राजनाथ जी कश्मीर को यू पी के चश्मे से मत देखिये
पिछले 23 वर्षों से पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ अघोषित हमला बोल रखा है इन वर्षों में हमारे ९० हज़ार से ज्यादा लोगों की जान गयी है . इस छदम युद्ध में हमारे २० हजार से ज्यादा जवान मारे गए है .लेकिन हरबार हमने अब और नहीं कह कर सिर्फ दुसरे हमले का ही इन्तजार किया है . यानी पाकिस्तान पर हमले को लेकर जो अडचने १४ साल पहले थी वही आज भी है। यह बात अलग बात है कि अटल जी ने इस मजबूरी को डिप्लोमेसी के चासनी में भिगोकर भारत -पाकिस्तान के रिश्तो में कुछ पल के लिए मिठास जरूर ला दिया था। यानी इन्शानियत दायरा बढाकर न केवल कश्मीर के अलगाववाद से बातचीत का तार जोड़ा बल्कि पाकिस्तान में यह भरोसा बढ़ा"" अभी नहीं तो कभी नहीं "
लेकिन हमारे गृह मंत्री कुछ ज्यादा जल्दी में है वे आडवाणी जी की तरह सख्त गृहमंत्री का स्वांग भरते हैं तो वाजपेयी की तरह कुशल वक्ता और प्रशासक भी नजर आना चाहते है ,सो आतंकवादी हमले के महज एक घंटे बाद इसे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद बता डाला। गृहमंत्री से कौन पूछे कश्मीर में तीसरे चरण के मतदान से पहले चार आतंकवादी हमले किसकी नाकामी का परिणाम है ? गृह मंत्रायलय के अधीन कार्यरत एजेंसी क्यों फेल हुई ? गृहमंत्री रहते हुए अगर शिवराज पाटिल ने हर बार आतंकवादी हमले में पाकिस्तान का नाम बताकर अपनी नौकरी पक्की रक्खी यही सिलसिला राजनाथ जी भी दोहरा रहे हैं। याद रखिये गृहमंत्री जी पिछले हफ्ते सुकमा में १४ सी आर पी ऍफ़ जवानो की मौत की वजह आपके मंत्रालय की नाकामी थी ,कमोवेश कश्मीर में चुनाव के दौरान हिंसा आपके नाकामी को ही दर्शाएगी।
यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तानी आर्मी के ट्रेंड खतरनाक गुरिल्ला ने भारत की सरहद में घुसकर सरहद पर तैनात जवानों पर हमले को अंजाम दिया है। सरहद पर जंगबंदी के वाबजूद अगर इस साल पाकिस्तान की और से ५२ बार उलंघन हुआ और २५ से ज्यादा आतंकवादी हमले हुए हैं तो माना जा सकता है की पाकिस्तान फिलहाल बातचीत को लेकर गंभीर नहीं है। .अमेरिका सहित वेस्ट के देशों में यह धारणा पक्की है कि पाकिस्तान में फौज का वर्चस्व हमेशा के लिए कायम है। जाहिर है फौज जबतक बर्चस्व रहेगा तबतक पाकिस्तान में मुल्लाओं की तूती बजेगी .और मुल्लाओं का साथ कायम रहा तो पाकिस्तानी फौज के लिए दहशतगर्दों के तादाद कभी कम नहीं होंगी .दहशतगर्दी के खिलफ अमेरिकी जंग में शामिल होकर पाकिस्तानी फौज ने अबतक अरबों डालर वसूले है .यह वही पाकिस्तानी फौज है जो अलकायदा के खिलाफ जंग के नाम पर अमेरिका से डालर भी लेता रहा और उसके सरगना ओसामा बीन लादेन को सुरक्षित ठिकाना भी देता रहा
अमेरिका 2014तक अफगानिस्तान ने
में अपने फेवर का कोई तालिवान
भारत पाकिस्तान के बीच बनते बिगड़ते रिश्ते और विभिन्न समझौते पर गौर करे तो यह आपको जरूर लगेगा कि भारत शक्ति ,वैभव, ज्ञान के मामले में भले ही अपनी पहचान दुनिया मे बनाए हो लेकिन स्टेट के रूप में उसे हमेशा उसे एक लचर , ज्यादा विवेकशील , कुछ ज्यादा ही धैर्यवान शाशक से पाला पड़ा है। १९४७ से लेकर आजतक कश्मीर के मामले में हुक्मुतों के फैसले ने इस मुद्दे को सुलझाने के वजाय उलझाया ही है।यानी अनतर्राष्ट्रीय डिप्लोमसी में पाकिस्तान ने दहशतगर्दो का साथ लेकर भारत को जब तब मजबूत चुनौती दिया है।
हेडली और राणा जैसे सैकड़ों पढ़े लिखे पाकिस्तान के नौजवान आज पूरी दुनिया मे आतंक का परचम लहरा रहे है .अल कायदा ,आई एस आई एस और तालिबान के लिए काम कर रहे है तो क्या इन आतंकवादियों का लीडर हाफिज़ सईद हो सकता है ? क्या मदरसा के भोले भाले अनपढ़ लोगों को जिहादी बनाने वाले मौलवी अब पढ़े लिखे सभ्रांत घरानों के बच्चों को जिहादी बना रहा है ? यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि इन जिहादियों का लीडर कोई और है जो परदे के पीछे है .जाहिर है इसका नेतृत्व पाकिस्तानी फौज कर रहा है और इसका सूत्र धार आई एस आई है सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए पाकिस्तान मे हुकूमत को लोकतंत्र का चोगा पहना दिया गया है पाकिस्तान के सियासी समाजी जीवन में कोई भी बदलाव नहीं आया है ,मिडिल क्लास वहा पूरी तरह से गौण है जबकि भारत में मिड्ल क्लास परिवर्तन का सूत्रधार है। यानी ६८ साल पहले जिस फ्यूडल क्लास ने पाकिस्तानी फौज और सत्ता की कमान संभाली वही हालत आज भी बरक़रार है। कश्मीर के नाम पर अगर फौज सत्ता और समाज में अपना वर्चस्व बनाकर रखा है तो अफगानिस्तान की समस्या ने पाकिस्तान की फौज को मालामाल कर दिया है। आतंकवाद से लहूलहन पाकिस्तान में फौज ने बैड और गुड टेररिस्ट का नाम देकर अमेरिका को पिछले कई वर्षो से उलझा कर रखा है। ऐसी हालत में भारत को अमेरिका से कोई उम्मीद लगाना निरर्थक होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि आतंकवाद से जूझ रही दुनिया को पाकिस्तान से भरोसा घटा है लेकिन भारत को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। एक छटा सा मुल्क इस्रायल तमाम मुश्किलो के बीच अपने ज्ञान -कौशल और विवेक से पुरे मिडिल ईस्ट से लोहा ले रहा है तो भारत अपनी शांति के लिए पडोशी भले ही न बदले वहां हलचल पैदा जरूर कर सकता है। …
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