पाकिस्तान ने दिलाया हमें 19 साल पुराने संसद के संकल्प की याद
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के एक प्रस्ताव ने भारत की संसद को सोते से जगाया है .पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने अपने एक प्रस्ताव में अफजल गुरु की फ़ासी की निंदा की है ,साथ ही संसद हमले के गुनहगार अफज़ल के डेड बॉडी को कश्मीरको सौपने की मांग की है .पाकिस्तान असेंबली ने कश्मीर मामले में दुनिया को अपनी दखल बढाने की भी मांग की है .जाहिर है इसकी प्रतिक्रिया भारत की संसद में भी होनी थी .एक बार फिर संसद ने सर्वसम्मति से पाकिस्तान के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास किया है .जम्मू कश्मीर सहित पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताते हुए संसद के प्रस्ताव ने पाकिस्तान को खबरदार भी किया है .लेकिन सवाल यह है कि संसद अपने ही 19 साल पुराने प्रस्ताव के आन वान और शान की रक्षा अबतक क्यों नहीं कर पायी है ?
संसदीय परंपरा और जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति भारत की संसद दुनिया भर में एक विशिष्ठ स्थान रखती है .बहस और तीखी नोक झोक के बीच भारतीय संसद ने कई एतिहासिक फैसले लिए है .संसद के इन्ही संकल्पों ने देश में लोकतंत्र की महत्ता को मजबूती से स्थापित किया है ,लेकिन भारतीय संसद के कई एतिहासिक संकल्पों और प्रस्ताव के बीच फरबरी 1994 के संसदीय संकल्प पर ख़ामोशी देश की जनभावना के प्रति अपमान है। कह सकते है कि यह संसदीय व्यवस्था की अवमानना है .संसद के दोनों सदनों द्वार सर्वसम्मति से जम्मू कश्मीर मामले पर लिया गया 22 फरबरी 1994 का संकल्प एक सम्प्रभुत्व राष्ट्र का महत्वपूर्ण राजनितिक फैसला था लेकिन सरकार की कमजोर राजनितिक इच्छाशक्ति के कारण वह संकल्प रियासत की प्रशासनिक और राजनितिक व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं ला सका न ही पाकिस्तान के रवैये में कोई परिवर्तन आया .जाहिर है संसद के उस एतिहासिक संकल्प पर अमल करने के वजाय हमारे नेतृत्व ने उसकी महत्ता को ही नज़रंदाज़ कर दिया है .
आतंकवाद से लहुलाहन रियासत जम्मू कश्मीर में जब मानवता कराह रही थी .वह दौर 1979 का था पाकिस्तान पारम्परिक युद्ध में कई बार परास्त हो चूका था .जाहिर है फौजी तानाशाह जनरल जिया उल हक ने मुल्ला -मिलिट्री का गठजोड़ बनाकर कश्मीर में अघोषित जंग शुरू कर दिया था .अफ़ग़ानिस्तान से लौटे मुजाहिद्दीनो के साथ जिया ने मुल्लाओं को अपने अभियान का हिस्सा बनाया और कश्मीर में जेहाद के लिए मदरसे को ब्रीडिंग ग्राउंड बना दिया .ब्लीडिंग इंडिया बाय थौजेंड कट की पालिसी अपनाकर जनरल जिया ने जम्मू और कश्मीर को लहुलाहन कर दिया था .यह 1948 का 1965 का 1971 के पारंपरिक जंग में चोट खाए पाकिस्तान का बदला था .पकिस्तान से भेजे गए दहशतगर्दो को पाकिस्तान ने मुजाहिद्दीन और फ्रीडम फाइटर का चोला पहना दिया था।यह कश्मीर को हड़पने की पाकिस्तान के सबसे बड़ी खतरनाक चाल थी सबसे खास बात यह थी कि उस दौर में कश्मीर के नौजवानों का भी लगाव पकिस्तान के प्रति मजबूत हो रहा था .