सियासत के चश्मे से अफज़ल की फ़ासी को मत देखिये



 भूख हड़ताल और प्रोटेस्ट से यासिन मलिक का सियासी सरोकार है, लेकिन इस्लामाबाद में पाकिस्तान की एजेंसियों के सहयोग से आयोजित  हंगर स्ट्राईक का कुछ अलग सियासी मतलब है । अफज़ल गुरु की फांसी पर भले ही पाकिस्तानी हुकूमत देर से रद्देअमल दिया हो, लेकिन पाकिस्तान की दहषतगर्द तंज़ीमें और आईएसआई ने इसे मौक़े के तौर पर लिया।  यासिन मलिक के लिए ये सबसे बड़ा मौक़ा था कि वो हुर्रियत के दूसरे लीडरों को बता सकें कि हाफिज़ सईद से उनकी ज़्यादा नज़दीकियां  है। अलहदगी पसंद जमातो में  सियासी रुतबके का मतलब लष्करे तैयबा से दूरी नहीं, बल्कि नज़दीकी को माना जाता है। यही वजह है कि दूसरे हुर्रियत लीडरों ने हाफिज़ सईद से चोरी छिपे मिलने का बहाना ढूंढा, लेकिन यासिन मलिक ने इस मुलाक़ात को सार्वजनिक कर दिया।२३ जमातो के आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस में घमासान इस बात को लेकर मची है कि अफ़ज़ल की मौत को कैसे भुनाया जाय .

 पार्लियामेंट हमले की साजि़ष पाकिस्तान में रची गयी थी, ये बात पूरी दुनिया को पता है। लेकिन हमले में मारे गए पांच पाकिस्तानी दहषतगर्दों के लिए कभी भी नमाज़े जनाज़ा नहंी पढ़ा गया। जैश ए  मोहम्मद के उन फिदायीन दहषतगर्दों को पाकिस्तान ने दो गज ज़मीन देने से भी मना कर दिया था उन्हें पहचान से इनकार कर दिया । लेकिन आज अफज़ल गुुरु का नमाज़े जनाज़ा पाकिस्तान के हर शहर  में पढ़ा जा रहा  हैं, यानि कष्मीर मसले में हाफिज़ सईद और अलहदगी पसंद लीडरो  को एक मौका मिल गया है , जिसे लेकर वो एक बार फिर नौजवानों को भड़काना चाहता है. । हाफिज़ सईद के सर पर एक करोड़ डाॅलर का इनाम है, लेकिन आईएसआई की छत्र छाया में सईद भारत के खि़लाफ ज़हर उगल रहा है। यानी कश्मीर में लश्कर ए तोइबा की कारवाई को जायज ठहराया जा रहा है .लेकिन मुख्यधारा की सियासी पार्टियों में मचा सियासी घमासान अफज़ल गुरु को महिमामंडित कर कर रहा है .कश्मीर में सियासी पार्टिया यह तय नहीं कर पा रही है  कि आवाम का क्या मूड है .हुर्रियत लीडर अफजल गुरु को मकबूल भट्ट के तौर पर पेश कर रहे है और हुकूमत अंदेशा में पुरे कश्मीर में कर्फ़ु लगा रही है .यह वही कश्मीर है जहाँ १९८४ में मकबूल भट्ट की फांसी के विरोध में अलगाववादी पार्टी ने बंद का एलान किया तो लोगों ने इसे पूरी तरह अनसुना कर दिया था .लेकिन ४ साल बाद उसी मकबूल भट्ट के वर्षी पर पूरा कश्मीर बंद रहा .लेकिन २०१३ में अफज़ल गुरु की फ़ासी के बाद रियासत की हुकूमत ने ७ दिनों तक कश्मीर बंद रखा . यानी स्थानीय हुमुकुमत के खिलाफ नाराजगी ने यहाँ लोगों का मूड बदला है। बंद -हड़ताल और पत्थरबाजी की वारदात वादी के चार जिलों तक सिमित है लेकिन पुरे कश्मीर में ७ दिनों तक कर्फु लगा रहा .इसका सियासी फायदा ओमर अब्दुल्लाह को क्या मिला यह बताना मुश्किल है लेकिन इस देश को इस सियासत से भारी नुक्सान होगा ,यह तय है .


