अयोध्या में दीपोत्सव यानी राजीव गाँधी के रामराज्य का शंखनाद !
फैजाबाद से गुजरती हुई ट्रेन में किसी यात्री ने कहा हम अयोध्या पहुंच गए हैं। सीट से जल्दी में उतरते हुए मैंने अपनी मां से पूछा था ,क्यों नीचे आ रही हो ?,माँ ने कहा था राजा राम के नगर से बगैर दर्शन के चली जाऊं ? बगैर अयोध्या की मिट्टी को प्रणाम किये कैसे चली जाउ। यह राजा राम की अयोध्या है यह तुलसी दास का अवध है जहाँ देश -विदेश के करोडो लोग आज भी अपने आपको को इस नगर के प्रजा के रूप में देखते है।
अयोध्या के सांस्कृतिक विकास का अर्थ सिर्फ राजनीति नहीं है बल्कि उससे ज्यादा अर्थशास्त्र भी है। यही तो रामराज्य है। आज तक उत्तर प्रदेश में दर्जनों एक्सप्रेस वे बनाने वाली हुकूमत को यह पता नहीं चला कि देवस्थलों/धार्मिक स्थलों के विकास किये बगैर उत्तर प्रदेश का आर्थिक विकास असंभव है। दुनिया में आज भी सबसे ज्यादा टूरिस्ट प्राचीन परम्परा और धरोहर/सभ्यता को ही देखने जाते हैं। भारत की यह पूंजी दुनिया में सबसे ज्यादा समृद्ध है लेकिन विज़न नहीं होने के कारण प्राचीन नगरी अयोध्या ,वाराणसी ,मथुरा , प्रयागराज ,आगरा जैसे दर्जनों शहर उपेक्षा के शिकार हो गए हैं । सिर्फ अयोध्या का विकास ही राज्य के 15 लाख लोगों के रोजगार की गारंटी देता है लेकिन इसके लिए मजबूत इच्छशक्ति और हर समुदाय के बीच संवाद की जरूरत है। जरुरत इस बात की भी है कि योगी आदित्य नाथ भी अपने भाव और स्वभाव में परिवर्तन लाये और उपदेशक कम राज्य का नेतृत्व राजनेता के रूप करते करते दिखें ।
धार्मिक स्थल रोजगार के प्रमुख साधन हो सकते हैं. इस देश की प्राचीन परम्पराओं ने अर्थ के बाद ही धर्म और मोक्ष की चिंता की है। खुली हवा में भारत को समझने देखने की शाश्वत आदत ही भारत को गौरवान्वित करती है। राम मंदिर बने यह मसला स्थानीय जनमानस और समाज का होगा तो अयोध्या और मर्यादा पुरुषोत्तम राम की गरिमा बढ़ेगी। यहाँ के हर समुदाय के लोगों में अगर अयोध्या से आस्था अपने रामलला से जुड़ाव है तो राममंदिर के लिए बहस क्यों ?अगर अवध को अपने राम से स्नेह नहीं है तो दुनिया के लिए अयोध्या से भी कोई नाता नहीं होगा। राम के आदर्श तो लोगों के दिल में है और उनकी सांस्कृतिक विरासत दुनिया के कई देशों में लोग ढूंढ लेंगे।
2013 के फ्लड हादसे के बाद यह पहला मौका है जब हिमालय की दुर्गम पहाड़ी सिलसिलो में स्थित बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए 15 लाख से ज्यादा लोग पहुंचे हैं। जाहिर है यात्रियों की भारी भीड़ ने स्थनीय उद्योग और रोजगार को उत्साह से भर दिया है और इस सिलसिले को प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संकल्प से आगे बढ़ाया है। अपने तय कार्यक्रम के अनुरूप प्रधानमंत्री मोदी हर साल यहाँ आते हैं और दुनियाभर के लोगों को यहाँ आने के लिए प्रेरित करते हैं।
दुनिया के टूरिज़्म के नक्से पर भारत का स्थान थाईलैंड से भी कम है ,जबकि कई एशियाई देशों में टूरिज्म आज सबसे बड़ी इंडस्ट्री के रूप में स्थापित है। लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में भारत अभी भी इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए ही संघर्ष कर रहा है। सिर्फ रामायण सर्किट ,बुद्धा सर्किट ,रामवनगमन यात्रा रूट जैसे शब्द गढ़ने से काम नहीं चलेगा। माता वैष्णो देवी और अमरनाथ श्रयाण बोर्ड बनवाकर जम्मू कश्मीर के तत्कालीन गवर्नर जगमोहन ने इन दोनों धार्मिक स्थलों को रियासत का सबसे ज्यादा रेवेन्यू और रोजगार उपार्जन करने वाली संस्था बना दिया तो यह प्रयोग दूसरे धार्मिक स्थलों पर क्यों नहीं हो सकता ? *विनोद मिश्रा *
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