71 वा गणतंत्र:देश ने सहनशील -असहनशील ,सेक्युलर कम्युनल बहस को पीछे छोड़ दिया है

देश 71 वा गणतंत्र दिवस मना रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनाव प्रक्रिया में आमलोगों की भागीदारी,बोलने की आज़ादी,धार्मिक स्वतंत्रता की आज़ादी  आईडिया ऑफ़ इंडिया को मजबूती देती है। ये अलग बात है अधिकार को लेकर सजग हमारा गणतंत्र नागरिकों के  कर्तव्य के मामले में फिसड्डी साबित हुआ है। स्वच्छ भारत अभियान को छोड़ दें तो  भारत की तस्वीर बदलने के लिए लोगों ने अपने व्यवहार में परिवर्तन शायद ही कभी लाया हो। सिर्फ सी ए ए प्रोटेस्ट के नाम पर पुरे मुल्क में हजारों करोड़ रूपये की प्रॉपर्टी को हमने जला दिया है। लेकिन इस दौर में फेक नेरेटिव ने अपना असर लगभग खो दिया है। पिछले दिनों भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश का ध्यान अलग अलग शहरों में नागरिकता कानून के विरोध में मुस्लिम महिलाओं के प्रदर्शन के ओर दिलाया है। उनका मानना है कि इन प्रदर्शनों में भारत का लोकतंत्र मजबूत हो रहा है। श्री मुखर्जी ने शाहीन बाग़ जैसे प्रोटेस्ट को लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने की दिशा में एक सार्थक कदम माना है। हालाँकि प्रणब दा यह बताना भूल गए कि CAA की प्रतिक्रिया बंगाल और असम में होनी चाहिए थी ,पुरे देश में होने की वजह क्या है ? शायद   प्रणब दा धोखा खा गए , उनके चुनाव आयोग के शुकुमार सेन लेक्चर के अगले दिन ही उसी प्रोटेस्ट को कवर करने गए  संपादक दीपक चौरसिया को प्रदर्शनकारियों ने पीट दिया । शांतिपूर्ण धरना वाले  प्रदर्शनकारियों ने न्यूज़ नेशन का विरोध किया कि वे रवीश कुमार की तरह सेक्युलर नहीं है। यह भी संयोग है कि इसी दौरान अमेरिका के एक मशहूर पत्रिका इकोनॉमिस्ट अपना कबर पेज पर धरना प्रदर्शन को लेकर भारत सरकार को असहनशील बतायी  है।पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान नए नागरिकता कानून को भारत में मुसलमानों की नागरिकता छीन लिए जाने की साजिश बता रहे हैं। सी ए ए पर उनकी  फेक नेरेटिव और भारत के अधिकांश मुसलमानों की सोच में कोई अन्तर नहीं है। 

यानि पिछले 70 साल से भारत का गणतंत्र अपने एक संविधान को सर पर रखकर घसीटता हुआ आगे बढ़ रहा है जिसपर  सेकुलरिज्म लोक लाज और मर्यादा हावी है। अर्थ की दुनिया में सेकुलरिज्म का इस दौर में कोई आदर्श नहीं लेकिन 70 के दशक में सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्द उधार लेकर हमने अंगेजों के बराबरी ह्यूमन बनने की पहल की थी। लेकिन शायद भूल गए कि अगर हम सोशलिस्ट सेक्युलर हैं फिर कश्मीर में धारा 370 क्यों ,मुस्लिम बाहुल्य के नाम पर स्पेशल स्टेटस क्यों ? ,देश के कानून में अल्पसंख्यकवाद क्यों है।  एक देश एक विधान एक संविधान मानने में दिक्कत क्यों हैं? क्यों नागरिकों पर अबतक मजहबी कानून लादे जा रहे हैं.? 70 सालों में अगर देश ने तरक्की की है फिर जाति और पिछड़ा में आर्थिक आधार पैमाना क्यों नहीं बनायीं जा रही? सवाल तो कई हैं जवाब एक है सत्ता की जुगाड़ ने गणतंत्रा को एक माध्यम बना लिया और लोगों ने सियासत के दम पर  वर्षों तक सत्ता को खानदानी विरासत मानलिया । आज मोदी के  असहनशील भारत में जो लोग देश से  ऊपर उम्मा को  मानते  थे ,बन्दे मातरम को गैर इस्लामी कहते थे ,आज उन्होंने देश और नागरिकता के महत्व को समझा है। शाहीनबाग से लेकर घंटाघर तक मुस्लिम महिलाओ  ने  बुर्के हटाकर तिरंगे के साथ मंच संभाल लिया है। यह प्रगति का सूचक है। एक झटके में ही देश में ट्रिपल तलाक़ का दंश झेल रही महिलाये निर्णय की भूमिका में आ गयी है। 

