पीपली लाइव फ्रोम कश्मीर ...


कश्मीर क्या सच में देश की सबसे बड़ी समस्या है ? क्या सचमुच कश्मीर के कुछ पथ्थरबाज नौजवानो ने मसले कश्मीर को ज्यादा पेचीदा बना दिया है ? या फिर इस देश के स्वच्छंद मीडिया ने कश्मीर को हॉट केक बना दिया है। देश के 200 से अधिक न्यूज़ चैनल्स से आती कश्मीर के कुछ इलाकों की खबरों ने पीपली लाइव को सार्थक बनाया है। इस दौर में पीपली लाइव के अपने अधिकार को सुनिश्चित करते हुए मीडिया हाउस ने सोशल मीडिया को धारदार बनाया है । मजमा यहाँ चूरन बेचने वाले भी लगा लेते हैं .... सड़क के किनारे क्रेन का करतब देखने भी देश के किसी भी कोने में 100 -200 लोग जुट जाते हैं। वहां न्यूज़ रूम से चीखती आवाजे और मौके पर खड़े रिपोर्टर का बीर रस से सराबोर ओजपूर्ण रिपोर्टिंग यह मानने के लिए विवस करता है कि देश और उसकी समस्या को सिर्फ टीवी वाले ही समझते हैं अगर इन्हे मौका मिले तो हर समस्या का समाधान वे चुटकी बजाते कर सकते हैं। यहाँ प्राइम टाइम एंकर और एक्सपर्टस का अलग रुतबा है। मीडिया हाउस में अब गेस्ट कोर्डिनेटर ही आज का एजेंडा तय करता है और यह एंगल और एजेंडा एडिटोरियल मीटिंग से नहीं बल्कि सोशल मीडिया के ट्रेंडिंग से तय होता है।
कारगिल संघर्ष हो या 26 /11 के आतंकवादी हमले या फिर पार्लियामेंट अटैक हों या फिर कश्मीर के कुछ जिलों में पथ्थरबाजी, टीवी चैनल्स ने समभाव से खबर और घटना का "सेक्युलर" विश्लेषण किया है। यह भारतीय मीडिया का कमाल है जिसके लिए देश से ऊपर प्रोफेशनल कमिटमेंट होता है। मीडिया के अनुभवी पत्रकारों का मानना है कि पत्रकार और पंक्षी का कोई सरहद नहीं होता उसे तटस्थ भाव से रिपोर्टिंग करनी है। लेकिन इन्हे सवाल पूछने वाला कोई नहीं है कि देश से मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी ने इन्हे पत्रकार बनाया है किसी इंटनेशनल इंस्टिट्यूट ने इन्हे यह अधिकार नहीं दिया है। बारामुल्ला या अनंतनाग में पथ्थरबाजी की वारदात छोटे से एक जगह की हो सकती है जम्मू कश्मीर और लदाख की नहीं। मिलिटेंट वारदात की खबर बॉर्डर इलाके की एक घटना हो सकती है पुरे कश्मीर की नहीं। कश्मीर से तीन गुने आकार का लदाख है तो क्षेत्रफल में जम्मू भी कश्मीर से बड़ा है लेकिन मीडिया में शायद ही कभी यहाँ की खबर हो। क्योंकि पीपली लाइव में कैमरा सिर्फ नथ्था और बुधिया को ही ढूंढता है। प्राइम टाइम टीवी बहस में दो के बदले पचास सिर को लेकर कुछ जगह देश भक्ति का माहौल बनाया जाता है तो "दस्तक "के एक महान एंकर किसान की आत्म हत्या और जवानो की मौत का मिजाज़ इस तरह घोलते हैं मानो अगर इस देश का सिस्टम "दस्तक" नहीं देखा तो सिस्टम क्या खाक चलाएंगे।
नेहरू से लेकर राजीव तक अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी तक हर दौर में कश्मीर एक मसला रहा है लेकिन हर दौर में राजनेताओं ने अपने विवेक से इसका सामना किया है और तरक्की की गाडी आगे बढ़ाया है । आजादी के 70 साल बीत जाने के वाबजूद पाकिस्तान में जम्हूरियत अभीतक पूरी तरह से बहाल नहीं हो पाया है ,जाहिर है वहां कल भी फ़ौज की बलादस्ती थी और आज भी है। आज भी अगर प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ पर वहां केस दर्ज हो सकता है कि उन्होंने फ़ौज के खिलाफ बयानवाजी की थी। ऐसे पडोसी से हम कश्मीर में शांति की उम्मीद कतई नहीं कर सकते। कश्मीर /पाकिस्तान पर पीपली लाइव बंद करके जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र को मजबूती दिलाने में अगर मीडिया अपनी भूमिका बढाती है तो कश्मीर समस्या के लिए इससे बेहतर और तरीका नहीं हो सकता। जम्मू कश्मीर में वर्षो से जम्हूरी इदारे ठप्प पड़े हैं यह मीडिया के लिए ख़बर नहीं है ,अगर खबर सिर्फ पथ्थरबाजी है तो एक दिन लोग जरूर कहेंगे दिस इज पीपली लाइव फ्रोम कश्मीर ..

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