गृह मंत्री चिदम्बरम की माया कांग्रेस और बीजेपी पर भारी
"बक स्टॉप आट माय डेस्क " यह उस गृह मंत्रालय के लीडर का बयान था जहाँ यह कभी रिवायत नहीं थी .छत्तीसगढ़ के दंदेवाडा से भी भयानक हमले इस मुल्क पर हुए है .आतंकवादी हमले मे एक एक दिन में २०० से ज्यादा लोग मारे गए है लेकिन गृह मंत्री कभी भी इसकी जिम्मेदारी लेने आगे नहीं आये .कभी कहा गया हर जगह सुरक्षाबल मुस्तैद करना संभव नहीं है . तो कभी कहा गया राज्य सरकारों या फिर आला पुलिस ऑफिसर को ख़ुफ़िया जानकारी पहले ही दे दी गयी थी .यानि हर बार पूर्वर्ती गृह मंत्री ने अपने को बेदाग़ साबित किया .लेकिन ऐसा क्या हो गया कि ७६ सी आर पी ऍफ़ के जवानों की न्रिशंश मौत ने गृह मंत्री को हिला दिया था ?.ऐसा क्या हो गया कि हर बात पर गृह मंत्री का इस्तीफा मांगने वाला विपक्ष गृह मंत्री के साथ मजबूती से खड़ा था ?.दंतेवाडा के नाक्साली हमले के ठीक चार दिन पहले गृह मंत्री चिदम्बरम पशिम बंगाल के मुख्या मंत्री को नशिहत दे आये थे और उन्हें जिम्मेदारी दुसरे पर नहीं थोपने की सलाह दे रहे थे .दंतेवाडा के इस हमले के बाद गृह मंत्री ऐसी ही नशिहत रमण सिंह को भी दे सकते थे और सी आर पी ऍफ़ की मौत की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर थोप सकते थे .लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया .मुझे याद है कि इससे पहले सुरक्षा बालों की मौत पर गृह मंत्रालय का यह जवाब होता था कि चुकी परा मिलिटरी फाॅर्स की तैनाती राज्य सरकार की जिमीदारी है इसलिए सुरक्षाबलों की मौतों की जिम्मेबारी उन्ही को लेनी होगी .खुद चिदम्बरम अब तक ऑपरेशन ग्रीन हंट की बात को पूरी तरह से ख़ारिज कर रहे थे .नक्सल खिलाफ जंग का ढोल सबसे ज्यादा गृह मंत्री पी चिदम्बरम ही बजा रहे थे .लेकिन नक्सल के खिलाफ ऑपरेशन की बात को हमेशा सिरे से ख़ारिज भी कर रहे थे .वजह जो भी हो लेकिन दंतेवाडा नक्सली हमले के बाद गृह मंत्री चिदम्बरम का इस हमले की नाकामयाबी की जिम्मेदारी लेना और इस्तीफे की पेशकस करना सबको चौकाया है .यानी नक्सलियों ने उन्हें मैदान मे खड़ा कर दिया है .अब जीत उनकी है तो हार भी उन्ही की होगी .