 71 वे गणतंत्र में भी हमारा समाज महज एक भीड़ है। देश में  संविधान को लेकर अपार आस्था है लेकिन कुछ लोगों को यह यकीन नहीं है कि उसकी नागरिकता कोई छीन नहीं सकता। क्योंकि समाज में कुछ लोग सिर्फ रयूमर से संचालित होते हैं।  देश का संविधान सेक्युलर है लेकिन मुसलमानो को बताया जा रहा है कि यह हिन्दू राष्ट्र बन जाएगा। अजीब अजीब तर्क के साथ लोग देश जलाने पर आमदा है ,देश तोड़ने पर आमदा है. तबतक जबतक उनके अनाप शनाप मजलिश को लोग सुनने के लिए आ रहे हैं । फर्क पाकिस्तान और बांग्ला देश में देखिये। बांग्लादेश जिस दिन से अपने मुल्क में अनापशनाप मजलिसो और जलसों को बंद कराकर आर्थिक प्रगति पर धयान दिया तो उसने पाकिस्तान को एक झटके में काफी पीछे छोड़ दिया है । मौजूदा दौर में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 15 बिलियन डालर  का है जबकि बांग्लादेश का यह भंडार 33 बिलिएन डॉलर का है। संसाधन के मामले में पाकिस्तान से एक छोटा बांग्लादेश आत्मनिर्भर हो रहा है और पाकिस्तान के अवाम एक रोटी के मुहताज हैं लेकिन अपनी फौज पर लगभग 30 फीसद बजट खर्च कर रहा है । FATA से लेकर वर्ल्डबैंक तक पाकिस्तान अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। एक साथ दो मुल्क वजूद में आये लेकिन फौज की बलादस्ती  और मजहबी फितरत ने न तो पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत होने दिया न ही मुल्क आर्थिक प्रगति कर पायी। 

सुई,ताला  और चाकू बनाने वाला यह मुल्क आज दुनिया में अपने सेटेलाइट ,मिसाईल ,टैंक ,सॉफ्टवेयर ,मेडिसिन के क्षेत्र में एक खास जगह बनायीं है। अन्न उत्पादन का हाल यह है कि मुफ्त अनाज तक़रीबन 60 करोड़ आवादी को दी जा रही है। दलहन तिलहन मामले में काफी  प्रगति हुई। विशाल जंसंख्या और सिमित संसाधन देश की बड़ी चुनौती है लेकिन देश की प्रगति तभी संभव है जब हम एक स्टेटसको को  तोड़कर आगे बढ़ पाएंगे। मौजूदा आर्थिक मामले पर कुछ लोगों की तीखी प्रतिक्रिया के बीच मुफ्तखोरी का प्रचलन भी चुनावों में तेज हुआ है जो आर्थिक मंदी के दावे को मजाक बना देता है। आज़ादी के बाद यह पहला मौका था जब संघ के 36 मंत्री एक साथ जम्मू कश्मीर का दौरा करके आये हैं। 70 साल के इतिहास में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से  अपने 80000 लोगों के बलिदान का एक नया कश्मीर उभर कर आया है जिसमे हर पंथ हर व्यक्ति हर भाषा के लोग अब बराबर के अधिकारी बन गए हैं। आर्टिकल 370 हटने के बाद कश्मीर की बदली बयार पर लोगों का मानना है कि  देश ने एक मजबूत फैसले लेकर 71 वे लोकतंत्र को एक सशक्त भारत एक श्रेष्ठ भारत की छवि दिखाई है। 
 

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