जनभागीदारी से जीती जा सकती है कोरोना से जंग


कोरोना महामारी के कारण और निदान को लेकर अभी रिसर्च जारी है। 2019 से 2021 तक हमने कोविड के संदर्भ में जितनी भी टर्मिनोलॉजी याद की वे अब पुराने हो गए अब नये नये  वेरिएंट की चर्चा होने लगी है। दुनिया चीन के वुहान से निकले कोरोना वायरस को भूल चुके अब लोग यू के वेरिएंट ,अफ्रीका वेरिएंट ,इंडियन वेरिएंट का नाम लेने लगे हैं । हम  ग्लोबल विलेज के दौर में जीते हैं जहाँ दुनिया की दूरी काफी सिमट गयी है। पिछले महीने ही विज्ञान पत्रिका द नेचर ने एक शोध प्रकाशित किया था कि भारत के बड़े शहरों में आधे से ज्यादा लोग इन्फेक्टेड होकर एंटीबाडी बना चुके हैं। इस हिसाब से भारत में सेकंड पीक का यह कत्लेआम नहीं होना चाहिए था। लेकिन जैसे ही इंग्लैंड  में तबाही थमी वही वेरिएंट भारत में कोविड को लेकर हमारे सारे सक्सेस स्टोरी के दावे को फेल कर दिया। वैज्ञानिक कहते हैं  इंडियन वेरिएंट  यू के वेरिएंट से ज्यादा इन्फेक्शन स्प्रेड करता है।  पिछले साल कोरोना से लड़ने के लिए हमने कई  महीने अपने को लॉक डाउन में सील कर लिया। हज़ारो जिंदगी इससे बची लेकिन क्या यह लॉक डाउन  बार बार संभव है? 

दूसरे वेब का खौफ लोगों के सर चढ़ कर बोल रहा है। बहुत ही कीमती जाने इस दौर में गयी है। एक एक दवा और ऑक्सीजन की एक घुट के लिए लोगों ने काफी संघर्ष किया है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए मानव अस्तित्व के ऊपर आया यह संकट अभी ख़तम नहीं हो रहे हैं। दूसरे वेब के बाद हमें तीसरे वेब का इन्तजार करना होगा या फिर कोई और खतरनाक वेरिएंट आ जाय और लोगों को डसना शुरु कर दे ? तो क्या इसका समाधान घरों में दुबक जाना है।  एक बुजुर्ग बाप /मां का सड़को पर संघर्ष देखिये कोई मदद के हाथ बढ़ाने को तैयार नहीं है। एक गरीब  आदमी का दवा के लिए संघर्ष देखिये।   लाखों करोडो रूपये के अट्टालिकाओं में पूरा परिवार कोरोना पीड़ित होकर जीवन संघर्ष कर रहे  हैं  लेकिन कोई उनके दरवाजे पर  जाकर कहने वाला नहीं है मैं हूँ ना ! 

याद रखिये कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने  पिछले साल एक दिन भी घर से  बाहर कदम  नहीं रखा लेकिन  उनका भी  कोरोना ने उनके दरवाजे पर ही स्वागत किया है। फिर क्या  डरना  इसका समाधान है ? यकीन मानिये दुनिया ने  कोरोना प्रोटोकॉल में अपने को छुपा लेना सीख लिया है।  

भारत की आध्यात्मिक चेतना में कोरोना से लड़ने का सूत्र है। यहाँ गौतम बुद्ध को महाभिषक कहा गया है यानी वैद्य। यहाँ स्वयं शिव वैद्यनाथ हैं जिन्हे दुःख हरने वाला बताया गया है। यानी भय से मुक्ति रोग से मुक्ति है।
 100 साल पहले प्लेग महामारी  के वक्त  ऐसे ही डरे समाज को पीड़ितों की मदद के लिए विवेकानद ने आह्वान किया था। उस समय देश में  एक करोड़ से ज्यादा लोग  महामारी में मरे थे।  स्वामी विवेकानंद ने प्लेग मैनिफेस्टो निकाला  और लोगों को मानसिक रूप से तैयार किया।  "सब भयमुक्त रहे।  भय सबसे बड़ा पाप है।  मृत्यु निश्चित है लेकिन कायर मृत्यु भय से बार बार मरता है।  उन्होंने कहा इस मृत्यु भय को त्यागो और लोगों की सेवा करो।" यही प्रयोग  गांधी जी  ने स्पेनिश फ्लू की महामारी के दौर में किया था। बापू निर्भीक होकर फ्लू से पीड़ित लोगों के बीच जाकर उनकी सेवा करते थे ,उन्हें गंदगी से बाहर लाते थे। आज हम सब कुछ सरकार भरोसे बैठकर इस कोरोना महामारी  को परास्त नहीं कर सकते। इसमें समाज को आगे आना होगा। जिन्होंने  आज अपने को  सुरक्षित मान लिया है कल वो भी दूसरे की जरुरत महसूस कर सकते हैं ।
  
सामाजिक भागीदारी से इस देश में कई बड़े आंदोलन हुए हैं।  कई चमत्कार भी हुए हैं। इस दौर में शहर से लेकर गांव तक पीड़ित परिवार कोने में असहाय होकर सिमट गया है। उसे इस दौर में कोई मदद करने को तैयार नहीं है।  क्या हर गांव में हर मोहल्ले में ऐसे पांच  वालंटियर नहीं हो सकते जो परेशान  लोगों का हाल जाने उन्हें सामाजिक  सहयोग या सरकार से तत्काल मदद का भरोसा दे।  बहुत कुछ हो सकता है करके देखिये ! 

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