कश्मीर " गले का नस" या नैरेटिव : चौकीदार मोदी ने पाकिस्तान के तर्क बदल दिए हैं


जम्मू कश्मीर और लद्दाख एक मिनी इंडिया है. भारत की हज़ारों साल की सांस्कृतिक परंपरा का केंद्र रहा है। सनातन और बौद्ध परम्परा यहाँ के जर्रे जर्रे में रची बसी है। दर्जनों धार्मिक मान्यता वाले लोग 50 से ज्यादा भाषा और बोली बोलते हैं। जिनकी अपनी अलग पहचान लेकिन मस्कुलर पालिसी के कारण कश्मीर में कुछ लोगों ने सियासत से लेकर संसाधन पर कब्ज़ा बना लिया और बाकी हिस्से को अलग थलग छोड़ दिया। पूर्व मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती कहती है "हमने रेकन्सीलेशन की पालिसी पर जोर दिया और 11000 पत्थरबाजों को एमनेस्टी दिलाई। हमने केंद्र सरकार से एकतरफा युद्धविराम का एलान कराया। हमने हीलिंग टच पालिसी को जारी रखा ".लेकिन इसका जवाब उनके पास नहीं है कि क्यों उनके ही गृह जिले में बुरहान वानी खतरनाक आतंकवादी बनता है और कश्मीर में शरिया कानून लागू करवाने के लिए बन्दूक उठता है? मेहबूबा शायद ठीक ही कहती होगी लेकिन वो भूल गयी कि जम्मू कश्मीर का मतलब कश्मीर का सिर्फ चार जिले नहीं है और मसला श्रीनगर के डॉन टाउन का नहीं है। श्रीनगर में बैठे मुठ्ठी भर सियासतदानो के लिए कश्मीर चार जिलों से आगे कभी नहीं बढ़ा। रियासत के हर पीड़ित आम अवाम का आंसू पोछना और उनके लिए हल ढूँढना उनकी जिम्मेदारी थी तो क्या उन्होंने कश्मीर से पलायन कर गए लाखो कश्मीरी पंडितो की सुध लेने की कभी कोशिश की? टेंटो और झोपड़ियो में रह रहे पी ओ के से आये हजारो निर्वासित परिवार की सुध लेने की उन्होंने कभी जहमत उठायी? रियासत के दलित परिवारों को पिछले 70 वर्षों में मुख्यधारा में लाने की क्या कभी कश्मीर के लीडरों ने कोई पहल की ? उनके बच्चे शिक्षा और सरकारी नौकरी के लिए लालायित थे । लेकिन कश्मीर के हर सियासतदां का दावा है धारा 370 और धारा 35 A समाप्त करने से कश्मीर की पहचान ख़तम हो जायेगी ! यानी अगर कुछ जिलों के कुछ लोगों की बालादस्ती नहीं चली तो फिर कश्मीर का कोई मतलब नहीं है।
कश्मीर में नैरेटिव वाले पत्रकारों के लिए अभी काफी मसाला है। कुछ खानदानी पत्रकारों का दावा है तीन पूर्व सीएम् हिरासत में है। राहुल और प्रियंका गांधी दावा कर रही है कि लोगों के अधिकार छीन गए हैं। शहरों में कर्फू और हिंसा की खबरे रोज आ रही है। यह सब खबर इसलिए बन रही है क्योंकि पाकिस्तान में इमरान खान इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी और आर एस एस को जिम्मेदार मानता है और यह बात कांग्रेस और दूसरी जमातों को सूट करती है। पिछले 14 दिनों में कश्मीर में कोई भी बड़ी बारदातें नहीं हुई है और न ही किसी की जाने गयी है, कुछ जगहों को छोड़कर प्रतिबन्ध का असर बाज़ारो में कही नहीं दीखता है लेकिन यह बड़ी खबर है। और होनी भी चाहिए लेकिन 2009 में कांग्रेस समर्थित उमर अबदुल्लाह के शासन में कुछ दिनों के हड़ताल में 130 बच्चे मारे गए। महीनो कारोबार ठप्प रहा ,बाजार बंद रहे। तब यह बड़ी खबर नहीं होती थी। 2004 से 2011 कांग्रेस के शासन में हर साल हुर्रियत नेता गिलानी साहब का हड़ताली कैलेंडर निकलता था और महीनो कश्मीर में बाजार बंद रहते थे। सैकड़ो पुलिस /जवान और पथरवाज मारे जाते थे तब यह बड़ी खबर नहीं होती थी लेकिन आज ये बड़ी खबर है क्योंकि इस समस्या को प्रधानमंत्री मोदी ने जड़ से ख़त्म करने की पहल की है।
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