गृह मंत्री के रूप मे शिवराज पाटिल को भी कई मायने मे याद किया गया .आतंकवादी हमले को मुआयना करने गए गृह मंत्री के बारे मे बताया गया कि महज एक घंटे मे ही उन्होंने चार बार ड्रेस चेंज किया .किसी ने कहा शिवराज पाटिल की जितनी तत्परता अपने ड्रेस को लेकर है उतनी अगर गृह मंत्रालय के कामो को लेकर होता तो शायद ये हमले नहीं होते .उनके शासन काल मे मुल्क मे तक़रीबन १५० से ज्यादा आतंकवादी हमले हुए जिसमे ३००० से ज्यादा लोग मारे गए .हर हमले के बाद विपक्ष से इस्तीफा माँगा गया लेकिन किसी ने पाटिल साहब की अंगुली भी टेढ़ी नहीं कर सके .नक्सली उनके लिए अपने भाई थे उन्ही के शासन काल मे नक्सलियों ने देश के १३ जिलों से अपना विस्तार ११३ जिलों मे कर लिया .यानी उनके दर्शन ने नक्सली को खूब फलने फूलने का मौका दिया लेकिन सत्ता पक्ष या फिर विपक्ष के लोग उनका बाल बांका नहीं कर सके .इसकी वजह खुद शिवराज पाटिल ने बताई थी .उन्होंने कहा था कि वे कोई लोकप्रिय नेता नहीं है जिसके कारण वे इस पद पर है .मैडम सोनिया गाँधी जब तक चाहेंगी तब तक वे इस पद पर बने रहेंगे .यानी मैडम की कृपा जब तक उनपर बनीरहेगी वे तब तक सत्ता मे रहेंगे .लेकिन मुंबई हमले के बाद एन सी पी ने मैडम का ही खेल बिगाड़ दिया और शिव राज पाटिल को इस्तीफा देना पड़ा था .ये अलग बात है कि मैडम की मेहरवानी से ऐसे काबिल साबिक गृह मंत्री को आज भी उच्च संवैधानिक पद मिला हुआ है .यानी आमलोगों की मौते या फिर सुरक्षाबलों की मौते किसी गृह मंत्री या फिर सरकार के लिए इस्तीफे का कारण नहीं हो सकता था .मुंबई के आतंकवादी हमले के बाद महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार को दुबारा चुनकर आना विपक्ष के लिए यह सबक था कि इस देश मे आतंकवाद और सरकार की विफलता चुनावी मुद्दे नहीं हो सकते .यह बात विपक्ष खासकर बीजेपी जान गयी है .
गृह मंत्री की तारीफ़ मे आज कशीदे पढ़े जा रहे है .लेकिन हम शायद यह भूल जाते है कि गृह मंत्री चिदम्बरम शिवराज पाटिल की ही परम्परा को आगे बढ़ाते .लेकिन मुंबई हमले ने कांग्रेस आलाकमान को पहले गृह मंत्री को हटाने के लिए मजबूर किया दूसरा, विपक्ष मजबूत सरकार और उसके ठोस इरादे को भी लेकर कांग्रेस की छवि धूमिल कर रहा था .कह सकते है की चिदम्बरम का गृहमंत्री बनाना महज एक फेस सेविंग पहल हो सकती थी लेकिन चिदम्बरम ने जिस तरीके से बदल डालो की रणनीति अपनाई उससे लोगों मे एक जिम्मेदार गृह मंत्री की उनकी छवि बनी .टाडा ,पोटा की बहस को पीछे छोड़ते हुए चिदम्बरम ने यू ऐ पी ऐ के नाम से एक कड़ा कानून बनाकर आतंकवाद के खिलाफ गृहमंत्रालय के इरादे को साफ़ कर दिया था .लेकिन सियासत गृह मंत्री पर हावी रहा ,यही वजह है कि गुजरात सरकार के आतंकवाद निरोधी कानून पर चिदम्बरम अड़चन लगाते रहे .ख़ुफ़िया तंत्र को चुस्त दुरुस्त करने के लिए चिदम्बरम ने एन आई ऐ यानि नेशनल इंवेस्टिगेसन एजेंसी बनाकर तमाम ख़ुफ़िया एजेंसी को अपने अधीन लाया .लेकिन कांग्रेस की सियासत उनपर हावी रही .जाहिर है केरल और झारखण्ड के बोम्ब ब्लास्ट की जांच के लिए एन आई ऐ तुरंत सरगर्म हो जाती है और आतंकवाद के मामले की जांच अपने हाथ ले लेती है लेकिन मुंबई हमले जैसे इतने बड़े आतंकवादी हमले की जांच मुंबई पुलिस के हवाले छोड़ दी जाती है .केरल सरकार की ओर से यह सवाल कई बार आया है कि यहाँ के बस मे हुई ब्लास्ट क्या मुंबई हमले से ज्यादा खतरनाक था .लेकिन चिदम्बरम की छवि पर किसी ने सवाल नहीं उठाया .नेशनल काउंटर तेर्रोरिस्म सेंटर बनाकर गृह मंत्री ने अपने इरादे को साफ़ कर दिया था कि देश को आतंकवाद से लड़ना है तो उसे इस समस्या को गंभीरता से लेना होगा .ये अलग बात है कि आतंकवाद को रोकने के लिए उन्होंने कई अमेरिकी मॉडल को लागू करने की कोशिश की लेकिन कभी वोट की सियासत तो कभी पार्टी की गुटबाजी उनके इरादे पर पानी फेरती रही .पिछले वर्षों मे सरकार मे यह दस्तूर बन गयी थी कि सुरक्षा एजेंसी या फिर ख़ुफ़िया एजेंसी एन एस ऐ के जरिये हर मामले की जानकारी सीधे प्रधानमंत्री को दिया करती थी .यही वजह थी कि चाहे वह ब्रजेश मिश्र हों या फिर एम् के नारायण सत्ता के एक मजबूत केंद्र बन गए थे और गृह मंत्रालय की हालत पी एम् ओ की उपशाखा बनकर रह गयी थी .लेकिन मुंबई हमले की हालत ने गृह मंत्री चिदम्बरम को इतना मजबूत बना दिया था कि और की बात तो छोडिये खुद एम् के नारायण को हर सुबह प्रधानमंत्री से पहले गृह मंत्री के सामने हाजिर होना पड़ता था .यानि जाँच एजेंसी को व्यावसायिक बनाने की चिदम्बरम ने ठोस पहल की तो सत्ता मे बैठे कई लोगों को नागवार गुजरा और एम् के नारायण को जाना पड़ा था .
