नागरिकता संशोधन विधेयक में हिंदुस्तानी  को ढूंढिए हिन्दू नहीं  !

कौन हैं हिन्दू ,क्यों उनके लिए हिंदुस्तान एक  जीवन है और क्यों उनके लिए नागरिकता संशोधन विधेयक  जरुरी है ? बाबा साहब अम्बेडकर ने अपनी किताब पाकिस्तान और द पार्टीशन ऑफ़ इंडिया में विभाजन के कई महत्वपूर्ण अनछुए सवाल उठाये हैं। अम्बेडकर का मानना था ब्रिटिश रूल से पहले भारत में रह रहे मुसलमानों को लगता था कि वे हिन्दू बाहुल्य जनता के मालिक हैं। अंग्रेजी हुकूमत ने उनके इस रुतबे को ख़त्म करके मुल्क के हिन्दू बहुसंख्यक जनता और मुसलमानों को एक लेवल में ला दिया था लेकिन जैसे ही ब्रिटिश हुकूमत  के बिस्तर बांधने की सुगबुगाहट हुई मुस्लिम सामंतो और नवाबो ने इस्लामिक आइडेंटिटी का हवाला देकर मुसलमानों में यह खौफ का माहौल बनाया कि बहुसंख्यक हिन्दू आवादी के साथ उनका अस्तिव मिट जाएगा ,उधर हिन्दुओं में यह आशंका बढ़ी कि मुस्लिम सामंत फिर अपनी प्रभुसत्ता उनपर थोपने का प्रयास करेंगे और उनका मालिक बन बैठेंगे। अपनी अलग पहचान के नाम पर जिन्ना ने जैसे ही मुसलामनों के लिए स्पेशल प्रिविलेज देने की मांग शुरू की यह बात तय हो गयी थी एक राष्ट्र के रूप में उनकी मांग  कतय स्वीकार नहीं होगी । और देश ने अंततः विभाजन का यह दर्द सहा और लाखों लोग विस्थापन की प्रक्रिया में मारे गए। आज नागरिकता संशोधन विधेयक की चर्चा के साथ यह पूछना लाजिमी है कि क्या भोले भाले गरीब ,अनपढ़ जनता को क्या इस विभाजन से कुछ लेना देना था ? क्या 14 अगस्त 1947 को उन्हें पता था कि हिंदुस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर पाकिस्तान के रूप में हो गया है। क्या उन्हें पता था वह पाकि  स्तान जिसे जिन्ना ने  सेक्युलर नेशन कहा था इस्लामिक रिपब्लिक हो जाएगा ? शायद इसलिए डॉ अम्बेडकर ने कहा था जबतक पाकिस्तान से एक एक हिन्दू भारत वापस नहीं आजायेगा तबतक विभाजन की प्रक्रिया शायद ख़त्म नहीं होगी। तो क्या आंबेडकर जानते थे जो गरीब पिछड़े ,अनुसूचित जाति के हिन्दुओं को हम पाकिस्तान में छोड़ आये हैं वह इस्लामिक पाकिस्तान से एक दिन वापस जरूर भारत में शरण लेंगे । तो आज उसके नागरिकता पर सवाल क्यों है जिसे बताये बगैर हमने हजारों साल के इस भारत देश को दो टुकड़े करने को स्वीकार कर लिया था।

दुनिया में ऐसे कम ही देश हैं जो एक जीवन की व्यवस्था और संस्कृति के आधार पर राष्ट्र का रूप लिया हो ,हजारो सालों की इस व्यवस्था में राज्य और रजबाड़े का नामकरण हुआ लेकिन देश भारत ही रहा लोग भारत के ही रहे राजा और राज्य भले ही अलग अलग हों उनकी संस्कृति और पहचान एक राष्ट्र की ही रही। कुछ लोगों ने भले ही इस हिन्दू संस्कृति को धर्म मानकर उसे सांप्रदायिक चासनी में डूबा दिया हो लेकिन मान्यता ,विश्वास और आस्था को लेकर हिंदुस्तान में कभी संघर्ष नहीं हुए। सनातन परंपरा में सबका सम्मान हुआ। लेकिन आज जब 70 साल पुरानी गलतियों को सुधारने की पहल तेज हुई है तो उसे फिर हिन्दू मुस्लिम की बहस में उलझाने की कोशिशे भी तेज हुई है। 

