अपराजीत कोसी या अपराजिता जातवादी मानसिकता : मिथिला को बचाना है
"पग पग पोखरि माछ मखान ,सरस बोल मूसकी मूख पान ,विद्या वैभब शांति प्रतीक ... ई मिथिला थीक"। लेकिन सरलता ,सरसता और मुस्की वाला मिथिलांचल में कोसी ,कमला बागमती ,गंडक के प्रलय में कराहती ज़िंदगी के बीच आज उस मिथिला के वैभव को देख आइये। जीवन संघर्ष की इससे भयानक तस्वीर आपने शायद ही कभी देखी होगी । हिंदी और मैथिली साहित्य के महान विद्वान और कोसी अंचल के बाढ़ पीड़ित राजकमल चौधरी से बेहतर मिथला के इस सलाना फोटो ऑप और मौत के मुहं से निकलने की आमजन की जद्दोजेहद शायद नहीं देखा होगा। “गारंटी ऑफ पीस” खत्म हुआ …विद्यापति के गीत अब सुर ताल खो चूके हैं । रूस और मेक्सिम गोर्की की कहानी अब किसी मैथिल के दरबाजे पर डिसकस नहीं हो रही है । डकैती और अपराध की चर्चा भी लगभग बंद हो चुके हैं। सोना-चानी और बाज़ार का हाल लेने वाला आजकल कोई नहीं है । उदासी और सन्नाटे के बीच सिर्फ अपराजिता मौजूद है।
सच में बागमती, कमला, बलान, गंडक और खासकर कोसी तो अपराजिता है ,इसे कोई पराजित नहीं कर सका ! यह किसी के बस की बात नहीं थी कि इसकी प्रचंडता को पराजित किया जा सके। सरकार आएगी ,चली जायेगी। मिनिस्ट्री बनेगी ,भंग होगी , लेकिन ये कोसी ये बागमती ,ये कमला बलान अपनी प्रलयंकारी गति से गांव दर गाँव तबाह बर्बाद करती जायेगी। हरियाली को नोचते खसोटते हुए ,माल मवेशी को अपनी धारा में बहाते हुए ऐसे ही मिथििला को कंंंं बनाती रहेेेेगी और हम मूकदर्शक बने रहेंगे।
सच में बागमती, कमला, बलान, गंडक और खासकर कोसी तो अपराजिता है ,इसे कोई पराजित नहीं कर सका ! यह किसी के बस की बात नहीं थी कि इसकी प्रचंडता को पराजित किया जा सके। सरकार आएगी ,चली जायेगी। मिनिस्ट्री बनेगी ,भंग होगी , लेकिन ये कोसी ये बागमती ,ये कमला बलान अपनी प्रलयंकारी गति से गांव दर गाँव तबाह बर्बाद करती जायेगी। हरियाली को नोचते खसोटते हुए ,माल मवेशी को अपनी धारा में बहाते हुए ऐसे ही मिथििला को कंंंं बनाती रहेेेेगी और हम मूकदर्शक बने रहेंगे।
पचास वर्ष पूर्व लिखा गया राजकमल जी के लेख और मौजूदा हालत में कोई फर्क आया है क्या? पहले से ज्यादा सुविधा संपन्न होने के बावजूद ,सड़के और दूसरी बुनियादी सुविधा बढ़ने के वाबजूद क्या मिथिलांचल आज भी इस बाढ़ के सामने लाचार नहीं हैं ? पहले तो लोगों ने मुश्किल का सामना भी किया है आज तो लोगों ने गाँव ही छोड़ दिया है। बिहार में सबसे ज्यादा मिथिलांचल में 11 नदियों की बाढ़ की त्रासदी है तो उससे ज्यादा यहाँ पलायन की मजबूरी है । चौकिये नहीं मथिला के अधिकांश जिले इस बाढ़ के बाद सूखाग्रस्त भी घोषित होने वाला है। यह हर साल का फीचर है। पारम्परिक उद्योग और खेती बाड़ी बंद है। सरकारी नौकरी ,सरकारी अनुदान या फिर सरकारी लूट के अलावा अर्थ उपार्जन का यहाँ कोई श्रोत नहीं है। आज सिर्फ मानियॉर्डर इकॉनमी ने ही मिथिला के आर्थिक गतिविधि को संभाल कर रखा है। कितनी सरकारे आयी और गयी लेेेकिन नेपाल के साथ दो चार डैम बनाने को लेकर समझौता नही हो सका । क्यों नहीं मिथिला के नदियों में फैले हज़ारो कि मी के रेत को उद्योग बनाने की अबतक पहल हुई। महासेतु निर्माण के बाद कोसी और सीमांचल में कई बड़े उद्द्योग और कृषि आधारित उद्योग लग सकते थे लेकिन आज तक नेशनल हाइवे की स्पीड को मिथिला की आर्थिक प्रगति से नहीं जोड़ा गया। मौजूदा मुख्यमंत्री के 7 निश्चय में तमाम अनप्रोडक्टिव चीजों को शामिल किया गया लेकिन रोजगार और बाढ़ नियंत्रण की बात मुख्यमंत्री वोट समीकरण में शायद भूल गए
