#COVID19 भारत के जज्बे को सलाम : देश ने कहा हम हैं न !

खो रे मंगला पड़ल रह ! 70 - 80 के दशक में बिहार में आम बोल चाल की लोकाक्ति थी। साधन के अभाव के बीच अपनी व्यवस्था में मस्त रहने का अंदाज़ हमने बचपन में सीखा था. ,बाद में एक कहावत और प्रचलित हुई आब कहु मन केहेन लगैया ? कोरोना महामारी की बीच लॉकडाउन में दुनिया भारत की ओर देख रही है इस उम्मीद से कि कभी मैक्समूलर ने भी कहा था कि भारत से वेस्ट को बहुत सीखने की जरुरत है। 135 करोड़ की आबादी वाला मुल्क जहाँ साधन जुटाने का संघर्ष आज भी सबसे ज्यादा है उसने अपने को घरों में कैद कर लिया है। यह इंसानी स्वभाव के बिपरीत सरकार का आग्रह है लेकिन पी एम् मोदी की बातों पर लोगों ने यकीन किया है। यह एक असम्भव टास्क था। इटली और भारत में कोरोना का फर्स्ट फेज लगभग एक साथ ही आया लेकिन हेल्थ सर्विस में नंबर 2 की इटली इस महामारी में अपने 10000 से ज्यादा लोगों को खो दिया और लाखों की तादात में लोग पॉज़िटिव केस आने पर आइसोलेशन में है । अमेरिका की हालत देख लीजिये ,ब्रिटेन की हालत देखिये। क्योंकि वहां के मंगला ने सरकार की नहीं सुनी।भारत में महामारी की रफ़्तार का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं ,पॉज़िटिव केस का आंकड़ा अभी भी 1200 को पार नहीं किया है।वजह लॉक डाउन भी है। आज वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन इस उम्मीद के साथ भारत की ओर देख रहा है कि इस देश ने सिमित संसाधन के बावजूद चेचक ,पोलियो जैसे अनेको महामारी को समूल नष्ट किया है। भारत के वैज्ञानिक वैक्सीन पर काम कर रहे हैं और जल्द ही दुनिया को फिर चौंकाएंगे। ऐसा चमत्कार फिर भारत ही करेगा क्योंकि दुनिया भर के वैज्ञानिक मानते हैं कि भारतीयों के खान पान और प्रकृति से दोस्ती उन्हें एक अलग पहचान दिलाती है। खास बात यह है कि भारत की जलवायु विश्व के दूसरे मुल्को से अलग है। कुछ वैज्ञानिक इस वायरस की समाप्ति भारत से ही मानते हैं जब वातावरण में ह्यूमिडी बढ़ने के साथ तापमान बढ़ेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि पूरी दुनिया इस खतरनाक महामारी से निपटने के बाद कुछ अलग व्यवहार करेगी। प्रकृति के इस कहर ने इंसानो के बढ़ी प्रभुसत्ता और अहंकार को चकनाचूर कर दिया है लेकिन भारत जैसे देश में कुछ नेताओ की होशियारी और कुछ बुद्धिजीवियों के अनरगल आशंका से कुछ जगहों पर अफरातफरी के माहौल को छोड़ दे तो पुरे मुल्क ने इस लॉक डाउन को शानदार समर्थन दिया है। यह देश हर आपदा के समय एक जूट खड़ा होता है यही उसकी ताकत है जो हर आपदा के बाद भारत उठ खड़ा होता है । एलक्शन कमीशन जैसी एक छोटी संस्था पुरे देश में 135 करोड़ लोगों के बीच पहुंच चुनाव करवा लेती है वजह भरोसे और कमांड का है यही भरोसा प्रधानमंत्री ने भी दिया है और पुरे देश की इंतजामिया ,पुलिस ,हस्पताल ,सामाजिक सेवा इस चुनौती का सामना करने के लिए रात दिन जुटे हैं। खास बात यह है कि मोदी के पहले दौर की योजनाए लोगों को घर बैठने का यकीन दिलाया है। भारत में डिजिटल पेमेंट हो या स्वास्थ्य बीमा योजना ,जनधन योजना ,जैसे दर्जनों केंद्रीय योजनाओ ने लोगों को आस्वस्त किया है "हम है न "... .
सबसे कमाल तो यह है कि सबसे बुजुर्ग नेता नवीन पटनायक ने ओडिशा में लोगों को अपने बच्चो जैसे संभाला है ,तेलंगना के मुख्यमंत्री मजदूरों को एक दिन भी दिन भूखे नहीं सोने दिया है। मुख्यमंत्री योगी सबसे बड़ी आबादी वाले उत्तर प्रदेश का शायद कोई इलाका हो जहाँ तैयारी का व्यक्तिगत जायजा न लिया हो। फिर दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों में प्रसाशन के चौकसी के वाबजूद दो दिनों के केओस का मतलब साफ़ है कि जन सेवा को ईश्वर सेवा मानने से कामयाबी मिलती है सियासत का नतीजा सिर्फ केजरीवाल होता है।  

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