यह वही कश्मीरी थे जिन्होंने 1947 से लेकर 1971 तक पकिस्तान के हर मनसूबे पर पानी फेरा था .भारत के प्रति कश्मीर का लगाव उसकी साझी संस्कृति और रिवायत का हिस्सा था .लेकिन केंद्र और रियासत की सरकार की बदिन्त्जामी ने भारत के प्रति लोगों का मोहभंग कर दिया था .चुनाव में धांधली के जरिये शासन और सत्ता पर लगातार शेख अब्दुल्लाह और उनके परिवार का कब्ज़ा, नौजवानों को बागी बना दिया था .यह वही कश्मीर था जहाँ लोग घरों में चाकू रखना गुनाह समझते थे ,कई नौजवानों ने बन्दूक उठा लिया था .कश्मीर की शानदार रिवायत ,सामाजिक सरोकार तार तार हो गए थे .कश्मीर का साश्वत और मूल बाशिंदा कश्मीरी पंडित को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा था .यह वही दौर था जिसमे कई कट्टरपंथियों ने अपनी घडी का समय पाकिस्तान के अनुरूप कर लिया था .कश्यप ,बुध और सूफी संतो की इस धरती पर इंसानियत सिसक रही थी .अपने ही मुल्क में 3 लाख से ज्यादा लोग एक शहर से दुसरे शहर में दर दर की ठोकरे खा रहे थे .हालत यह थी कि अब्दुलाह खानदान से लेकर तमाम सियासी लीडर कश्मीर छोड़कर मुल्क की राजधानी दिल्ली या विदेशों में जा बसे थे .आतंकवाद की उस आंधी ने 40000 से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी .यह वही दौर था जिसमे संसद के दोनों सदन के सांसदों ने उठ खड़े होकर अपने एक संकल्प के जरिये दुनिया को बताने की कोशिश की थी कि ,पाकिस्तान के किसी भी साजिश को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा .
फरबरी 1994 को संसद के दोनों सदनों ने अपने एक संकल्प को सर्वसम्मति से पास करके दुनिया को यह सन्देश दिया था कि रियासत जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है .अपने इस संकल्प में संसद ने यह भी संकल्प लिया था कि देश की एकता और अखंडता को तोड़ने वाली किसी साजिश को यह मुल्क मुहतोड़ जवाब देगा .
अपने इस संकल्प में संसद ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को मुक्त कराने का प्रण लिया था, साथ ही पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर में मानवाधिकार की खिलाफवर्जी और लोगों को जनतांत्रिक अधिकारों से दूर रखने की साजिश पर चिंता व्यक्त की थी .अपने इस संकल्प में संसद ने पाकिस्तान के कब्जे को गैर कानूनी बताते हुए जम्मू -कश्मीर के 35 फीसद अनाधिकार कब्जे वाले भू भाग पर अपना हक जताया था .
पकिस्तान की साजिश पर कड़ा रूख अपनाते हुए भारत की संसद ने अपने संकल्प में पाकिस्तान की हुकूमत को दहशतगर्दी को समर्थन देने, उसे ट्रेनिग और असलाह से लेकर फंडिंग के लिये सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया था .अपने इस प्रस्ताव में संसद ने पाकिस्तान की कत्लोगारद की रणनीति की मजम्मत करते हुए ,दहशतगर्दों की भारत में घूस पैठ कराने की साजिश और जम्मू कश्मीर में खून खराबे के लिए पाकिस्तान को खबरदार भी किया था .26 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर का भारत में विलय के बाद भारतीय संसद का यह सबसे बड़ा फैसला था जिसमे अपने मुल्क की अखंडता और एकता पर उठाये गए किसी भी सवाल का माकूल जवाब था .
पकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने जम्मू कश्मीर सहित मुल्क के दुसरे हिस्से में पिछले 22 वर्षो में 60 हजार से ज्यादा लोगों की जान ली है .संसद के उस एतिहासिक संकल्प को अपने आन वान और शान का सवाल बनाते हुए सुरक्षावलो के 10 हजार से ज्यादा जवानों ने अपनी शहादत दी है ,संसद के संकल्प के अनुरूप मुल्क के बहादूर जवानों ने देश की संप्रभुता पर कभी आंच नहीं आने दिया लेकिन हमारे सियासी लीडरों का रवैया अबतक निराशाजनक रहा है .कश्मीर मामले को लेकर गृह मंत्रालय द्वारा गठित इंटरलोकूटर (वार्ताकार )की रिपोर्ट को ख़ारिज करते हुए लोक सभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज कहती है "यह रिपोर्ट संसद के उस एतिहासिक संकल्प को खारिज करती है .आर्टिकल 370 का प्रावधान संविधान में अस्थायी व्यवस्था है लेकिन दिलीप पड्गोकर की टीम ने इसे विशेष प्रावधान के रूप में सिफारिश करके जम्मू कश्मीर को मुल्क के साथ जोड़ने के वजाय तोड़ने का काम किया है " सुषमा जी की आपति थी कि वार्ताकार की टीम ने पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर को पाकिस्तान शासित कश्मीर कहकर संसद के संकल्प का अपमान किया है .यानी पाकिस्तान कब्जे वाला कश्मीर रियासत जम्मू कश्मीर का एक अंग है जाहिर है वह भारत के भोगोलिक मानचित्र का दस्तावेजी सबूत है लेकिन यह सवाल सत्ता और विपक्ष की पार्टियों से पूछना लाजिमी है कि पकिस्तान मकबूजा कश्मीर और गिलगिट के मसले को उन्होंने कितनी बार संसद में उठाया हैं? .पी ओ के और गिलगित बल्तिस्तान में लोग स्थानीय कठपुतली हुकूमत के खिलाफ सडको पर निकलते है ,पुलिस और फौज की गोलिया खाते है लेकिन न तो भारत की मीडिया और न ही संसद में इसकी चर्चा होती है . न ही कभी वहां के लोगों के समर्थन में भारत सरकार कभी खड़ी दिखती है .पिछले वर्षों में गिलगिट के शिया तबके को निशाना बनाया जा रहा है .पकिस्तान के दहशतगर्द तंजीम सिपाहे साहबा ने इन हमलो में 200 से ज्यादा शिया लोगों की जान ली है। गिलगिट के इन मूल बाशिंदे का उत्पीडन हो रहा लेकिन भारत सरकार खामोश है .अभी भी रियासत के असेंबली के 25 सीट रिक्त माने जाते है क्योकि उन सीटों की व्यवस्था पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लिए है ,लेकिन पकिस्तान अधिकृत कश्मीर से आये 10 लाख से ज्यादा शरणार्थियों का भविष्य आज भी अधर में लटका हुआ है .पाकिस्तान से आये लाखों शरणार्थियों को इस मुल्क ने गले लगाया और उन्हें एक सम्मानीय नागरिक का अधिकार दिया ,लेकिन अविभाजित जम्मू कश्मीर का नागरिक आज अपने रियासत में ही तमाम अधिकारों से बंचितहै .देश की संसद अपने संकल्प में पुरे जम्मू कश्मीर पर अपना हक जताता है लेकिन आज रिफ्यूजी की समस्या पर मौन हैं .
आतंकवाद से प्रभावित जम्मू- कश्मीर पर संसद के संकल्प का मतलब रियासत के लोगों को यह एहसास कराना था कि हर मुश्किल दौर में पूरा मुल्क उनके साथ है .लेकिन यह सवाल पूछना लाजिमी है कि केंद्रीय बजट में जम्मू कश्मीर का हिस्सा और विभिन्न पॅकेज के अलावा संसद ने कभी वहां की सामाजिक-राजनितिक समस्याओ की चर्चा की है ? पिछले साल श्रीनगर के पन्त हॉस्पिटल में 400 बच्चों की मौत हुई .यह मौत किसी महामारी के कारण नहीं हुई थी ,बल्कि वजह सिर्फ लालफीताशाही थी .सरकारी तंत्र की नाकामयावी थी .लेकिन कभी इसकी चर्चा संसद में नहीं सुनाई पड़ी .कोलकत्ता में 7 बच्चो की मौत ने सदन में सी पी एम् और तृणमूल के एम् पी को आमने सामने खड़ा कर दिया था .