150 से ज्यादा लोग इस प्रलयंकारी बाढ़ और वर्षा की तबाही में अबतक मारे गए हैं। मरने वाले किस जाती और मजहब से थे क्या आपने कभी किसी अख़बार में पढ़ा है ? क्या किसी न्यूज़ चैनल ने बाढ़ की तबाही और जातीय समीकरण पर कोई डिबेट सुना है ? कोई सामाजिक न्याय वाले कद्दावर नेता ने क्या बाढ़ से जर्जर हो चुकी मिथिला की सुध ली है ? मधुबनी के डी एम कपिल अशोक रातभर एन डी आर एफ टीम और स्थानीय कर्मचारी के साथ बाढ़ मदद के लिए गुहार लगा रहे लोगों खासकर बच्चो को सुरक्षित स्थान पर लाते हैं। उनके पुनर्वास के लिए रात दिन मेहनत कर रहे हैं , लेकिन इन पीड़ित लोगों के बीच कोई सामाजिक कार्यकर्त्ता /नेता नहीं पहुंच पाया है ? यह जिम्मेदारी से ज्यादा संवेदना की चीज है जो एक आला सरकारी अधिकारी में है लेकिन यह संवेदना हमारे अपनों के बीच सुख गयी है।
राजकमल ,फणीश्वरनाथ रेणु ,बाबा नागार्जुन ,मणिपदम ,विहंगम का मिथिलाचल कभी साधन संपन्न नहीं था। कल भी बाढ पीडित लोग सरकारी मदद का बाट जोहते थे आज भी हालात वही है। लेकिन सामाजिक सरोकार बाढ़ की त्रासदी और संघर्ष को काम कर देता था। आज इस त्रासदी में लोग अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं। आज के सामाजिक न्याय वाली सरकार में बाढ़ और पुनर्वास लूट की इंडस्ट्री बन चुकी है। सरकारी फण्ड के लूट का एक तंत्र बिहार में पहले से विकसित है लेकिन मिथिला ने इसे एक स्ट्रक्चर बनाकर लूट को सामाजिक स्वीकार्यता दे दी है। नेतृत्वविहीन मिथिला आज लम्पट लोगों के जातिवादी राजनीति में फसी पड़ी है। आज कोसी मिथिला के विकास के लिए अपराजिता नहीं है। जातिवादी मानसिकता मिथिला के विकास के सामने अपराजिता बन कर खड़ी है जो वोट के कारण हर सामाजिक सरोकार को कमजोर बनाती है। बिहार और मिथिला को संपन्न बनाने वाले प्रवासी बिहारी आज संवेदनहीन हो चुकी मिथिला और बिहार को एक नई दिशा दे सकते हैं।
राजकमल ,फणीश्वरनाथ रेणु ,बाबा नागार्जुन ,मणिपदम ,विहंगम का मिथिलाचल कभी साधन संपन्न नहीं था। कल भी बाढ पीडित लोग सरकारी मदद का बाट जोहते थे आज भी हालात वही है। लेकिन सामाजिक सरोकार बाढ़ की त्रासदी और संघर्ष को काम कर देता था। आज इस त्रासदी में लोग अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं। आज के सामाजिक न्याय वाली सरकार में बाढ़ और पुनर्वास लूट की इंडस्ट्री बन चुकी है। सरकारी फण्ड के लूट का एक तंत्र बिहार में पहले से विकसित है लेकिन मिथिला ने इसे एक स्ट्रक्चर बनाकर लूट को सामाजिक स्वीकार्यता दे दी है। नेतृत्वविहीन मिथिला आज लम्पट लोगों के जातिवादी राजनीति में फसी पड़ी है। आज कोसी मिथिला के विकास के लिए अपराजिता नहीं है। जातिवादी मानसिकता मिथिला के विकास के सामने अपराजिता बन कर खड़ी है जो वोट के कारण हर सामाजिक सरोकार को कमजोर बनाती है। बिहार और मिथिला को संपन्न बनाने वाले प्रवासी बिहारी आज संवेदनहीन हो चुकी मिथिला और बिहार को एक नई दिशा दे सकते हैं।
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