एक भारत, पाकिस्तान में

पाकिस्तान ,नेपाल ,बांग्लादेश ,मालदीव और भारत में चुनाव की गहमा गहमी तेज है .लेकिन सबसे दिलचस्प चुनाव का नज़ारा पाकिस्तान और भारत में देखा जा सकता है .बांग्लादेश में वारक्राइम को लेकर सक्रिय शेख हसीना की सरकार तमाम जमातों को ठीकाना लगाना चाहती है .जाहिर है बांग्लादेश में बढी कट्टरपंथी ताकत को धुल चटाकर शेख हसीना बंगलादेश की एक सेक्युलर छवि पेश करना चाहती है .वही आतंकवाद से लहोलाहन पाकिस्तान में नौजवान वोटर शरिया कानून के समर्थन में गोलबंद हो रहे है .कट्टरपंथी का दबदबा पाकिस्तान के एलक्शन कमीशन पर भी सर चढ़ बोल रहा है .नामांकन दाखिल करने आये उम्मीदवार से पाक कुरान की जानकारी का टेस्ट लिया जाता है .रिटर्निंग ऑफिसर को यह हक है की वह उम्मेदवार का नामांकन इस बिना पर रद्द कर सकता है कि उसे इस्लाम का व्यवहारिक ज्ञान है या नहीं . रिटर्निंग ऑफिसर दो पत्नी वाले उमीदवार से यह पूछता है कि वह अपनी पत्नियों के साथ कैसे न्याय कर पाता है ? यानी उम्मीदवार की सेक्युलर छवि जानने के वजाय रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा पार्टी कैंडीडेट से सिर्फ मजहवी सवाल पूछा जा रहा है . .रिटर्निंग ऑफिसर परवेज़ मुशर्रफ़ को चुनाव से रोक रहा है लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों से नवाज़ शरीफ को बरी कर रहा है .मई में होने वाले चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज है लेकिन आरोप -प्रत्यारोप के अलावा यहाँ चनावी मुद्दा गायव है .निराश आवाम के सामने एक बार फिर विकल्प नवाज़ शरीफ और जरदारी हैं ,जबकि दोनों के पास पाकिस्तान को एक बेहतर मुल्क बनाने का कोई आईडिया बही है और हर मामले में दोनों पाकिस्तान के आवाम को बेहतर जिन्दगी देने में नाकाम रहे है .
पडोसी देशों पर भारत की डिप्लोमेसी का अब शायद ही कोई प्रभाव पड़ता है .विदेश मामले में ढूल मूल और गैरजिम्मेदार रबैये के कारण भारत ने अपनी साख खो दी है .लेकिन सत्ता में बने रहने का फार्मूला भारत के तमाम पडोसी मुल्को में एक जैसा है .सबसे खास बात यह है चुनाव और चुनावी मुद्दों की बहस से आम आदमी का सरोकार छीन लिया गया है .पाकिस्तान में रोज 50 से ज्यादा लोग मारे जाते है .शिया सहित दुसरे अल्पसंख्यको को अपनी जान बचाना भारी पड़ रहा है .महगाई से लोग त्रस्त है ,गरीबी लोगों के जीने का हक़ छीन रही है लेकिन पाकिस्तान में सियासतदान अगले गठबंधन सरकार बनाने की तैयारी में जुटे है .जाहिर आवाम के बीच हर जमात की छवि लूटेरा और पाखंडी की है .किसी भी जमात के पास कोई ठोस मुद्दे नहीं है जाहिर कोई सियासी मुद्दे पर बहस चलाने के वजाय पकिस्त्तन का बेरोजगार नौजवान शरिया कानून की मांग करता है लेकिन अपने सेक्युलर भारत में आम लोगों की बहस से भ्रष्टाचार ,महगाई ,बेरोजगारी ,लाकानूनियत जैसे मुद्दे को अलग करके सियासतदान ने मोदी बनाम राहूल की बहस में लोगों को उलझा दिया है। यह बहस मोदी को या फिर राहुल को प्रधानमंत्री बनाने के लिए नहीं है बल्कि मौजूदा सरकार ने अपनी तमाम नाकामियों को इस बहस में छूपा दिया है .खास बात यह है कि कौन बनेगा प्रधानमंत्री की मीडिया बहस ही अगली गठबंधन सरकार की रूप रेखा तय कर देगी .
टिप्पणियाँ
चाहे पाकिस्तान मैं नवाज या जरदारी और हिन्दुस्तान मैं मनमोहन जी , मोदी या राहुल .... आम जनता के बारे मैं कौन सोचता है...देश तो दूर की बात है.
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