देश के किसी भी हिस्से में पुलिस की वर्वारियत संसद में गरमागरम बहस का कारण बनती है लेकिन कश्मीर में पुलिस के लाठी चार्ज और बरबरियत इन बहस से कोसो दूर है .पिछले चार वर्षो से जम्मू कश्मीर में गठ्वंधन की सरकार चला रहे ओमर अब्दुल्ला हर मोर्चे पर विफल है लेकिन सरकार की विफलता को दवाने के लिए ओमर अब्दुला की पार्टी आये दिन जनमत संग्रह की मांग कर डालती है तो कभी खुद मुख्यमंत्री विलय पर ही सवाल उठाते है .यानी कश्मीर की सत्ता में बैठे लोगों ने हर समय अपनी नाकामयाबी और भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए अलगाववाद का सहारा लिया है लेकिन संसद हमेशा की तरह खामोश रही है .आतंकवाद को परास्त करके कश्मीर के 30 हजार से ज्यादा सरपंच और पञ्च संविधान के 73 वे संशोधन के अनुरूप अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे है।ये वही पञ्च- सरपंच है जो संसद के संकल्प को सही माइने में कश्मीर के गाँव -गाँव ले जा सकते है लेकिन उनके अधिकारों को लेकर संसद मौन है .मुल्क की जम्हुर्रियत को जगाने निकले इन पञ्च और सरपंचो को आये दिन आतंकवादी निशाना बना रहे है लेकिन संसद खमोश है सरकार बगले झांक रही है .
पूर्व गृह मंत्री पी चिदम्बरम कहते है रियासत जम्मू कश्मीर का मामला एक स्पेशल केस है इसलिए इसका ट्रीटमेंट भी अलग होनी चाहिए .आज कश्मीर में अलगाववाद आखिरी सांसे गिन रहा है लेकिन यही स्पेशल स्टेटस उस अलगाववाद को जिन्दा रखे हुए है .कश्मीर का अलगाववाद आज एक दिन का फ्राइडे शो होकर रह गया है . तरक्की की गाड़ी पर चढ़कर आज रुबीना जैसी लडकिया रॉक बैंड बना रही है .कश्मीर की लडकिया अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में शामिल हो रही है .आई टी से लेकर प्रशासनिक सेवा में कश्मीर के बच्चे अव्वल साबित हो रहे है .आज इन बच्चो को यह यह एहसास है कि उनकी प्रतिभा का क़द्र भारत में ही हो सकता है .काजी तोकीर जैसे कश्मीरी नौजवान को पता है पकिस्तान में रहने के वजाय मोहम्मद रफ़ी ने भारत चुनाव किया था .आज रफ़ी अगर दुनिया में मशहूर है तो उसका श्रेय मुंबई के फिल्म इंडस्ट्री को जाता है .अपने एक ब्लॉग में (Question for Hafiz Sayeed) एम् जे अकबर लिखते है " मुलमान को सुरक्षित मुल्क देने के नाम पर मुस्लिम लीडरों ने पकिस्तान को एक इस्लामिक मुल्क बनाया था उस पाकिस्तान में सबसे ज्यादा मौत मुसलमानों की हुई है। फिरकावाराना फसाद के कारण दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमानों की मौत पकिस्तान में ही हुई है .आज पाकिस्तान का हर मुसलमान असुरक्षित है " बटवारे के बाद पाकिस्तान में अल्पसंख्यको (हिन्दू ,सिख ,इसाई )की तादाद 20 फीसद थी आज उनकी तादाद 2 फीसद है लेकिन भारत में कोई कही(मजहब के कारण ) अपने को असुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है .कश्मीर की नयी पीढ़ी को मुल्क की युवा शक्ति और आर्थिक प्रगति का एहसास है .अगर देश की संसद अपने संकल्प के प्रति जवाबदेह होती है तो कश्मीर की आमजनता कभी भी इस तार को टूटने नहीं देगी .हमारी संसद को इस बात की गहन चर्चा करने की जरूरत है कि अलगावाद की तमाम धमकी को चुनौती देते हुए जो नौजवान कश्मीर में हर इंतखावात में 70-80 फिसद पोलिंग दर्ज करते है वही नौजवान दुसरे दिन किसी की मौत पर "हम क्या चाहते आज़ादी" का नारा क्यों लगाते है ?
vinod kumar mishra
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