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लोग पूछते है क्या वाजपेयी दोबारा नहीं आयेंगे ?

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हानि लाभ के पलडो में ,तुलता जीवन व्यापर हो गया .! मोल लगा विकने वालों का ,बिना बिका बेकार हो गया ! मुझे हाट में छोड़ अकेला ,एक एक कर मीत चला जीवन बीत चला .... एक दार्शनिक -राजनीतिग्य  अटल बिहारी वाजपेयी जीवन के ९०  वे वसंत पूरा कर इन दिनों जिंदगी के अखिड़ी पड़ाव पर  खड़े हैं ।राजनीती के अखाड़े  में अपनी प्रखर बौधिक क्षमता की बदौलत अटल जी 50 साल तक निरंतर अजेय रहे। अपने सिधान्तो  लेकर  वे हमेशा अटल रहे   .गैर कांग्रेसी सरकार के वे पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने 6 साल देश के शासन की जिम्मेदारी संभाली और देश के आर्थिक प्रगति खासकर संचार और सड़क निर्माण  देश को जोड़ने में अटल जी का योगदान मील का पत्थर साबित हुआ  है .संवाद और संपर्क अटल जी के विकास दर्शन में शामिल थे और यही दर्शन उनके  शासन काल में आदर्श बना यही वजह है की भारत में संचार क्रांति और सड़क निर्माण का जो सिलसिला अटल जी ने शुरू किया उसने देश की दिशा और दशा  बदल दी .कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी को जोड़ने का अटल जी का प्रयास आज देश को भौगोलिक रूप से एक सूत्र में बाँध दिया है ,उनकी संचार क्रांति ने देश में लोकतंत्र को दुबारा प्रतिस्थ

राजनाथ जी कश्मीर को यू पी के चश्मे से मत देखिये

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बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का कश्मीर में यह बयान  कि  मोदी सरकार  वाजपेयी के "इन्शानियत के  दर्शन " को  कश्मीर  मामले में आदर्श  मानती है। कानून के दायरे में सबको लाने की अपनी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि बताते हुए जेटली ने १० जवानो के खिलाफ कार्रवाई को अहम फैसला बताया। लेकिन जेटली के कश्मीर दौरे के ठीक दो दिन बाद हुए फिदायीन  हमले में २१ की मौत ने कश्मीर को दुबारा ९० दशक के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। इसे महज एक इत्तिफ़ाक़ नहीं कहा जा सकता है कि दो दिन बाद प्रधानमंत्री मोदी कश्मीर दौरे पर है और श्रीनगर के उसी ग्राउंड  से  कश्मीर को सम्बोधित करने वाले है जहाँ १२ साल पहले अटल जी ने  महजूर के एक ग़ज़ल सुनाकर कश्मीर में एक नयी फ़िज़ा का आगाज़ किया था। यानि वाजपेयी ने आतंकवाद से लहूलहान कश्मीर में ""बहारे फिर से आएगी का भरोसा पुख्ता किया। क्या पी एम मोदी हीलिंग टच के उसी पुराने फॉर्मूले को आजमाएंगे या लीक से हटकर कश्मीरियों का भरोसा जीतकर पाकिस्तान के मनसूबे पर पानी फेरेंगे. ?  पिछले  23 वर्षों से पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ अघोषित  हमला बोल रखा है  इ

मनरेगा के बाद आदर्श गाँव.....