क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक :
नागरिकता संशोधन विधेयक में 1955 के नागरिकता कानून में संशोधन का प्रावधान लाया गया है। जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि इस विधेयक में पाकिस्तान ,बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न व अत्याचार के शिकार हुए अल्पसंख्यक हिन्दू ,सिख बौद्ध ,जैन ,पारसी ,ईसाई भारतीय विस्थापितों को नागरिकता मिलेगी"। पाकिस्तान की सरकारी आंकड़ों को ही ले हर साल 5000 विस्थापित हिन्दू भारत आते हैं। साल 2014 में यूपीए सरकार ने आधिकारिक रूप से सदन में बताया था  कि 1,11,754 पाकिस्तानी नागरिक
साल 2013 में वीजा लेकर भारत आये थे। जाहिर इनमे अधिकांश हिन्दू और सिख ही थे जो वापस नहीं गए। सवाल यह है कि विभाजन के बाद 20 फीसद हिन्दू आवादी 70 वर्षों में 3 फीसद में  कैसे सिमट गयी। क्या उन्होंने धर्म बदलकर खौफ से मुक्ति पा ली या फिर भारत शरणार्थी बनकर आ गए या मार दिए गए। यही सवाल बांग्लादेश देश के लिए भी है जहाँ भारत ,नेपाल के बाद सबसे ज्यादा हिन्दू की आवादी थी। आर्थिक रूप में उनका योगदान सबसे ज्यादा था लेकिन 17 फीसद के आवादी वाले हिन्दुओ में सबसे ज्यादा पलायन गरीब और पिछड़े तबके के जनजातियों का ही हुआ जिन्होंने  बंगाल से लेकर नार्थ ईस्ट के कई राज्यों में शरण ली। लगभग 30 फीसद  अल्पसंख्यक आवादी बांग्लादेश में एक भाषायी आधार पर एक नए राष्ट्र के निर्माण में जुटी थी लेकिन मुस्लिम प्रभुत्व और पहचान के सवाल पर जैसे ही बांग्लादेश इस्लामिक मुल्क बना और जमात के सहयोग से आतंकवादी समूह सक्रीय हुए हिन्दू आदिवासियों का पलायन तेजी से बढ़ा और उन्होंने  बंगाल सहित दूसरे भाषायी राज्यों में पनाह ले ली। 
सरदार पटेल ने कहा था "जिनके साथ हमारा खून का रिस्ता है। जिन्होंने मुल्क को आज़ाद कराने में हमारे साथ संघर्ष किया है वे कागज पर एक रेखा खींच देने से विदेशी नहीं हो जाएंगे उनका इस मुल्क पर अधिकार हमेशा बना रहेगा "
पंडित नेहरू ने कहा था "हम अपने उन भाई और बहन के  लिए भी सोचें जो एक रजनीतिक सीमा के कारण  हमसे अलग हो गए हैं लेकिन वे हमारे हैं और हमेशा हमारे ही रहेंगे "

नागरिकता संशोधन विधेयक यानी कैब को लेकर आज राजनितिक दलों में देश से ज्यादा दलगत और वोटबैंक हावी है। ममता बनर्जी कहती हैं कैब और एन आर सी एक सिक्के के दो पहलू हैं, ममता  कहती हैं यह संघ के हिन्दुराष्ट्र की अवधारणा को मजबूत करती है। तृणमूल कांग्रेस को नागरिकता संशोधन से परहेज नहीं है अगर इसमें हिन्दू शरणार्थी की जगह सिर्फ शरणार्थी हों। कुछ लोगों का मानना है कि नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन ने जैसे ही आसाम से 19 लाख शरणार्थियों को सूचि से बाहर किया जिसमे अधिकांश बंगाली हिन्दू हैं ,बीजेपी सरकार उन्हें बचाने के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक की चर्चा तेज कर दी है । हालाँकि गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं एन आर सी से किसी को घबराने की जरुरत नहीं है देश में जब एन आर सी काम करने लगेगी उससे पहले उन्हें कैब से नागरिकता मिल चुकी होगी। हालाँकि वे स्पष्ट कर चुके हैं कि कैब और एन आर सी दो अलग अलग चीजे हैं इसे एक नहीं माना जा सकता ,नार्थ ईस्ट के कई राज्यों में मसलन अरुणाचल प्रदेश ,नागालैंड ,मिजोरम ,मणिपुर में उसके सिक्स्थ शेडूल एरिया और दूसरे संवैधानिक व्यवस्थाओं के कारण कैब लागु नहीं होगा ।

आर एस एस के प्रचार प्रमुख अरुण कुमार आसाम के एन आर सी की प्रक्रिया पर ही सवाल उठाते हैं ,उनका मानना है कि दुनिया के लगभग तमाम मुल्कों में नेशनल रजिस्टर सिटीजन प्रभावी रूप से काम कर रहा है एक सॉफ्ट स्टेट होने के नाते भारत ने कभी इसकी जरुरत ही नहीं समझी और लाखों -करोडो के तादाद में लोगों ने  भारत में घुसपैठ करके नागरिकता पहचान ले ली। म्यांमार से आये लाखों बंगाली रोहंगिया मुसलमान भी पुरे मुल्क में फ़ैल गए औरआधार कार्ड तक हासिल कर ली। इस हालत में एन आर सी किसी एक स्टेट के लिए होना मुनासिब नहीं है यह एक हास्यास्पद कदम था। एक देश एक विधान एक संविधान के रास्ते पर चलने वाला संप्रभु मुल्क किसी आलोचना से नहीं घबराता बल्कि मजबूती से फैसला लेता है जो हमने जम्मू कश्मीर में लिया है"… .ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले एक बड़े तबके को जिसमे अधिकांश अनुसूचित जाति /जनजाति के लोग थे उन्हें   मुल्क विभाजन की राजनीतिक फैसले की कोई खबर नहीं थी। अब वे अपने मुल्क लौटना चाहते हैं ,उन्हें नागरिकता से सम्मानित कर देश  एक ऐतिहासिक कलंक से मुक्त हो सकता है। 


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