प्रधानमंत्री की तरफ से चिदम्बरम को यह लगभग अस्वस्त किया गया कि गृह मंत्रालय के मामले मे कोई दखल नहीं होगी .यही वजह है कि बात चाहे कश्मीर की हो या फिर उत्तर पूर्व की या फिर नक्सल प्रभावित राज्यों की चिदम्बरम का फैसला अंतिम फैसला साबित हुआ .कश्मीर के अलगाववादियों से जहाँ उन्होंने गुप चुप बात चित की पहल तेज की वही उन्होंने कश्मीर से सुरक्षाबलों को हटाने की भी पहल करके सबको चौकाया था .यानी चिदम्बरम डंके की चोट पर बात करने के लिए मशहूर है तो कुशल राजनयिक के रूप मे अपनी सूझ बुझ का भी परिचय दिया है .झारखण्ड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने नक्सलियों के खिलाफ अभियान छेड़ने से मना किया तो चिदम्बरम ने राष्ट्रपति शासन लगाने की धमकी देने के वजाय बीजेपी के अरुण जेटली को आगे किया और शिबू सोरेन को नक्सल के खिलाफ अभियान के लिए तैयार किया .ये अलग बात है कि पश्चिम बंगाल मे वे आज तक न तो मुख्या मंत्री बुद्धदेव को समझ पाए न ही अपने ही सहयोगी ममता को समझा पाए .यानी पशिम बंगाल मे नक्सल के खिलाफ अभियान जरूर चल रहे है लेकिन यह कोई नहीं जानता कि इसे कौन चला रहा है यानी .नक्सली किसका दोस्त है या फिर किसका दुश्मन यह तय होना अभी बाकी है .
लेकिन छत्तीसगढ़ मे मुख्या मंत्री रमण सिंह ने यह साफ़ कर दिया है कि यह लड़ाई गृह मंत्री चिदम्बरम लड़ रहे है और छत्तीसगढ़ की सरकार उनके साथ है .यही वजह है कि आर्मी और एयर फाॅर्स की तैनाती पर एयर चीएफ़ की विरोधाभासी बयानों पर सबसे पहले मुख्या मंत्री रमण सिंह का ही बयान आया था कि या तो इसकी दशा और दिशा गृह मंत्री को तय करने दीजिये या फिर देश के नौकरशाह अभियान की दशा और दिशा तय करे .लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि नाक्साली हमले के विरोध मे राज्य कांग्रेस इकाई ने बंद का आयोजन किया था और सरकार पर निकम्मेपन का आरोप लगाया था .उधर दिल्ली मे भी कांग्रेस के एक खेमे मे चिदम्बरम के खिलाफ आवाज बुलंद हुई और अभियान चलाकर कुछ कांग्रेसियों ने मैडम सोनिया गाँधी तक चिदम्बरम की शिकायत पहुचाई .इन लीडरों का मानना था कि जो धर्मनिरपेक्ष और सर्व्हारो की पार्टी की छवि राहुल गाँधी ने बनायीं है .चिदम्बरम उस छवि का नुकशान कर रहे है आतंकवाद के मुद्दे पर .बीजेपी से बढ़ी चिदम्बरम की नजदिकिया कांग्रेस की छवि को तार तार कर रही है
