उत्तर प्रदेश एक राजनितिक प्रयोगशाला
क्यों यू पी में समाजवाद और दलितवाद ,जातिवाद ,सम्प्रदायवाद का प्रयोग धरासायी हो गया है ? शायद इसलिए अब गरीब सहानुभूति नहीं चाहते वो सियासी लीडरों का एहसान नहीं चाहते। अगर एक्सप्रेस वे को अखिलेश अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं तो हर गरीब को पता है कि उनका पूरा खानदान आज रिअलिटी बिज़नस में क्यों अब्बल है ? क्यों मायावती के रिश्तेदार महज पांच वर्षो में करोड़ पति बन जाते हैं और गरीब /बंचितों के हिस्से में देखने के लिए सिर्फ मायावती की भब्य मूर्ति और पार्क बच जाते हैं। हो सकता है राजनितिक पंडित इसे इंदिरा जी की नक़ल माने। लेकिन यकीन मानिये लगभग उसी दौर में दीनदयाल जी ने अन्त्योदय का नारा दिया था ,यानी समाज के आखरी पायदान पर खड़े व्यक्ति का उदय। ये अलग बात थी कांग्रेस के दौर में लोगों ने सिर्फ इंदिरा जी के समाजवाद को याद रखा। लेकिन महज 2 वर्षों के कार्यकाल में मोदी सरकार ने अगर उत्तर प्रदेश के 2 हजार से ज्यादा गांव में बिजली पहुचाई है तो क्या यह काम अखिलेश और मायावती भी कर सकती थी । बैंको के राष्ट्रीयकरण के 50 वर्ष बीत जाने के बाद भी अगर कोई गरीब बैंक के दरबाजे तक नहीं पहुँच सका और महज 2 साल में 27 करोड़ गरीबों के जनधन एकाउंट खुल गए। 6 महीने में लगभग 2 करोड़ गरीबों को गैस कनेक्शन मिल गए , 4 करोड़ ज्यादा गरीबों को पक्के शौचालय मिल गए ,तो यह अन्त्योदय और गरीबी कल्याण के प्रति मोदी की प्राथमिकता बताती है।
यही वजह है कि नोटबंदी की परेशानी झेलते हुए भी लोगों ने मोदी के इस अभियान का समर्थन किया। और नोटबंदी के बाद राज्यों के चुनावों में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया है। उत्तर प्रदेश एक राजनितिक प्रयोगशाला है ,जहाँ हर सियासतदान और राजनीतिक पंडितों को सीखने के लिए बहुत कुछ है
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