"पंचायती राज और बिहार ! नीतीश जी , कुछ दिन गुजारिये तो कश्मीर में "

आदरणीय नीतीश जी ,


नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आत्मनिर्भर बिहार को लेकर आपकी चिंताओं के बीच जम्मू कश्मीर के ग्राम स्वराज अभियान की ओर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहूंगा। देश के सबसे जटिल राज्य जम्मू कश्मीर ने अपने वर्षो पुराने आर्थिक और राजनीतिक समस्या का हल पंचायती राज में ढूढ़ लिया है। ग्राम स्वराज की अवधारणा को जमीन पर उतारकर एल जी मनोज सिन्हा ने पीपुल्स गवर्नेंस की एक नयी इबारत लिखी है। 70 वर्षों के बाद पहलीबार जम्मू कश्मीर में पंचायती राज निजाम लागू हुआ है जिसने वहां की वर्षो पुरानी सेल्फ रूल की मांग को आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद एक झटके में पूरा कर दिया है। यह पहला मौका है जब केंद्र के तमाम फ्लैगशिप स्कीम 100 फीसदी यहाँ पंचायतों ने जमीन पर उतरा है। कल्पना कीजिए जिस पहाड़ी इलाके में लोगों को अपनी समस्या बताने के लिए दो से तीन दिन का सफर तय कर श्रीनगर जम्मू आना पड़ता था। आज तमाम आला अफसर बैक टू विलेज प्रोग्राम के तहत गांव जाकर लोगों की समस्या सुनते हैं और उसका निदान करते हैं
मनोज सिन्हा ने यह चमत्कार उसी पुराने सिस्टम और नौकरशाह को लेकर किया है और आज 55000 चुने हुए लोकल बॉडी के प्रतिनिधियों ने अपने अपने इलाके की जिम्मेदारी संभाल ली है। नयी पंचायती व्यवस्था में बढ़ी सामजिक भागीदारी ने न केवल भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया है बल्कि पिछले एक साल में 1000 से ज्यादा पहाड़ी गांव में हर घर बिजली पहुँचाया है। पिछले 70 वर्षों में इन इलाके में लोगों ने अबतक बिजली के रौशनी नहीं देखी थी लेकिन सौभाग्य स्कीम ने उनके सपने को सच कर दिया है। नीतीश जी, अपने बिहार में पिछले 50 साल से लागू तीन स्तरीय पंचायत अपनी वजूद के लिए आज भी संघर्ष कर रही है सामाजिक भागीदारी के नाम पर यह कुछ लोगों का क्लब बन गया है । बिहार देश का पहला राज्य है जहां लालफीताशाही के कारण 18 वर्षों तक पंचायत चुनाव ही नहीं हुए। आपने उस व्यवस्था को बदला, चुनाव तो हो रहे है लेकिन ग्राम स्वराज से आज की पंचायती राज व्यवस्था कोसों दूर है।

भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबे बिहार के पंचायती राज निजाम में इलेक्टेड और सिलेक्टेड पंचायत प्रतिनिधियों के बीच संघर्ष जारी है। ऊपर से आपके मुखिया पतियों ने सामाजिक भागीदारी वाली गांधी जी की व्यवस्था को सामंती कबीले की व्यवस्था में तब्दील कर दिया है। बिहार के तकरीबन 45000 गांव के 8406 पंचायतों में सिर्फ दो पंचायतो ने ( सिंघवाहिनी और धरनई ) अबतक आत्मनिर्भर और आदर्श पंचायत का गौरव हासिल किया है लेकिन अधिकांश बिहार के पंचायत अपने पंचायत सचिव और दूसरे सिलेक्टेड बॉडी के हाथों गिरबी पड़ी है। फीडबैक सिस्टम प्रभावी नहीं होने के कारण बिहार में सामाजिक भगीदारी सिर्फ किताबी बात बनकर रह गयी है। बिहार के माउंटेन मैन दशरथ मांझी की बेटी हाल ही में लम्बी बिमारी के बाद दम तोड़ गयी। लेकिन उसे आर्थिक दिक्कतों के बीच मदद करने वाला कोई सामने नहीं आया था। दर्जनों फ्लैगशिप स्कीम और स्वास्थ्य सेवाओं के वाबजूद बिहार के एक दिन के सांकेतिक पूर्व मुख्यमंत्री दशरथ मांझी की बेटी को सरकारी मदद नहीं मिला तो समझा जा सकता है कि ब्लॉक जोतने वाले दलालों ,सरकारी सिलेक्टेड पंचायत प्रतिनिधि ,पी ओ से लेकर पंचायत सचिवों ने जो हजारों करोड़ रूपये के ग्रामीण विकास योजनाओं को लूट का एक बड़ा तंत्र विकसित कर दिया है उसमे किसी गरीब और असहाय की बात सुनी जा सकती है ?

