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अयोध्या ; लोग आए तो राम भी आए हैं

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 अयोध्या ; लोग आए तो राम भी आए हैं अयोध्या में यह गीत बार बार उद्वेलित करता था कि राम आयेंगे।राम गए कहां थे? राम तो भारत की आत्मा हैं,वो तो यहां के कण कण में है, मन में हैं।लोगों ने यहां आना छोड़ दिया था।भारत का अयोध्या जैसे आस्था, विश्वास और भक्ति के स्तंभों से नाता छूट गया था।  आज अयोध्या एक कस्बा भर नहीं रह गई बल्कि देश की धड़कन बन गई है। मानो अयोध्या वैश्विक मानचित्र पर एक अलग वेटिकन सिटी बन गई हो। दुनिया भर में लोग अयोध्या से जुड़े हैं क्योंकि यहां लोग आए हैं फिर राम लला भी।मैने राम लला की आंखों में लोगों को वापस आने की खुशी देखी है। मैंने उनकी आंखों में जागृत भारत की खुशी देखी है।आज अयोध्या अपने भाग्योदय से गौरवान्वित हुई है। 1992 में नरेंद्र मोदी ने राम लला को एक टेंट में पूजा की थी।तब उन्होंने कहा था अयोध्या फिर मंदिर निर्माण के बाद ही आऊंगा। तो क्या मोदी ने दुबारा आने के लिए जंगल में तपस्या की थी। सैकड़ों साल से हमारे ऋषि मुनि राम को पाने के लिए तपस्या करते रहे हैं। लेकिन उनकी तपस्या में लोग नहीं जुड़े।बाबा तुलसी दास ने अपने राम की तपस्या को लोगों के बीच लाया तो संघ की तपस्या

है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़ !

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   है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़ ! भारत   में उत्तर से लेकर दक्षिण तक पूरब से पश्चिम तक  सबसे ज्यादा राम और उनकी मर्यादा पर ही लिखी गयी हैं। बाल्मीकि के राम, शबरी के राम ,निषाद राज के राम ,तुलसी के राम , रहीम   के राम , कबीर   के राम , रसखान  के राम और गांधी के राम। अनंत लोक गाथाओं के राम। राम जिन्हें अल्लमा इक़बाल ने इमामे हिन्द कहा था। राम अयोध्या आ रहे हैं।  सांस्कृतिक पुनर्जागरण  के दौर में देश के जनमानस में जो उत्साह  और उमंग  बना है ,यह बता रहा है राम आ रहे हैं। राम की नगरी अयोध्या में 2. 77 एकड़ जमीन के विवाद का मुकदमा 135 वर्षो तक क्यों चला ? शायद इस देश की सियासत और समाज के पास इसका जवाब नहीं होगा । 2009 में विवादित भूमि में लगभग 50 गज जमीन इलाहबाद हाई कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को भी दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में महज एक बेंच बनाने ,सबूतों को अनुवाद करने में वर्षों लग गए। कहते हैं न सब चीजे वक्त से ही तय होती है और यह सौभाग्य प्रधानमंत्री मोदी को ही मिला और उनके कर कमलो से मंदिर निर्माण का शिलान्यास हुआ और अब 22 जनवरी को राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी होने ज
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विक्टिम कार्ड से देश को तोड़ने की एक और साजिश    प्रिय राहुल गाँधी जी , आपकी मोहब्बत की दुकान में मुस्लिम विक्टिमहुड की  पकवानों ने देश के  एक समुदाय को दुनिया भर में पीड़ित दिखाने और दूसरे समुदाय को निर्मम हत्यारा साबित करने की पूरी साजिश की है। आपकी अमेरिका यात्रा में मीटिंग्स प्रायोजित करने वाली संस्था इंडियन अमेरिकन मुस्लिम कौंसिल ने पीएम मोदी के स्टेट विजिट के दौरान भारत में मुस्लिम  के खिलाफ अत्याचारों को जमकर प्रचारित किया था। यहाँ तक कि  पूर्व राष्ट्रपति ओबामा भी  उपदेशक की भूमिका में आ गए थे। बराक ओबामा की मोहब्बत की दुकान आपने देखा  है जिसमे उनके ड्रोन हमले में सैकड़ो बेकसूर मुसलमान मारे गए थे लेकिन वे भारत को साहिष्ष्णुता की पाठ पढ़ा रहे थे। क्योंकि उनके पास आपके नैरेटिव के कुछ पुड़िया पड़ी हुई थी। लेकिन आपने एक खबर जरूर पढ़ी होगी कि कश्मीर में दो मासूमों  नीलोफर और आयशा जान को रेप पीड़िता बताने वाले दो डॉक्टर्स को कश्मीर प्रशासन ने  पिछले दिनों सेवा से वर्खास्त कर दिया है।  अब आप यह मत कहियेगा की बात 2009 की है। लेकिन याद दिलाना जरुरी है कि तब केंद्र में  आपकी सरकार थी और कश्मीर मे

