देश में इतने शोर के बावजूद लोकतंत्र और  आज़ादी पर सवाल !


अफ्रीका के एक छोटे देश सेशेल्स में कोरोना वायरस से लड़ने के लिए भारतीय वैक्सीन को हवाई अड्डे पर सम्मान के साथ उतारा गया, मानो यहाँ के लोगों को संजीवनी बूटी मिल गयी हो। उत्सव के माहौल के बीच लोगों ने कहा सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। इसी  आदर्श के साथ भारत ने  दुनिया के 100 से  अधिक देशों में वैक्सीन मैत्री से वसुधैव कुटुंबकम  का सन्देश दिया है। साथ ही  अपने विश्व गुरु के सम्मान पर हक़ जताया है । उधर देशी विदेशी एन जी ओ  प्रायोजित अभियान का सूत्र थामे राहुल गाँधी लगातार भारत के इस नए अवतार पर सवालिया निशान लगा रहे हैं । पिछले दिनों  डेमोक्रेसी इंडेक्स पर हो रही बहस पर  प्रतिक्रिया  देते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 
 दो टूक कहा कि "हमारी भी आस्थाएं हैं, हमारी भी मान्यताएं हैं, हमारे मूल्य हैं. लेकिन हम अपने हाथ में धार्मिक पुस्तक लेकर पद की शपथ नहीं लेते।  सोचिए ऐसा किन किन देशों  में होता है ? इसलिए मेरा मानना है कि इन मामलों में हमें खुद को आश्वस्त करने की जरूरत है।   हमें देश में लोकतंत्र की स्थिति पर किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है."  उन्‍होंने कहा, 'वे हमें राष्ट्रवादी कहते हैं. हां हम राष्ट्रवादी हैं. हमने कई देशों को कोविड-19 वैक्सीन दी है, और जो खुद को अंतर्राष्ट्रीयवाद के पैरोकार बताते हैं, उन्होंने कितने देशों को वैक्सीन पहुंचाई है ? कितने विकासशील देशों को मुफ्त में मदद पहुंचाई है ?

100 साल पहले  स्वामी विवेकानंद ने  वसुधैव कुटुंबकम के इसी आदर्श से दुनिया को परिवार मानने वाली सनातन अवधारणा से परिचय कराया था। प्राणि मात्र से प्रेम और सद्भाव की इसी प्रेरणा को लेकर आज भारत ने कोरोना वैक्सीन के टिके उन छोटे छोटे देशों को भी पहुँचाया जिसकी चिंता विश्व के विकसित देशों ने छोड़ दी थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत की इस भूमिका को अतुलनीय माना है।   भारत अपने लोगों की भी चिंता करता है और दुनिया की भी। यही तो भारत है जो चीन की तरह  कोरोना वायरस महामारी के बीच अपना उपनिवेश नहीं बना रहा है न ही  किसी मुल्क पर कोई  शर्त थोप रहा है कि सिर्फ चीन वाली वैक्सीन लगाए। चीन ने अपने हालिया वीजा रूल में अपने देश आने वाले लोगों के लिए चाइनीज वैक्सीन अनिवार्य कर दिया है। दुनिया से यही सवाल तो जयशंकर कर रहे हैं कि हमें किसी से प्रमाणपत्र की जरुरत नहीं है। 

स्वनामधन्य पत्रकार रवीश कुमार कहते हैं भारत लोकतंत्र का चेहरा था,आज भारत की संस्थाएं चरमराती नज़र आ रही है।   इनके पास कोई तर्क नहीं है बल्कि फ्रीडम हाउस ,वी डेम ,इकनोमिक इंटेलिजेंस यूनिट जैसी संस्थाओं के भारत विरोधी अभियान के सुर में सुर मिला कर कुछ लोग फ्रीडम और जम्हूरियत के झंडाबरदार बन  रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी को डेमोक्रेसी खतरे में लगता है।  वो कहते हैं भारत में अब लोकतंत्र रहा ही नहीं, आज सरकार विरोध की आवाज कहां सुनती है। ये अलग बात है कि उनकी पार्टी के  कई कद्दावर नेता पार्टी में तानाशाही का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ रहे हैं। वही वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के समूह जी 23  पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की मांग कर रहे हैं। राहुल गाँधी संसद में प्रधानमंत्री को चोर कह सकते हैं, उन पर रात दिन बेबुनियाद आरोप लगाते हैं लेकिन वे  उनकी तुलना सद्दाम और गद्दाफी से करते हैं। यानी अगर कांग्रेस सत्ता में नहीं है तो देश में लोकतंत्र खतरे में स्वाभाविक है। 


विविधता वाले इस देश में लोकतंत्र इसकी शाश्वत पहचान रही  है। कानपुर देहात के एक छोटे गाँव के दलित परिवार में जन्मे रामनाथ कोविंद भारत के राष्ट्रपति बन सकते हैं। एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन सकते हैं।  हर साल भारत की श्रेष्ठता की कहानी बताने वाले दर्जनों अनसंग हीरो पद्म विभूषण सम्मान पा रहे हैं। नए भारत में करोड़ों लोग रोज हर मुद्दे पर अपनी स्वतंत्र राय रख रहे हैं फिर भी अगर लोकतंत्र खतरे में है तो माना जायेगा कि कुछ लोग भारत को देखने के लिए आज भी विदेशी चश्मे का इस्तेमाल कर रहे हैं। 

 

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