.चिदम्बरम के स्टायल से पहले भी कई कांग्रेसी आहात थे .सो चिदम्बरम ने इस्तीफे को तुरुप के पत्ते के तौर पर इस्तेमाल किया और कांग्रेस मे उनके खिलाफ हो रही गुट बाजी की हवा निकाल दी .लेकिन सवाल यह है कि क्या जो चिदम्बरम कर रहे है वे सिर्फ अपनी छवि के लिए कर रहे है या फिर देश के लिए कर रहे है? .कांग्रेस मे गांधी परिवार से अलग कोई अपनी अलग छवि बनाये यह पार्टी को कभी मंजूर नहीं हुआ है .बढती महगाई और और कई देशी विदेशी मामलों मे लगातार असफल हो रही मौजूदा कांग्रेस की सरकार को चिदम्बरम को आगे रखकर कई फैदे हो सकते है लेकिन चाटुकारों की एक बड़ी फौज यह नहीं चाहती कि चिदम्बरम कल इतने बड़े शख्शियत के रूप मे उभरे की प्रधानमंत्री के रूप मे वे सबसे बड़े दावेदार बने ..लेकिन बीजेपी ने चिदम्बरम को पूरा समर्थन देकर यह साबित कर दिया है कि पार्टी अब लम्बे रेश का घोडा बनने के लिए तैयार हो रही है .
गृह मंत्री के रूप मे शिवराज पाटिल को भी कई मायने मे याद किया गया .आतंकवादी हमले को मुआयना करने गए गृह मंत्री के बारे मे बताया गया कि महज एक घंटे मे ही उन्होंने चार बार ड्रेस चेंज किया .किसी ने कहा शिवराज पाटिल की जितनी तत्परता अपने ड्रेस को लेकर है उतनी अगर गृह मंत्रालय के कामो को लेकर होता तो शायद ये हमले नहीं होते .उनके शासन काल मे मुल्क मे तक़रीबन १५० से ज्यादा आतंकवादी हमले हुए जिसमे ३००० से ज्यादा लोग मारे गए .हर हमले के बाद विपक्ष से इस्तीफा माँगा गया लेकिन किसी ने पाटिल साहब की अंगुली भी टेढ़ी नहीं कर सके .नक्सली उनके लिए अपने भाई थे उन्ही के शासन काल मे नक्सलियों ने देश के १३ जिलों से अपना विस्तार ११३ जिलों मे कर लिया .यानी उनके दर्शन ने नक्सली को खूब फलने फूलने का मौका दिया लेकिन सत्ता पक्ष या फिर विपक्ष के लोग उनका बाल बांका नहीं कर सके .इसकी वजह खुद शिवराज पाटिल ने बताई थी .उन्होंने कहा था कि वे कोई लोकप्रिय नेता नहीं है जिसके कारण वे इस पद पर है .मैडम सोनिया गाँधी जब तक चाहेंगी तब तक वे इस पद पर बने रहेंगे .यानी मैडम की कृपा जब तक उनपर बनीरहेगी वे तब तक सत्ता मे रहेंगे .लेकिन मुंबई हमले के बाद एन सी पी ने मैडम का ही खेल बिगाड़ दिया और शिव राज पाटिल को इस्तीफा देना पड़ा था .ये अलग बात है कि मैडम की मेहरवानी से ऐसे काबिल साबिक गृह मंत्री को आज भी उच्च संवैधानिक पद मिला हुआ है .यानी आमलोगों की मौते या फिर सुरक्षाबलों की मौते किसी गृह मंत्री या फिर सरकार के लिए इस्तीफे का कारण नहीं हो सकता था .मुंबई के आतंकवादी हमले के बाद महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार को दुबारा चुनकर आना विपक्ष के लिए यह सबक था कि इस देश मे आतंकवाद और सरकार की विफलता चुनावी मुद्दे नहीं हो सकते .यह बात विपक्ष खासकर बीजेपी जान गयी है .