नीतीश कुमार के बिहार में मनुवाद !

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 नीतीश के बिहार में मनुवाद ! तमसो मा ज्योतिर्गमय। अंधकार से दूर प्रकाश की कामना भारत के सनातन परंपरा का मूल मंत्र रहा है।दुर्गा पूजा में अपने गांव सतघारा ,मधुबनी में ट्रैफिक जाम का नजारा मुझे अचंभित कर रहा था। किसी भी रास्ते से सिर्फ पैदल निकला जा सकता था। गरीब, अमीर , कोइर,कुर्मी,यादव, ब्राह्मण,मोची ,पासवान,चौपाल या दूर टोले के डोम परिवार।भीड़ में सभी टोले ,जाति की पूजा में कोई पहचान नहीं रह गई थी। सबका मंजिल एक,सबके चेहरों पर लबालब उत्साह ,सबकी अंधकार से प्रकाश में आने की एक कामना।  जातिवादी बिहार में यह कैसा मनुवाद है जिसने हर के हाथ में मिट्टी के एक छोटे से दीप देकर दुर्गा मंदिर के सामने हर वर्ग की महिलाओं के अंदर आत्मशक्ति की दिव्यता का एहसास कराया है।क्या यह सामाजिक न्याय वाले बिहार की सामाजिक क्रांति है?  इस राष्ट्र का अस्तित्व इसी दिव्यता में कायम सदियों से रहा है। लेकिन मुझे सामाजिक न्याय के सवाल का जवाब भी मिला। रात में दुर्गा स्थान के अहाते में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़ के बीच लाल धोती पहने एक भगत को मैने किसी बच्चे के सर पर हाथ रखकर उसके कल्याण होने जैसा कुछ आश्वासन देते दे

हिन्दू फोबिया ,इस्लामोफोबिया और कबीर

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बात 2017 की थी जब उत्तर प्रदेश के  बिजनौर के जोगीरामपुरा के लोगों ने गांव छोड़ने की धमकी दी थी  ,वजह सुनना चाहेंगे ? स्थानीय जिला प्रशासन में स्थानीय मंदिर पर लाउडस्पीकर बजाना  मना कर दिया था  । क्योंकि  बहुसंख्यक मुस्लिम गाँव में हिन्दू मंदिर पर लाउडस्पीकर बजने पर कुछ लोग खून खराबे पर उतर आते थे।   लेकिन ,स्थानीय मस्जिदों के ऊँचे गुम्बद पर बंधे लाउडस्पीकरों से सुबह शाम अनेकों बार उठती ऊँची आवाज़ से प्रशासन को कोई परेशानी नहीं थी । सच दिखाने और निष्पक्ष बोलने वाले आज के कबीर बने मीडिया क्लबों से ठीक वैसी ही हिदायत सुनने को मिल रही है।  पत्रकार सबा नकबी के ख़िलाफ़ पुलिस ने हिन्दू धर्म के खिलाफ अमर्यादित प्रतिक्रिया पर केस दर्ज की है तो इकोसिस्टम इसे फ्रीडम ऑफ़ स्पीच के खिलाफ इसे गैरकानूनी कार्रवाई मान रहे हैं.उनके लिए देश जलना उतना गंभीर मामला नहीं है जितना सबा नकबी पर क़ानूनी करवाई की प्रक्रिया ।  दूसरी पत्रकार और पूर्व बीजेपी प्रवक्ता के खिलाफ देश दुनिया में चौथे स्तंभ बने प्रेस क्लब और उनकी इकाइयां  क़ानूनी करवाई की मांग करती  हैं। डॉ तस्लीम रहमानी पर मीडिया में कोई करवाई की बात नहीं हो रह

