अमित शाह : यानी पी एम मोदी के आडवाणी

गुजरात असेंबली इलेक्शन के दौरन पत्रकारों के बीच ऑफ द रिकॉर्ड बात  करते हुए अमित शाह से मैं ने पूछा था कि लोगों की बढ़ती उम्मीदें इस बार पार्टी को नुकसान पंहुचा सकती  है? सौराष्ट्र के इलाके में मैंने लोगों से ये नाराजगी सुनी थी। गर्मी के सीजन में कई इलाकों में रोज पानी नहीं पहुँच पाता था । जबकि कुछ  साल पहले तक इन इलाकों में हफ्ते में एक बार पानी उपलब्ध होना बड़ी बात होती  थी। तब यहाँ टैंकरों से पानी भेजा जाता था। अब हर घर तक पाइप लगे हैं। अमित शाह का जवाब था " लोगों में एस्पिरेशन बढ़ना ,लोगों को तरक्की के साथ चलना  ही तो हमारे लिए परिणाम लाता हैं। बीजेपी दूसरे पार्टी से अलग क्यों है क्योंकि इससे लोगों की उम्मीदे जुडी हैं। जाहिर है नाराज भी वे हम से ही  होंगे। " आप माने या न माने गुजरात में निश्चिन्त भाव से उन्हें चुनाव लड़ते देख यह जरूर लगा था कि अमित शाह इस दौर में प्रधानमंत्री मोदी के बाद  सबसे जीनियस राजनीतिज्ञ हैं।
विविधताओं से भरे इस देश के  सियासी समाजी मिजाज को समझने वाला व्यक्ति पहले पार्टी अध्यक्ष फिर  गृह मंत्री बना है तो माना जाएगा कि यह मोदी सरकार का महत्वपूर्ण फैसला था जिसने उन्हें आज लाल कृष्ण आडवाणी के बराबर ओहदे पर खड़ा कर दिया है। 
90 के दशक में  लाल कृष्ण आडवाणी अटल जी के नंबर 2 थे। अटल जी के नेतृत्व में सरकार बनी तो आडवाणी जी नंबर 2 की भूमिका में गृह मंत्री बने ।  ये अलग बात थी कि उस दौर में अमित भाई गांधीनगर में आडवाणी जी के चुनाव प्रभारी हुआ करते थे। गांधीनगर क्षेत्र में कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से संपर्क का जिम्मा अमित शाह का होता था। 
इतिहास अपने आपको कैसे दोहराता है यह भी अमित शाह के साथ देखा जा सकता है। पहलीबार लोकसभा चुनाव अमित शाह ने गांधीनगर से लड़ा जिसका नेतृत्व वर्षों तक आडवाणी जी करते थे और पहलीबार अमित शाह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए तो नार्थ ब्लॉक में वही गृह मंत्रालय मिला जहाँ 1999 से 2004 तक लाल कृष्ण आडवाणी बैठे थे। यह भी संयोग है कि गुजरात के सरदार पटेल के बाद लाल कृष्ण आडवाणी को लौह पुरुष माना जाता था अब बारी एक और गुजराती कर्मवीर  की है जिन्हे इस कतार में अपने लिए लौह पुरुष के शौर्य को रेखांकित करना है। 
कौन यकीन करेगा ठीक एक महीने पहले एन डी ए  के क्षेत्रीय क्षत्रप और राजनाथ सिंह सहित बीजेपी के टॉप लीडर अपने अमित भाई के रोड शो में गांधीनगर पहुंचे थे ,क्या उन्हें यह इल्म था कि वे अगला गृह मंत्री के चुनाव प्रचार में शिरकत कर रहे हैं। क्या उन्हें इल्म था कि महागठबंधन की तमाम चुनौतियों को धता बताते हुए बदले सामाजिक समीकरण में फिर उत्तर प्रदेश और बिहार में अमित शाह परचम लहरायेंगे ? डंके की चोट पर जो शख्स कह रहा था कि  मैं  50 फीसद वोट शेयर की राजनीति करता हूँ उसने 17 राज्यों में इस बार अपना वोट प्रतिशत 50 फीसद को पार कर लिया है । 
2014 में जब पहलीबार जब अमित शाह को गुजरात से अलग उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रभारी बनाया गया तो कई लोग मजाक करते थे मोटा भाई को नहीं पता ये उत्तर  प्रदेश है जहाँ बायां हाथ क्या कर रहा है वह  दाए को पता नहीं होता है। लेकिन अपने 60 फीसद वोटर को टारगेट बनाकर अमित शाह ने अभियान छेड़ा और 1,47000 बूथ पर पन्ना मैनेजर के दम पर मेरा बूथ सबसे मजबूत का संकल्प पूरा किया। 52 फीसद वोट पर पहलीबार बीजेपी ने कब्ज़ा जमा कर 72 सीटें जितने में कामयाबी पायी थी । माइक्रो मैनेजमेंट का मास्टर अमित शाह ने ग्राउंड लेवल पर नेतृत्व खड़ा करने की अद्भुत कला भी पायी है और हिंदुस्तान में बीजेपी के विकल्प वाली तमाम पार्टियों का कद बौना कर दिया है। 
अपने एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था यह डर भी जरुरी है। कानून का राज हो उसका सम्मान हो शायद इसी सन्दर्भ में उन्होंने कहा था। आज अमित शाह को लेकर कुछ बुद्धिजीवी  भय का वातावरण बना रहे हैं। अपने हिसाब से वे निगेटिव पब्लिसिटी की कोई कोशिश नहीं छोड़ रहे हैं लेकिन शायद वे भूल जाते हैं कि कांग्रेस की गैर कानूनी प्रपंचो के कारण अमित शाह को वर्षों तक बुरे दिन से भी दो चार होना पड़ा था । उनपर जितना जुल्म ढाया गया वे उतने ही मजबूत लीडर बन कर उभरे। कह सकते हैं कि वे आग से तप कर आज कुंदन बने हैं लेकिन अपने को साबित करने के लिए उनके सामने कश्मीर से लेकर दर्जन भर चुनौतियां मुहं बाए खड़ी है। पार्टी के बाद उन्हें अब मजबूत देश बनाना है जहाँ हर कोई अपने को सुरक्षित और सबल महसूस करे। विनोद मिश्रा 
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