गृह मंत्री की तारीफ़ मे आज कशीदे पढ़े जा रहे है .लेकिन हम शायद यह भूल जाते है कि गृह मंत्री चिदम्बरम शिवराज पाटिल की ही परम्परा को आगे बढ़ाते .लेकिन मुंबई हमले ने कांग्रेस आलाकमान को पहले गृह मंत्री को हटाने के लिए मजबूर किया दूसरा, विपक्ष मजबूत सरकार और उसके ठोस इरादे को भी लेकर कांग्रेस की छवि धूमिल कर रहा था .कह सकते है की चिदम्बरम का गृहमंत्री बनाना महज एक फेस सेविंग पहल हो सकती थी लेकिन चिदम्बरम ने जिस तरीके से बदल डालो की रणनीति अपनाई उससे लोगों मे एक जिम्मेदार गृह मंत्री की उनकी छवि बनी .टाडा ,पोटा की बहस को पीछे छोड़ते हुए चिदम्बरम ने यू ऐ पी ऐ के नाम से एक कड़ा कानून बनाकर आतंकवाद के खिलाफ गृहमंत्रालय के इरादे को साफ़ कर दिया था .लेकिन सियासत गृह मंत्री पर हावी रहा ,यही वजह है कि गुजरात सरकार के आतंकवाद निरोधी कानून पर चिदम्बरम अड़चन लगाते रहे .ख़ुफ़िया तंत्र को चुस्त दुरुस्त करने के लिए चिदम्बरम ने एन आई ऐ यानि नेशनल इंवेस्टिगेसन एजेंसी बनाकर तमाम ख़ुफ़िया एजेंसी को अपने अधीन लाया .लेकिन कांग्रेस की सियासत उनपर हावी रही .जाहिर है केरल और झारखण्ड के बोम्ब ब्लास्ट की जांच के लिए एन आई ऐ तुरंत सरगर्म हो जाती है और आतंकवाद के मामले की जांच अपने हाथ ले लेती है लेकिन मुंबई हमले जैसे इतने बड़े आतंकवादी हमले की जांच मुंबई पुलिस के हवाले छोड़ दी जाती है .केरल सरकार की ओर से यह सवाल कई बार आया है कि यहाँ के बस मे हुई ब्लास्ट क्या मुंबई हमले से ज्यादा खतरनाक था .लेकिन चिदम्बरम की छवि पर किसी ने सवाल नहीं उठाया .नेशनल काउंटर तेर्रोरिस्म सेंटर बनाकर गृह मंत्री ने अपने इरादे को साफ़ कर दिया था कि देश को आतंकवाद से लड़ना है तो उसे इस समस्या को गंभीरता से लेना होगा .ये अलग बात है कि आतंकवाद को रोकने के लिए उन्होंने कई अमेरिकी मॉडल को लागू करने की कोशिश की लेकिन कभी वोट की सियासत तो कभी पार्टी की गुटबाजी उनके इरादे पर पानी फेरती रही .पिछले वर्षों मे सरकार मे यह दस्तूर बन गयी थी कि सुरक्षा एजेंसी या फिर ख़ुफ़िया एजेंसी एन एस ऐ के जरिये हर मामले की जानकारी सीधे प्रधानमंत्री को दिया करती थी .यही वजह थी कि चाहे वह ब्रजेश मिश्र हों या फिर एम् के नारायण सत्ता के एक मजबूत केंद्र बन गए थे और गृह मंत्रालय की हालत पी एम् ओ की उपशाखा बनकर रह गयी थी .लेकिन मुंबई हमले की हालत ने गृह मंत्री चिदम्बरम को इतना मजबूत बना दिया था कि और की बात तो छोडिये खुद एम् के नारायण को हर सुबह प्रधानमंत्री से पहले गृह मंत्री के सामने हाजिर होना पड़ता था .यानि जाँच एजेंसी को व्यावसायिक बनाने की चिदम्बरम ने ठोस पहल की तो सत्ता मे बैठे कई लोगों को नागवार गुजरा और एम् के नारायण को जाना पड़ा था .
