सुरक्षाबलों की मौत पर बंद करो ये घडियाली आंसू
ज्यादा सुरक्षा वल मौत के घाट उतार दिए गए .नक्सली आतंकियों द्वारा किया गया यह सबसे बड़ा हमला है .
४ अप्रैल २०१० ,कोरापुट ११ जवान नक्सली हमले के शिकार हुए .१५ अप्रैल २०१० मिदनापुर के एक कैम्प पर नाक्सालियो ने हमला करके २४ जवानों को शहीद कर दिया .इस साल के कुछ बड़े हमले की यह सूचि है .यकीन मानिये अबतक नक्सल विरोधी अभियान मे २००० से ज्यादा जवानों की मौत हो चुकी है .लेकिन भारत सरकार की यह जिद है कि यह लड़ाई राज्य सरकारे लड़ेगी केंद्र सिर्फ उन्हें सहायता देगा .सियासत ऐसी कि नक्सल के खिलाफ अभियान को राज्यों मे ऑपरेशन ग्रीन हंट का नाम दिया जा रहा है लेकिन हमारे गृह मंत्री ऐसे किसी ग्रीन हंट ऑपरेशन से इनकार करते है .दंतेवाडा के मुकरना जंगल मे नाक्सालियो ने बड़ी ही बेरहमी से ७६ जवानों को भून डाला और सुरक्षाबल नाक्सालियो पर एक गोली भी नहीं चला पाए .यानि नक्सालियों के अम्बुश का तोड़ अभी सी आर पी ऍफ़ के पास नहीं है .नक्सली के हर अम्बुश मे सी आर पी ऍफ़ के जवान फसते है .१०० -२०० के नक्सली गुरिल्ला की फौज उनका आसानी से सफाया कर जाते है .
.बिहार ,बंगाल ,छत्तीसगढ़ ,झारखण्ड और उड़ीसा मे नक्सालियों का कहर जारी है .कही इनके निशाने पर ग्रामीण है तो कही नक्सालियों को शिकस्त देने गए सुरक्षाबल मारे जा रहे है . सरकार के साथ आँख मिचौली के खेल मे नक्सली अपनी रणनीति से सरकारों को थका रही है और हर हादसे के बाद एक दुसरे पर तोहमत लगा कर राजनितिक पार्टियाँ एक दुसरे को बौना साबित करने में जूट जाती है .
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नक्सल आतंक के खिलाफ नवम्बर महीने से जोरदार हमले की तैयारी थी . ऑपरेशन ग्रीन हंट की तैयारी मीडिया के द्वारा छन छन कर लोगों के बीच आ रही थी . नगारे बज रहे थे मानो फाॅर्स बस्तर के जंगल में घुसेंगे और गणपति से लेकर कोटेश्वर राव तक तमाम आला नक्सली लीडरों को कान पकड़ कर लोगों के बीच ले आयेंगे . लेकिन भारत सरकार बातों मे जितनी गंभीर दिखती है एक्शन मे उतनी ही लचर है .. यानि कैबिनेट कमिटी ओन सिक्यूरिटी की बात एयर फाॅर्स के ऑपरेशन की बात . नक्सल प्रभावित इलाके में सेना से मदद लेने की बात ,हर रणनीति की बात गृह मंत्री ख़ारिज करते है ..यानि चिदम्बरम साहब नक्सल के खिलाफ जंग भी लड़ना चाहते है और सामने भी नहीं आना चाहते .वो राज्य सरकारों को मदद दे रहे, वे ४० से ५० बटालियन फाॅर्स नक्सल प्रभावित राज्यों को भेज रहे .उनकी फाॅर्स को राज्य सरकार के काबिल पुलिस अधिकारी अपने हिसाब से लगा रहे है .जाहिर है कभी बंगाल के मिदनापुर में नाक्साली २४ paramilitary फाॅर्स की बेरहमी से हत्या करके चला जाता है ,तो कभी बस्तर में तो कभी झारखण्ड मे दर्जनों सी आर पी ऍफ़ के जवान बे मौत मारे जा रहे है . हर हमले के बाद राज्य सरकारों की दलील होती है ,इंटेलिजेंस फेलुएर का ,बला बला .
जहाँ नक्सल के खिलाफ कोई ख़ुफ़िया जानकारी ही नहीं है उसके फेलुएर होने का क्या मतलब होता है .१२० सी आर पी ऍफ़ के जवान नक्सल के लिब्रतेद जोन मे दाखिल हुए .दंतेवाडा के इस जंगल से इन जवानों को कोई वास्ता नहीं था .टोपोग्राफी से इन्हें कोई परिचय नहीं था .उन्हें यह भी पता नहीं था कि १००० से ज्यादा नक्सली उनपर हमले के लिए तैयार बैठे है .इन जवानों को माइन प्रूफ गाड़ियों मे बैठाया गया था ,लेकिन एक ही धमाके मे गाड़ी के परखचे उड़ गए .इन जवानों की मौत की जवाबदेही तय होनी चाहिए लेकिन अधिकारी सुरक्षा चुक मानकर अपना पल्ला झार लेंगे तो गृह मंत्री कोई नयी रणनीति का खुलासा कर देंगे .