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प्रिय मोदी जी , मुझे याद है गाँव के भोर का वह राग . मवेशियों के गले मे बंधी घंटियों की आवाज़  ,किसानो की चहल पहल ... दूर से आती ढेकी की आवाज ... उखल समाठ की आवाज,मस्जिद से उठती अज़ान की आवाज़ ,मंदिरो से आती हर हर महादेव की आवाज़ ,बजती घंटिया  .. सुबह की ये सारी आवाजे मिलकर एक मेलोडी बना रही थी. कह सकते है कि  गाँव की यह सास्वत पहचान थी . तमाम असुविधाओं के बावजूद पिछले सैकड़ो वर्षो में गाँव  न तो अपना लय खोया न ही अपनी पहचान लेकिन मॉडल विलेज के ज़माने में आज  गाँव कही खो गया है। प्रधानमंत्री  जी  आज जिस आदर्श ग्राम की बातआप  कह रहे हैं वह देश के नक्से से गायव है सामाजिक सरोकार का  विहंगम दृश्य मुल्क  के हर गाँव मे मौजूद था . जहाँ हर आदमी हर की जरूरत में शामिल था . अपने इसी गाँव को तलाशने मै काफी अरसे के बाद गाँव पंहुचा था .अल सुबह एक बार फिर  मै  तैयार बैठा था  अपने बचपन के मेलोडी को सुनने लेकिन न तो किसानो के कदम ताल  की आवाज सुनाई दी न ही कही से मवेशियों की घंटी की आवाज ,न ही कोई चहल पहल .. ढेकी और उखल न जाने कब के गायब हो चुके थे . गाँव का वह नैचुरल अम्बिंस कही खो गया था ..या यूँ कहे
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"कश्मीर में लालच की बाढ़ " कहा जाता है कि पिछले साठ वर्षों में ऐसी बाढ़ कश्मीर में नहीं आई थी। जम्मू कश्मीर से दूर बैठे टीवी देख रहे  लोगों को यह यकीन नहीं  हो रहा था कि बाढ़ का  यह दृश्य जम्मू कश्मीर का है या फिर बिहार का। सरकारी आंकड़े १६० लोगों की मौत और १५०० सौ से ज्यादा गाँव प्रभावित होने की पुष्टि करता है जबकि बतया जाता है कि वादी में ३९० गाँव पूरी तरह से जलमग्न है। राजधानी श्रीनगर में घरों के दरवाजे पर दस्तक देकर पानी ने  प्रलय का संकेत दे दिया है। बिहार में बाढ़ की विभिषिका केंद्र और राज्यफ्लड  सरकारों के ढुल मूल रवैये से पैदा हुई है जबकि कश्मीर में यह जल प्रलय लोगों की लालच और भ्रष्ट तंत्र के बीच अनैतिक संबंधों को रेखांकित करता है।   गृहमंत्री के बाद प्रधान मंत्री का जम्मू -कश्मीर में बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा केंद्र सरकार की जिम्मेदारी का एहसास जरूर करता है। लेकिन बाढ़ की इस विभीषिका के बीच देश के लाखों कर दाताओं को केंद्र से यह सवाल पूछने का हक़ जरूर बनता है कि पिछले वर्षों में वूलर और डल लेक से एन्क्रोअचमेंट हटाने और उसे गहरा करने का प्रोजेक्ट का  क्या हुआ

पाकिस्तान को भी है मोदी से उम्मीदें

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नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशो के राष्ट्राध्यक्षों के शामिल होने को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। पाकिस्तान को अबतक जी भर कोसने वाले मोदी जी को आख़िरकार अपने शपथग्रहण समारोह में पाकिस्तान की याद क्यों आई ?क्यों सार्क फोरम नरेंद्र मोदी के लिए इतना महत्वपूर्ण हो गया जो पिछले दस साल से उपेक्षित था। क्या भारत सहित दुनिया के दुसरे देशों में अपनी छवि बदलने के लिए मोदी ने सार्क को एक प्लेटफॉर्म बनाया है ? सवाल कई हैं लेकिन जवाब कम। लेकिन पाकिस्तान के वज़ीरे आज़म नवाज़ शरीफ के भारत आने की चर्चा ने एक नई सियासी पहल का संकेत दिया है।  पिछले २५    वर्षों से पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ अघोषित    हमला बोल रखा है इन वर्षों में हमारे   ९०    हज़ार से ज्यादा लोगों की जान गयी है .  इस छदम युद्ध में हमारे २०    हजार से ज्यादा जवान मारे गए है .लेकिन हरबार हमने अब और नहीं ,कह कर सिर्फ दूसरे हमले का ही इन्तजार किया है .कल तक  कांग्रेस को कारवाई करने के लिए उकसा रही बीजेपी आज खुद अमन बहाली के लिए "वाजपेयी फार्मूला"ढूंढ  रही है।  यानी पाकिस्तान पर हमले को लेकर जो अडचने  अटल जी के

गिलानी साहब भी नमो नमो ?

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"राज करेगा गिलानी " हम क्या चाहते आज़ादी जैसे नारों  की आवाज़ कश्मीर में धीमी क्या पड़ी कि अचानक सईद अली शाह  गिलानी को नरेंद्र मोदी में एक मुस्तकविल नज़र आया। सो उन्होंने  सोसा छोड़ा कि नरेंद्र मोदी का दूत उनसे मिलने आया था।  टी वी चैनलों ने इसे हाथो हाथ लिया और चल पड़ी खबर धार -धार विश्लेषणों के साथ। किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं कि कौन था वह दूत, क्या नाम था ? बस खबर थी की दो कश्मीरी पंडित आये थे। यानी नरेंद्र मोदी  जादू का वह झप्पी है जिसका उपयोग हर मर्ज के लिए किया जा सकता। तमाम सेक्युलर दलों ने एक स्वर से नरेंद्र मोदी से सफाई मांगनी शुरू कर दी ,मोदी का यह दुःसाहस कि कश्मीर के  एक निहायत सेक्युलर लीडर से बात करे ,मोदी ने आखिर ऐसी जुर्रत क्यों की ? एक धर्मनिरपेक्ष जम्मू कश्मीर रियासत में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखाई ?बला ,,बला.. लेकिन इस बहस के बीच आकर  हुर्रियत के सबसे बड़े मौलवी मीरवाइस उमर फारूक ने  गिलानी साहब के गुब्बारे  की हवा  निकाल दी। हुर्रियत के चैयरमेन उमर फारूक ने इसे गिलानी साहब का वकबास करार दिया। इन अलगाववादी लीडरो का मानना था कि गिलानी कश्मीर में भ्रम फैला