प्रधानमंत्री की तरफ से चिदम्बरम को यह लगभग अस्वस्त किया गया कि गृह मंत्रालय के मामले मे कोई दखल नहीं होगी .यही वजह है कि बात चाहे कश्मीर की हो या फिर उत्तर पूर्व की या फिर नक्सल प्रभावित राज्यों की चिदम्बरम का फैसला अंतिम फैसला साबित हुआ .कश्मीर के अलगाववादियों से जहाँ उन्होंने गुप चुप बात चित की पहल तेज की वही उन्होंने कश्मीर से सुरक्षाबलों को हटाने की भी पहल करके सबको चौकाया था .यानी चिदम्बरम डंके की चोट पर बात करने के लिए मशहूर है तो कुशल राजनयिक के रूप मे अपनी सूझ बुझ का भी परिचय दिया है .झारखण्ड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने नक्सलियों के खिलाफ अभियान छेड़ने से मना किया तो चिदम्बरम ने राष्ट्रपति शासन लगाने की धमकी देने के वजाय बीजेपी के अरुण जेटली को आगे किया और शिबू सोरेन को नक्सल के खिलाफ अभियान के लिए तैयार किया .ये अलग बात है कि पश्चिम बंगाल मे वे आज तक न तो मुख्या मंत्री बुद्धदेव को समझ पाए न ही अपने ही सहयोगी ममता को समझा पाए .यानी पशिम बंगाल मे नक्सल के खिलाफ अभियान जरूर चल रहे है लेकिन यह कोई नहीं जानता कि इसे कौन चला रहा है यानी .नक्सली किसका दोस्त है या फिर किसका दुश्मन यह तय होना अभी बाकी है .
लेकिन छत्तीसगढ़ मे मुख्या मंत्री रमण सिंह ने यह साफ़ कर दिया है कि यह लड़ाई गृह मंत्री चिदम्बरम लड़ रहे है और छत्तीसगढ़ की सरकार उनके साथ है .यही वजह है कि आर्मी और एयर फाॅर्स की तैनाती पर एयर चीएफ़ की विरोधाभासी बयानों पर सबसे पहले मुख्या मंत्री रमण सिंह का ही बयान आया था कि या तो इसकी दशा और दिशा गृह मंत्री को तय करने दीजिये या फिर देश के नौकरशाह अभियान की दशा और दिशा तय करे .लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि नाक्साली हमले के विरोध मे राज्य कांग्रेस इकाई ने बंद का आयोजन किया था और सरकार पर निकम्मेपन का आरोप लगाया था .उधर दिल्ली मे भी कांग्रेस के एक खेमे मे चिदम्बरम के खिलाफ आवाज बुलंद हुई और अभियान चलाकर कुछ कांग्रेसियों ने मैडम सोनिया गाँधी तक चिदम्बरम की शिकायत पहुचाई .इन लीडरों का मानना था कि जो धर्मनिरपेक्ष और सर्व्हारो की पार्टी की छवि राहुल गाँधी ने बनायीं है .चिदम्बरम उस छवि का नुकशान कर रहे है आतंकवाद के मुद्दे पर .बीजेपी से बढ़ी चिदम्बरम की नजदिकिया कांग्रेस की छवि को तार तार कर रही है
.चिदम्बरम के स्टायल से पहले भी कई कांग्रेसी आहात थे .सो चिदम्बरम ने इस्तीफे को तुरुप के पत्ते के तौर पर इस्तेमाल किया और कांग्रेस मे उनके खिलाफ हो रही गुट बाजी की हवा निकाल दी .लेकिन सवाल यह है कि क्या जो चिदम्बरम कर रहे है वे सिर्फ अपनी छवि के लिए कर रहे है या फिर देश के लिए कर रहे है? .कांग्रेस मे गांधी परिवार से अलग कोई अपनी अलग छवि बनाये यह पार्टी को कभी मंजूर नहीं हुआ है .बढती महगाई और और कई देशी विदेशी मामलों मे लगातार असफल हो रही मौजूदा कांग्रेस की सरकार को चिदम्बरम को आगे रखकर कई फैदे हो सकते है लेकिन चाटुकारों की एक बड़ी फौज यह नहीं चाहती कि चिदम्बरम कल इतने बड़े शख्शियत के रूप मे उभरे की प्रधानमंत्री के रूप मे वे सबसे बड़े दावेदार बने ..लेकिन बीजेपी ने चिदम्बरम को पूरा समर्थन देकर यह साबित कर दिया है कि पार्टी अब लम्बे रेश का घोडा बनने के लिए तैयार हो रही है .
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