.जरा आप छत्तीसगढ़ सरकार की तैयारी पर गौर करे
राज्य में चार किलो मीटर की दुरी पर एक पुलिस वल की मौजदगी है
नक्सल प्रभावित बस्तर इलाके में एक पुलिस की मौजदूगी ९ किलो मीटर पर है
राज्य में नक्सल के खिलाफ अभियान छेड़ने के लिए २०००-से ३००० पोलिसवल को गुरिल्ला जंग के खिलाफ ट्रेनिंग दी गयी है ,
जंगल इलाके में खुफिया जानकारी के लिए कोई ठोस पहल नहीं हुई है .
बस्तर इलाके में ९५ फीसद सड़के कच्ची है जिनमे अधिकांश जगहों पर नाक्साल्लियों का माइयन बिछे पड़े है .
लेकिन हम फिर भी राज्य सरकार से उम्मीद करते है कि राज्य सरकार अपनी लडाई खुद लड़ लेगी .राज्य सरकार अपने रोज मर्रा की समस्या मे अस्त व्यस्त है ,लेकिन हम उससे उम्मीद करते है कि रमण सिंह कैंप लगाकर बस्तर मे बैठ जाय .जबकि यह बात केंद्र सरकार जानती है कि बस्तर मे मौजूद नक्सलियों को सिर्फ छत्तीसगढ़ सरकार डील नहीं कर सकती इसमें आंद्रप्रदेश सरकार की मदद की जरूरत है .पशिम बंगाल की सरकार अकेले मिदनापुर मे नक्सलियों से लोहा नहीं ले सकती उसे झारखण्ड सरकार की जरूरत होगी .यानि जब तक उड़ीसा ,पश्चिम बंगाल ,झारखण्ड ,छत्तीसगढ़ ,आन्ध्र प्रदेश ,बिहार ,महाराष्ट्र को नक्सल के खिलाफ अभियान मे एक साथ शामिल नहीं किया जाता ,तब तक नक्सलियों को हराना मुश्किल है .या फिर जब तक नक्सल प्रभावित जिलों मे डिस्टर्ब एरिया एक्ट लगाकर उन्हें सेना के हवाले सौपा नहीं जाता तब तक नक्सल के खिलाफ अभियान की बात करनी बेमानी होगी .
गृह मंत्री के दो चेहरे है ,मिडिया के सामने उनका व्यक्तित्वा निर्णायक लीडर जैसे उभरता है लेकिन एक्शन के मामले वे कही से शिवराज पाटिल से अलग नहीं है .गृह मंत्रालय पिछले महीनो मे पाच से ज्यादा बार मुख्यमंत्रियों की बैठके कर चूका है लेकिन हर बार वोट के आकलन मे ये तमाम निर्णय उलझ कर रह जाते है .सरकार यह मानती है कि माओवादियों का लोकतंत्र मे कोई आस्था नहीं है .सरकार यह मानती है कि नाक्सालियो के कब्जे से उन्हें अपने क्षेत्र को आज़ाद कराने है .सरकार यह मानती है कि नक्सलियों का कोई सिधांत नहीं है .फिर सरकार को अपनी संप्रभुता को बहाल करने से कौन रोक रहा है .नक्सली के जनसमर्थन का अंदाजा आप इससे लगा सकते है कि पिछले वर्षों मे नक्सलियों ने ४०० से ज्यादा स्कूलों को बमों के धमाके से उड़ाया है .फिर भी कुछ लोग उन इलाकों मे नक्सलियों के जनसमर्थन की बात करते है तो यह कहा जा सकता है कि वे सीधे तौर पर नक्सलियों के एजेंट है जो सफ़ेद चोगा पहनकर सरकार और मुल्क को गुमराह कर रहे है .हर नक्सली हमले के बाद गृह मंत्री बुद्धिजीवियों को कोसते है .उन्हें नाक्साली हमले की निंदा करने की अपील करते है .लेकिन चिदम्बरम साहब यह भूल जाते है सरकार इखलाक से चलती है .सरकार को यह भरोसा देना होगा कि उनकी राज सत्ता नक्सली आतंक को कुचलने के लिए सक्षम है .इस अभियान मे ममता ,शिवू सोरेन जैसे लीडर और मानवाधिकार संगठन आड़े आते है तो सरकार की सत्ता को यह तय करना होगा कि उनके लिए देश की संप्रभुता अब्बल है या फिर वोट की सियासत .
टिप्पणियाँ
Aapne bahut gahrai tak sochkar lekh likha hai .bahut-bahut dhanyabad.