हालांकि इतनी शोर के पीछे यह वजह भी है कि योजनाओं को आमलोगों के बीच ले जाने में टीम मोदी भी असरदार साबित नहीं हुई है। देश विदेश में कुशल नेतृत्व की छवि मोदी जी ने जरूर बनायीं है लेकिन परिवर्तन को जमीन पर उतरना अभी बांकी है। 

तो क्या मेरा वोट मोदी को ? यह सवाल  मेरे लिए भी  है। देश के कुछ बुद्धिजीबियो और कांग्रेस के सलाहकर्ताओं के बीच सोनिया गाँधी एक बार फिर नेशनल एडवाइजरी कौंसिल या सुपर कैबिनेट बनाने के आईडिया को एजेंडा 2019 के रूप में रखती है तो माना जाएगा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर झूठी नहीं थी। कांग्रेस के इस महापतन के बीच अगर देश की सत्ता को कुछ मुट्ठी भर लोगों के प्रभाव में ले जाने की बात सोनिया जी आज भी सोचती है  तो कड़े फैसले और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के बात फिर बेमानी होगी। खुश करो के लिए मशहुर  नौकरशाह कभी भी सही निर्णय को आगे नहीं बढ़ा पाएंगे। देश सिर्फ फ्री बी यानी घूस देकर वोट हासिल करने से नहीं बढ़ेगा इसका सूत्र गांधी जी से भी लेना होगा।
 गांधी जी  ग्राम स्वराज की बात करते थे ,ट्रस्टीशिप की बात करते थे क्योकि वे किसी भी तत्कालीन नेता से ज्यादा देश को जानते थे। सत्ता में परिवारवाद प्रजातंत्र का घिनोना चेहरा है। सत्ता पर एकाधिकार यह भी उतना ही कुरूप है। लेकिन इन सबके बावजूद  देश बदल रहा है।   यह परसेप्शन लोगों के मन में बना है कि  देश एक कुशल नेतृत्व के हाथ में है ? लेकिन 130 करोड़ की आवादी और सीमित संसाधनों वाले इस देश में आज जिस कदर चुनाव के नाम पर पैसे बहाये और लुटाये जा रहे हैं इस हालत में गाँधी का यह देश असहाय और बंधक ही महसूस कर रहा है। क्या इस हालत में यह देश कभी एक ईमानदार और सच्चा जन प्रतिनिधि को चुन पायेगा। अगर देश की संसद इस दौर में स्वच्छ नहीं हुए तो ग्राम सभा  को स्वच्छ होना अभी बांकी है। इस साल गांधी जी की 150 वी जयंती है क्या यह देश स्वच्छ भारत की स्वच्छ राजनीति का मॉडल दुनिया के सामने प्रस्तुत करेगा ? क्या यह देश कभी  स्वावलम्बी भारत का गौरव हासिल कर पायेगा । क्या आश्रित भारत को मुफ्तखोरी से निजात मिलेगी। यह चुनौती जितनी मोदी की है उतनी ही चुनौती आम मतदाताओं  के लिए भी है।  उतनी ही चुनौती राहुल गाँधी के लिए भी हो सकती है।



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