कागजी कार्रवाई में कमजोर अधिकांश मुखिया बिहार में अधिकांश चालाक पंचायत सचिवों के ठेकेदार बन कर रह गए हैं। आत्मविश्वास से भरे धरनई पंचायत के मुखिया अजय सिंह यादव हों या सिंघवाहिनी पंचायत के मुखिया रितु जायसवाल अपने लगन और मेहनत से पंचायत में तमाम फ्लैगशिप स्कीम लोगों के बीच ले जाते है फिर दूसरे पंचायतों में ऐसी ही खुशहाली क्यों नहीं दिखती है? सवाल जिम्मेदारी का है सवाल अकउंटिबिलिटी की है। बिहार के किसी ग्रामीण सभा में क्या आपने किसी जिले के डीएम की उपस्थिति देखी या सुनी है? बिहार के गावं में क्या किसी डीएम ने ग्रीवांस सेल बनाकर लोगों की शिकायत ली है? क्या किसी ग्रामीण योजनाओं में सामाजिक भागीदारी को सुनिश्चित करने की पहल हुई है? जातिगत अहंकार में बटे समाज को बिहार के नौकरशाह और स्थानीय सिलेक्टेड प्रतिनिधियों ने मिलकर पंचायत को लूट का अड्डा बना दिया है। हमने प्रधानमंत्री मोदी की एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट में चलाये गए ग्राम स्वराज अभियान को करीब से देखा है।खास समय सीमा के अंदर एक एक पिछड़े गांव में तमाम फ्लैगशिप स्कीम को जमीन पर उतरते हुए देखा है। अगर प्रधानमंत्री के सीधे मॉनिटरिंग में देश के 119 अति पिछड़े जिले की सूरत बदल सकती है फिर उसी डीएम के नेतृत्व में कुछ पंचायतों की तस्वीर क्यों नहीं बदल रही है ? जबकि इस दौर में केंद्रीय फण्ड की कोई कमी नहीं है। कोरोनकाल में देश के पंचायतों ने बहुत शानदार भूमिका निभाई है लेकिन अपने बिहार में ऐसे गर्व करने वाले कुछ ही पंचायत मिलेंगे।
नीतीश जी ,बिहार में किसी बड़ी औद्योगिक क्रांति की कोई संभावना नहीं है ,नए स्टार्टअप को लेकर आपके नौकरशाह पॉजिटिव नहीं है। इस हालत में आत्म निर्भर बिहार के लिए एक विकल्प पंचायती राज निजाम ही है जो अपने लघु और कुटीर उद्योग को अपने पशुपालन और दूध व्यवसाय को ,अपनी पारंपरिक खेती में सब्जी और फलों के कारोबार को शामिल करके अपने गांव को खुशहाल बना सकता है। आप शायद पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार रोकने के लिए विधायक फण्ड की योजना को बंद करवाया था लेकिन उसी बिहार में अगर स्कूल से लेकर ,पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम तक आँगनबाड़ी से लेकर मनरेगा स्कीम तक ऊपर से नीचे तक सबका कट फिक्स्ड हो फिर उस पंचायत और गांव के विकास की कल्पना करना बेमानी होगी।

बिहार के नौजवान अपने ज्ञान और आईडिया से देश विदेश में प्रगति का मॉडल बने हैं लेकिन एक शिक्षित और प्रोफेशनल नौजवान अपने बिहार में आकर ठगा सा महशुश करता है। प्रधानमत्री मोदी का खास आकर्षण ग्राम स्वराज को लेकर है। हर गांव में बिजली , हर घर जल का नल ,हर घर में शौचालय ,ग्रामीण स्तर तक इंटरनेट की सुविधा ,पंचायतो तक ऑप्टिक फाइबर बिछाकर डिजिटल इंडिया से हर गांव को कनेक्ट किया जा रहा है। लेकिन इस हालत में अगर बिहार के गांव और पंचायत सामंती मानसिकता से गवर्न होते रहेंगे और इलेक्टेड जन प्रतिनिधि पर सिलेक्टेड प्रतिनिधि हावी रहेंगे तो पीपुल्स गवर्नेंस की बात करना यहाँ बेमानी होगी। उम्मीद है आने वाले पंचायत चुनाव को लेकर आप अपने सात निश्चय में भ्रष्टाचार मुक्त पंचायत को भी शामिल करेंगे। धन्यवाद! Regards

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