देश बदल रहा है ,आगे बढ़ रहा है

पी एम मोदी के मंत्रिमंडल विस्तार से  कई भ्रम टूटे  हैं। मीडिया के कुछ वरिष्ठ लोगों का यह भ्रम कि सत्ता के अंदर और बहार की खबर वे ब्रेक कर सकते हैं। कुछ लोगों का यह भ्रम कि सरकार अक्सर  मीडिया की नजरों से व्यक्तित्व की परख करती है। कुछ लोगों का यह भ्रम कि मंत्रिमंडल का  विस्तार  जाति और क्षेत्र से तय होता है । कुछ बुद्धिजीवियों का यह भ्रम कि  सरकार के हर फैसले में आर एस एस का नाम जोड़कर खबरों में बहस की गुंजाइस बनायीं जा सकती है। पिछले एक हफ्ते से सोशल मीडिया मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर जिन फेक खबरों को हवा दे रहा था। हमारे अनुभवी टीवी पत्रकार उसे सच मानकर डंके की चोट पर और  खबर तह तक का विश्लेषण कर रहे थे। 

सरकार और पॉलिसी को लेकर हमने जो फ्रेम बनाया है उसके इतर देखने समझने की सोच हमने विकसित नहीं की है। पिछले 28  वर्षो से गठबंधन की सरकार की पैटर्न हमारी सोच को लगभग कुंठित कर रखी है। जाहिर है इस फ्रेम से बाहर न तो देश के बुद्धिजीवी निकल रहे हैं न ही मीडिया और न ही नौकरशाही। जरा सोचिये आर के सिंह , सत्यपाल  सिंह ,  अल्फोंज कन्नाथम ,हरदीप   सिंह  पुरी ऐसे कई नाम हैं जिनके नाम की चर्चा संघ में हुई होगी ? और जिन संघ से जुड़े लोगों का नाम मीडिया बार बार चला रहा था और उन्हें नए ड्रेस सिलवाने के लिए प्रेरित रहा था ,अब क्या वे उनसे माफ़ी मांगेंगे ?हम यह समझने में  नाकाम रहे है कि मोदी  अगर अपने परफॉरमेंस को लेकर इतने  सजग है तो वे क्या अपने मंत्रिमंडल के लोगों की परफॉरमेंस की समीक्षा नहीं करेंगे? यथास्थिति बनाये रखने की जिद ठान चुकी सिस्टम बदलने को राजी नहीं है ,हर जगह नियमो का हवाला देकर नौकरशाह अपनी प्रभुत्व कायम रखना चाहती। लेकिन इस दौर में अगर कई वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट को समय से पहले छुट्टी की जा सकती है तो मंत्रियो की क्यों नहीं ? लेकिन हमने मान लिया है कि यह पहले नहीं होता था ,इसलिए कभी नहीं होगा। 

हमारे कई वरिष्ठ पत्रकारो ने कई मंत्रालयों को सफ़ेद हाथी का दर्जा दिया था। कुछ पत्रकारों ने आर टी आई के जरिये इन मंत्रालयों  के बजट और परफॉरमेंस का विश्लेषण भी किया था लेकिन किसी सरकार ने उन फजूल खर्ची और अनुपयुक्त मंत्रालयों को बंद करने की हिम्मत नहीं दिखाई। अटल जी की सरकार ने मंत्रियो की संख्या पर एक कैप लगाकर सरकारी लूट और राजनितिक गठजोड़ पर एक हद तक लगाम लगाने की कोशिश  जरूर जरूर  की  थी ।  लेकिन यह पहलीबार हुआ है कि वित्त मंत्री के अधीन ही कंपनी मामले के मंत्रालय सम्बद्ध है। यह देश वित्त मंत्री चिदंबरम के साथ प्रेम गुप्ता (आर जे डी ) को कंपनी मामले का मंत्री बनते हुए देखा है। आज एक नितिन गडकरी के जिम्मे रोड ट्रांसपोर्ट ,हाईवे ,शिपिंग ,जलसंसाधन और गंगा मंत्रालय है। यानी एक मंत्री एक सचिव के अनतर्गत इतने मंत्रालय चलेंगे जो आपस में कनेक्टेड हैं। हालाँकि इस प्रक्रिया में अभी कुछ और मंत्रालय सम्बद्ध हो सकते हैं जिनका जॉब और नेचर लगभग एक है। पी एम मोदी यह जानते है कि देश ने इतना बड़ा  मैंडेट उन्हे बदलाव के लिए दिया  है। आम जनता सिस्टम में बदलाव चाहती है यथास्थिति के मकड़जाल को तोडना चाहती है। डोकलाम और दूसरे विदेशी फ्रंट पर इस सरकार ने अपनी स्थति स्पष्ट  कर ली है।  लेकिन अंदुरिनि हालत बदलने की स्थति बनी हुई है। सामाजिक  बदलाव सरकार की कई मुश्किलों को आसान बना रही है। इंडिया फर्स्ट और न्यू इंडिया सिर्फ नारा बनकर न रह जाए यह चुनौती मोदी सरकार के सामने जरूर है। vinod mishra 


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिंदू आतंकवाद, इस्लामिक आतंकवाद और देश की सियासत

हिंदुत्व कभी हारता क्यों नहीं है !

अयोध्या ; लोग आए तो राम भी आए हैं