क्यों निशाने पर आये बिहारी मजदूर नीतीश जी से ज्यादा एहसान फरामोश है कश्मीर ?

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  आदरणीय एल जी साहब , 2006 में ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा था कि बगैर बिहारी मजदूर के हम कश्मीर में एक इंच सड़क नहीं बना सकते। बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने अपना अनुभव पत्रकारों को सुनाया था कि सड़क चाहे जांस्कार में बन रहा हो या कुपवाड़ा में हमने एक भी मजदूर अपने रियासत का नहीं देखा। हालाँकि आज़ाद साहब ये नहीं कहा कि 1 करोड़ की आबादी वाले जम्मू कश्मीर को 12 करोड़ आबादी वाले बिहार से ज्यादा केंद्रीय फण्ड मिलता है उसे पहाड़ो पर सड़क जैसे जोखिम काम करने की क्या जरुरत। कश्मीर का सालाना बजट बिहार से ज्यादा है। सरकारी नौकरियों में बिहार से ज्यादा कश्मीर के लोग हैं लेकिन अफ़सोस उन्ही बिहारी मजदूर को जिन्होंने कश्मीर में बुनियादी सहूलियतें मजबूत की ,अपने बिहार से ज्यादा कश्मीर में स्कूल /अस्पताल बनाये उन्हें आतंकियों ने जब तब निशाना बनाया है । अफसोस है कि आतंकी हमले में मारे गए टूरिस्ट को लेकर वही मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद खूब रोये थे लेकिन इन बिहारी मजदूरों की मौत पर संवेदना के दो शब्द भी कश्मीर से नहीं मिला ।नीतीश के पंचायती राज और प्रशासन में बेइंतिहां भ्रष्टाचार ने गरीब लोगों को विकास की धारा

क्यों राहुल गाँधी को कश्मीर अपना घर लगता है ? 

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जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा ख़तम होने और आर्टिकल 370 निरस्त होने के दो साल बाद राहुल गाँधी का यह पहला जम्मू कश्मीर का दौरा था। माता वैष्णो देवी के दरबार में इंदिरा जी भी गयी थी सो ,राहुल जी भी जय माता दी कहते हुए दरवार पहुंचे लेकिन इंदिरा जी ने कभी नहीं कहा कि वे कश्मीरी पंडित हैं। राहुल गाँधी ने इस रहस्य से पर्दा उठाते हुए साफ़ किया है कि उनका परिवार कश्मीरी पंडित समुदाय से आता है! राहुल गांधी ने कहा कि जब भी मैं जम्मू-कश्मीर आता हूं, मुझे लगता है कि मैं घर आ गया हूं। वैसे सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा लिखने वाले अल्लमा इक़बाल का भी सरोकार कश्मीर के पंडित खानदान से ही माना जाता है। डीएनए में न उलझें तो बेहतर है।. मुझे लगता है कि हर भारतीय को कश्मीर अपना घर जैसा लगता है लेकिन अफ़सोस राहुल जी के पुरखों ने कश्मीर से अपनत्व को आर्टिकल 370 और 35 A लगाकर कम कर दिया था । कश्यप ऋषि, कनिष्क , शंकराचार्य और अभिनव गुप्त के कश्मीर से भारत का प्राचीन सम्बन्ध हटाकर हमारा परिचय 1948 के बाद वाला जम्मू कश्मीर से कराया गया था। जाहिर है कश्मीर के मूल निवासी कश्मीरी पंडित भी अपना घर