 13 दिसम्बर 2001को  मुल्क की संसद पर हुआ हमला, जम्हूरियत के सबसे बड़े स्तंभ पर प्रहार था। जैश ए मोहम्मद के पांच फिदायीन दहशतगर्दों के इस हमले में 9 लोग मारे गए, जबकि 15 से ज़्यादा लोग ज़ख़्मी हुए।  पाकिस्तान के पांचों फिदायीन दहशतगर्द मारे गए। लेकिन अपने पीछे कई सवाल छोड़ गए, जिन्हें सुलझाना जांच एजेंसियों के लिए चुनौती से भरा था।
15 दिसम्बर 2001.को  दिल्ली पुलिस की टीम को एक ट्रक को चिन्ह्ति करने में कामयाबी मिली। 10 लाख रुपये की बरामदगी के साथ पुलिस को कई अहम सुराग़ मिले, जिसे दिल्ली पुलिस अफज़ल गुरु को गिरफतार करने में कामयाब हुई। कहते हैं कि गुनहगार अपने पीछे गुनाह के सबूत ज़रुर छोड़ जाता है। ज़ाहिर है पार्लियामेंट हमले के दहशतगर्दों के मोबाइल फोन डिटेल और असलाह की बरामदगी ने एस आर गिलानी, शौकत हुसैन गुरु और अफसान गुरु को इस साजि़श में एक्सपोज़ कर दिया, लेकिन कोर्ट में अपनी चार्जशीट को साबित करना दिल्ली पुलिस के लिए आसान काम नहीं था।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की ये बड़ी कामयाबी थी कि उसके सबूतों और जांच को ट्रायल कोर्ट ने सही माना था। ट्रायल कोर्ट ने एस आर गिलानी, शौकत हुसैन गुरु और अफज़ल गुरु को मौत की सज़ा सुनाते हुए अफसां गुरु को रिहा कर दिया था। कानून की ये प्रक्रिया लंबी थी और हर कोर्ट में गुनहगार को अपने को बेगुनाह साबित करने का भरपूर मौक़ा दिया गया था। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की सज़ा को बरक़रार रखा था जबकि अगस्त 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने तारीख़ी फैैसले में अफज़ल गुरु को मौत की सज़ा बरक़रार रखते हुए बाकी सभी को बरी कर दिया था। अपने फैैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अफज़ल गुरु को हमले के सूत्रधार के रुप में चिन्हित किया था।
 दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के दो ख़ास नाम अब इस दुनिया में नहीं है। लेकिन राजबीर सिंह और मोहन चंद शर्मा की सूझबूझ हमेशा याद की जाएगी।हफ्ते भर में दिल्ली पुलिस ने कई ठिकानो का सुराग लगा लगा लिया था .

ए-97, गांधी विहार, दिल्ली, इंदिरा विहार, क्रिश्चियन कालोनी के अफज़ल गुरु के मुख़्तलिफ ठिकानों पर बुना गया संसद हमले का जाल।

गांधी विहार के अफज़ल गुरु के घर पर प्रत्यक्षदर्शियों ने हमले के कुछ दिन पहले कुछ अजनबी को देखा था

अफज़ल के घर गांधी विहार से विस्फोटक केमिकल और मशीनों की बरामदगी हुई

इंदिरा विहार के आवास पर अंतिम बार अफज़ल को 12 दिसम्बर को देखा गया और उसके बाद उस घर में कोई नहीं आया। 16 दिसम्बर को पुलिस ने उसके घर का ताला तोड़कर अहम सबूत जुटाये थे।

संसद हमले में इस्तेमाल किए गए एम्बेस्डर कार खरीदने में अफज़ल गुरु का अहम रोल था। लेकिन कार का मालिक एक पाकिस्तानी फिदायीन को बनाया गया।

अफज़ल की तमाम गतिविधियों की गवाही उकसे लैंडलाॅर्ड ने दी थी।

ट्रायल कोर्ट से लेकर विभिन्न अदालतों ने अफज़ल को दहशतगर्दों के लिए हाइडआउट फराहम कराने, आर्म्स स्मगलिंग , बम  बनाने के लिए बारुद मुहैया कराने के साथ साथ मुल्क के खि़लाफ जंग छेड़ने की साजि़श का सूत्रधार माना था। ख़ास बात ये है कि पार्लियामेंट हमले के दहशतगर्दों ने अपना आखि़री काॅल अफज़ल के मोबाइल पर करके इसे पुख़्ता कर दिया था।
 अफज़ल की फांसी के खि़लाफ हंगामा पाकिस्तान में दहश्तागर्द तंज़ीमें कर रही हैं। सिविल सोसायटी इसे ज्युडिशियल प्राॅसेस का हिस्सा मान रही हैं। यासिन मलिक को ये जानना ज़रुरी होगा कि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट भी अपने फैैसले में भारत के अदालती फैैसले को कोट करता है। ज़ाहिर है सियासत की बुलंद आवाज़, दहशतगर्द तंज़ीमों की धमकी इंसाफ की प्रक्रिया को रोक नहीं सकती।

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