हमरालग रहब
हुन्जक हुन्ज गाम सं भागैत लोक .ट्रेन मे ठसाठस ठुसल लोक , बस के छत पर नार पुआर जकाँ पसरल लोक , कहियो अहाँ पुछिअलैक जे एतेक लोक कतई जारहल अछि।
शायद नहि , लोकक ई पलायन ककरालेल चिंता के विषय भई सकैत अछि , अहाँ
लेल ! शायद नहि , अहांक परोशी लेल ! शायद नहि , जाहिर अछि ई चिंता मिथिला के भई सकैत अछि ओही समाज के भई सकैत अछि । कोनो वयक्ति के शायद ही अहि सा नुकसान हो ।
अहांके खेती नहि भई रहल अछि त कोई बात नहि परदेश मे काज करे बाला कोनो समांग घर जरुर सम्भैल लेतः । आई तकरीबन हर घर के कियो नहि कियो लोक परदेशी जरुर छथि, अहि तरहे अगर अहांके अहि पलायन सं चिंता नहि अछि त शायद ककरोऊ नहि छैक .
अहांके याद अछि आपन खेत और खलिहान , आजुक उजरल उप्तल खेत खलिहान मिथिला सं भेल पलायन के कहानी खुद बयां करि सकैत अछि .मनिओदर आई मिथिला मे कातिक के असर के लगभग खतम कई देलक अछि लेकिन एहो बात सत्य अछि जे मिथिला सं अगहोनों गायब भई गेल अछि , हमरा याद अछि किछु साल पहिले तक गाम सं आबे बाला लोक फसल के चर्चा करैत छल आई हाल चाल मे धान के चर्चा बाहर भई गेल अछि , मिथिला मे उद्योग के जरुरत छैक , मिथिला मे धन के जरुरत छैक लेकिन हमरा नहि बिस्रक चाही कि मिथिला के आन समांग के सहो जरुरत छैक , सरकार के कतेको योजना सक्षम अछि जे हमर कतेक समांग के पेट भरी सकैत अछि त किया हमर गामक बिन्दा के डेल्ही और पंजाब भागय परैत छैक । कि आई गाम अपन बिन्दा के पारस के रोटी के जुगार नहि कई सकैत छैक ।ई चिंता समाजक छी शायद ई चिंता अहुंक भय सकैत ई हमर कोशिश रहत .
शायद नहि , लोकक ई पलायन ककरालेल चिंता के विषय भई सकैत अछि , अहाँ
लेल ! शायद नहि , अहांक परोशी लेल ! शायद नहि , जाहिर अछि ई चिंता मिथिला के भई सकैत अछि ओही समाज के भई सकैत अछि । कोनो वयक्ति के शायद ही अहि सा नुकसान हो ।
अहांके खेती नहि भई रहल अछि त कोई बात नहि परदेश मे काज करे बाला कोनो समांग घर जरुर सम्भैल लेतः । आई तकरीबन हर घर के कियो नहि कियो लोक परदेशी जरुर छथि, अहि तरहे अगर अहांके अहि पलायन सं चिंता नहि अछि त शायद ककरोऊ नहि छैक .
अहांके याद अछि आपन खेत और खलिहान , आजुक उजरल उप्तल खेत खलिहान मिथिला सं भेल पलायन के कहानी खुद बयां करि सकैत अछि .मनिओदर आई मिथिला मे कातिक के असर के लगभग खतम कई देलक अछि लेकिन एहो बात सत्य अछि जे मिथिला सं अगहोनों गायब भई गेल अछि , हमरा याद अछि किछु साल पहिले तक गाम सं आबे बाला लोक फसल के चर्चा करैत छल आई हाल चाल मे धान के चर्चा बाहर भई गेल अछि , मिथिला मे उद्योग के जरुरत छैक , मिथिला मे धन के जरुरत छैक लेकिन हमरा नहि बिस्रक चाही कि मिथिला के आन समांग के सहो जरुरत छैक , सरकार के कतेको योजना सक्षम अछि जे हमर कतेक समांग के पेट भरी सकैत अछि त किया हमर गामक बिन्दा के डेल्ही और पंजाब भागय परैत छैक । कि आई गाम अपन बिन्दा के पारस के रोटी के जुगार नहि कई सकैत छैक ।ई चिंता समाजक छी शायद ई चिंता अहुंक भय सकैत ई हमर कोशिश रहत .
टिप्पणियाँ
If opportunities are at home, no one would like to venture outside.
While the old way of doing agriculture with the diminishing resources in being continuously hit with flooding of water and no rains alternate years, much can't be expected.
We have to revolutionise the way we are doing agriculture.
However, we can be hopeful of certain developments -
1) Corporates taking interest in related businesses in Bihar.
2)CII has given thrust on the development of agro indusries in Bihar viewing its competitive advantages.
3) Some developments in other parts of the country like eChaupals in Madhya Pradesh.
It is possible that changes in agriculture can change the fate of of Mithila and Bihar. We can very well stop Binda for not going to Panjab or outside. Because we (society) need Binda more than he needs us!