इनदिनों दिल्ली के मीडिया में इतना शोर क्यों है भाई ? क्या इसलिए कि मीडिया अपने अधिकारों को लेकर ज्यादा सजग हो गया है या फिर सोशल मीडिया ने उसकी जमीन खिसका दी है। या फिर खबरों और तर्क के आकाल में मीडिया के स्वनामधन्य एंकर अपनी सुविधा से नए तर्क गढ़ रहे हैं। लेकिन अपने अपने तर्कों को लेकर जिस बेहूदापन और ओछी हरकत को टी आर पी बनाया जा रहा है वह कही से लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ नहीं लगता बल्कि यह सभ्य समाज के लिए गाली है। गौरी लंकेश की दुखद हत्या की खबर को दिल्ली के मीडिया ने मसाला बना दिया। ,लोकतंत्र में आज़ादी के नाम पर देश के प्रधानमंत्री तक को गाली देने में कोई कोताही नहीं बरती यह जानते हुए भी कि घटना कर्नाटका में हुई जवाब कांग्रेस के मुख्यनत्री सिद्धिरामय्या को देना है लेकिन सवाल नरेंद्र मोदी से पुछा जा रहा है।
यह इसलिए कि घटना के तुरंत बाद राहुल गाँधी ने ट्वीट करके इस हत्या में बीजेपी और आरएसएस का नाम लिया था। एन डी टी वी के वरिष्ठ एंकर रवीश कुमार कहते है यह शक इसलिए पैदा करता है क्योंकि गौरी लंकेश संघ की विचारधारा के खिलाफ लिखती रही है। लेकिन अल्ट्रा माओइस्ट विचारधारा की गौरी लंकेश इनदिनों कर्नाटक की इंडस्ट्री और पोलिटिकल नेक्सस पर लिख रही थी ,भ्रष्ट मंत्रियो के खिलाफ लिख रही फिर शक की सुई राज्य सरकार के खिलाफ क्यों नहीं गयी ? यह न तो रविश कुमार प्रेस क्लब के अपने भाषण में जिक्र किया न ही अपने प्राइम टाइम टीवी रिपोर्ट में उसी भाषण को रिपीट करके इसकी चर्चा की। शायद इसलिए कि राज्य की कांग्रेस सरकार गौरी लंकेश को मौत के बाद राजकीय सम्मान दे रही थी ?
आजकल के टीवी एंकर किस भूमिका में हैं यह चर्चा का विषय है लेकिन रवीश कुमार शूटर हैं या पत्रकार इसका बेहतर जवाब प्रनॉय रॉय ही दे सकते हैं। एक पत्रकार निजी कैपेसिटी में किसी धरने में शामिल होता है और कुछ देर बाद उसका अनकट भाषण टीवी शो में एयर होता है तो शायद पत्रकार की परिभाषा बदलनी पड़ेगी। रवीश की " चूतिया कमेंट " को पहले दिग्विजय सिंह जैसे समर्थक ट्वीट करते है फिर एन डी टी वी पर बताया जाता है कि वह एकाउंट फेक था। वरिष्ठ कोंग्रेस नेता दिग्विजय सिंह अपने दिनभर की ट्वीट में रवीश कुमार के भाषण के वीडियो लिंक शेयर कर रहे हैं तो यह बताना मुश्किल है कि कौन किसका भक्त है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस "दधीचि " को लेकर रवीश कुमार इतने गुस्से में है क्योंकि उसने गौरी लंकेश के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया और उसे पी एम अबतक क्यों फॉलो कर रहे हैं। लेकिन दिग्विजय सिंह को फॉलो करके क्या रवीश कुमार मिडिया का मान बढ़ा रहे है ? यह बताने की जरुरत है।
प्रधानमंत्री देश के 125 करोड़ आवादी में राहुल गाँधी ,केजरीवाल और दधीचि जैसे लोगों को फॉलो कर रहे हैं तो इसका मतलब कतई नहीं है कि उनकी सोच से भी वे इत्तिफाक रखते हैं। इस फर्क को समझे बगैर अगर रवीश गुस्से में है तो माना जायेगा कि वे समाज में घृणा और विद्धेष फैला रहे है। इसे पत्रकारिता कतय नहीं कहा जा सकता है।
1700 मेम्बर वाला प्रेस क्लब एन डी टी वी का क्लब है या फिर दिल्ली के मेहनतकश पत्रकारों का यह तय होना अभी बाकी है लेकिन गौरी लंकेश की हत्या के विरोध के तरीके ने आम पत्रकार और क्लब को शर्मशार जरूर किया है। महान विचारक कन्हैया कुमार और रवीश ,राजदीप के भाषण में ताली बजाने ईसाई मिशिनरी और कांग्रेस के नेता जमा होते है और सवाल पूछने पर पत्रकार को गेट आउट ,गेट लॉस्ट बोला जाता है तो धरना देने वाले पत्रकार और क्लब एजेंट से ज्यादा नहीं लगते है। क्योंकि यह सवाल तो कुछ पत्रकारों के मन में जरूर रहा होगा कि बिना जांच हुए किसी को अपराधी कैसे बताया जा सकता है और इसके सबूत क्या हैं ?
क्या इन पत्रकारों को अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं थी ? इससे भी बड़ा सवाल कि क्या यह प्रेस क्लब और नामी पत्रकारों ने आजतक किसी और पत्रकार की हत्या के खिलाफ कोई प्रदर्शन किया है ? यह विरोध क्या इसलिए था कि गौरी इंग्लिश बोलती और लिखती थी। देशी पत्रकारों की जान की कोई कीमत नहीं है। क्या बिहार के पत्रकार पंकज मिश्रा पर हुए जानलेवा हमले की किसी ने निंदा की। क्या लालू यादव के चेहेते शाहबुद्दीन के गुर्गों के शिकार हुए पत्रकार राजदेव रंजन की विधवा के समर्थन में इस प्रेस क्लब ने कोई प्रदर्शन किया था। क्या देश में कही कैंडल मार्च निकला था। सपा मंत्री के खिलाफ लिखने वाले जोगेंदर सिंह की बर्बर हत्या के खिलाफ कही कोई आवाज उठी ? ओडिशा के तरुण कुमार बीजापुर के साई रेड्डी जिनका नाम कन्हैया कुमार जरूर सुना होगा क्या सिर्फ गौरी लंकेश ही माँ जैसी थी ,तो बन्दुक और बाहुबली के खौफ के बीच पत्रकरिता करने वाले स्ट्रिंगर भी हमारे भाई के सामान नहीं हो सकते । पत्रकार जब पावर ब्रोकर बन जाता है तो वह अपनी सुविधा से गौरी लंकेश में माँ की छाप देखता है लेकिन उस खांचे में अगर कोई देशी पत्रकार फिट नहीं बैठता तो उसे बाप के समान मानने के वजाय उसे विरादरी से ख़ारिज कर दिया जाता है।Vinod Mishra
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