श्रम ,साधन , श्रद्धा और सियासत : राम मंदिर निर्माण में सबकी सेवा होगी सुनिश्चित

पिछले दिनों बुजुर्ग नेता शरद पवार ने सरकार को बिन मांगे एक सलाह दी। एन सी पी नेता पवार जी का कहना था कि सरकार राम मंदिर निर्माण के तर्ज पर मुसलमानों के मस्जिद के लिए भी एक ट्रस्ट बनाये। उनका मानना है कि सेक्युलर हिंदुस्तान में यह जरुरी है। महाराष्ट्र की सियासत में वे उस बूढ़े शेर की तरह हैं जो शिकार के लिए ज्यादा दौड़ नहीं सकते लेकिन दिमाग दौड़ा कर शिकार पकड़ लेते हैं। जाहिर है उन्होंने सेकुलरिज्म के नाम पर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की है। दुनिया जानती है कि राम मंदिर का निर्माण सुप्रीम कोर्ट के आदेश से गठित ट्रस्ट के द्वारा हो रहा है। उसी आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ जमीन देने की बात की है। मुस्लिम पक्ष यानी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी यह मानता है कि उनके पास सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने के अलावे दूसरा विकल्प नहीं है ,इसलिए उन्हें अब यह तय करना है कि सरकार द्वारा दी गयी प्रस्तावित जमीन का इस्तेमाल किस रूप में होना है। माननीय न्यायलय के आदेश को न मानना अवमानना होगा। यह बात भी सब जानते हैं फिर शरद पवार के सेक्युलर बयान का अर्थ समझा जा सकता है। 1989 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने अयोध्या से चुनावी रैली की शुरुआत की थी और "रामराज्य" लाने का संकल्प दोहराया था। लेकिन पिछले वर्षो में ऐसा क्यों हो रहा है कि जब कभी भी बात "अयोध्या" और राममंदिर की होती है तो बहस सेक्युलर कम्युनल पर टीक जाती है ?

रामजनम भूमि तीर्थ ट्रस्ट ने पिछले दिनों बोर्ड की पहली मीटिंग में मंदिर निर्माण की रूप रेखा की चर्चा की साथ ही मंदिर निर्माण से जुड़े कुछ अनुभवी लोगों को भी इसमें शामिल किया ताकि भारत के जनमानस में भव्य मंदिर निर्माण की परिकल्पना साकार हो सके। नृत्यगोपाल दास और चमपत राय जैसे अनुभवी लोगों को भी बोर्ड में शामिल किया गया। सूत्र बताते हैं कि जब तीर्थ ट्रस्ट ने प्रधानमंत्री कार्यालय से मोदी जी से मिलने का समय माँगा तो उन्हें बताया गया कि पी एम सिर्फ प्रमुख ट्रस्टी के परासरण जी से मिलने को इच्छुक हैं। यानी प्रधानमंत्री इस निर्माण कार्य को ज्यादा प्रचारित करने के पक्ष में नहीं है। बाद में परासरण जी के अनुरोध पर नव नियुक्ति पदाधिकारी से भी प्रधानमंत्री मिले और उन्हें मंदिर निर्माण को समाज में किसी भी तरह के विवाद से दूर रखने की सलाह दी। 400 साल से ज्यादा राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन चले हैं जिसमे लाखों की तादाद में जाने गयी हैं लेकिन आज सब की यह उत्सुकता है कि भारतीय समाज अपने को व्यवहारिक और परिपक्वता का परिचय देते हुए भव्य मंदिर का निर्माण करे।
1984 में पहलीबार दिल्ली के विज्ञानं भवन में धर्म संसद की बैठक में संतो ने राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का एलान किया था और अखिल भारतीय स्तर पर आंदोलन को जन जन के बीच ले गए थे। 70 वर्षों से अदालत के अंदर और बाहर राम मंदिर के मुद्दे को प्रभावी रूप से रखने में विश्व हिन्दू परिषद् ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जाहिर है इस संगठन की एक अमिट छाप आयोध्या के हर शिलालेख पर है। हालाँकि संघ प्रमुख मोहन भागवत कह चुके हैं कि राममंदिर के बाद संघ के एजेंडे में अब कोई आंदोलन नहीं है। यानी निर्माण की प्रक्रिया कैसी हो उसकी भव्यता कैसी हो अब विशेषज्ञ और समाज तय करे।
राम तेरे कितने नाम ! इस देश में उत्तर से लेकर दक्षिण तक सबसे ज्यादा राम और उनकी मर्यादा पर ही लिखी गयी हैं। अलम्मा इक़बाल ने तो राम को इमाम ए हिन्द कहा था।रहीम के राम ,कबीर के राम ,रसखान के राम और गांधी के राम तो घट घट वासी राम है. राम भारत की प्राचीन संस्कृति की वो कड़ी हैं जिसे छोड़कर भारत और भारतीय समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए आज जब मंदिर निर्माण में चंदे की बात आती है एकाउंट की बात होती है तो राम को मानने और जानने वालों को हसी आती है। राम की सेना के लिए जब समुद्र में पुल बनाने की बात सामने आयी तो महीने के अंदर श्रमदान से सेतुसमुंद्रम का निर्माण हो गया। गिलहरी से लेकर महावली हनुमान ने अपने हिस्से के श्रमदान से रामेश्वरम में रामसेतु का निर्माण किया था जिसके निशान आज भी हैं।
जाहिर है राम मंदिर निर्माण का संकल्प श्रम,साधन और श्रद्धा से पूरा होगा। यानी श्रम का महत्व ज्यादा होगा। इसलिए यह जरुरी है कि जब भी निर्माण का कार्य प्रारम्भ होगा श्रम ,साधन और श्रद्धा के लिए लाखों में लोग जुटेंगे और राम मंदिर की भव्यता के संकल्प को जमीन पर उतारेंगे।
2. 5 एकड़ विवादित भूमि और 67 एकड़ की अधिग्रहित भूमि रामलला विराजमान को सुपुर्द कर दिए गए हैं। रामलला विराजमान एक जीवित इकाई हैं जिनके पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है। 1989 में लाल नारायण सिन्हा ने रामलला विराजमान के पक्ष में मुकदमा लाया था सुप्रीम कोर्ट में के परासरण उसी रामलला विराजमान के वकील थे जिनके पक्ष में कोर्ट ने फैसला दिया है। तमिलनाडु के विद्वान वकील परासरण जी इस ट्रस्ट के प्रमुख ट्रस्टी भी हैं। आज ये चुनौती है कि मंदिर निर्माण के वक्त मौजूदा रामलला विराजमान का स्थान कैसे बदले ? मंदिर की ऊंचाई कितनी हो ? राम की भव्यता का एहसास आने वाले श्रद्धालुओं को अयोध्या प्रवेश के साथ कैसे मिले ? अनेक चुनौतियां के बीच आज भी महामना मदन मोहन मालवीय जी को याद किया जा सकता है कि जब उनके समक्ष काशी विश्वनाथ के जीर्ण शीर्ण मंदिर का सवाल आया तो उन्होंने एक भव्य विश्वनाथ मंदिर बनवाने की पहल की जिसे वाराणसी में आने वाले श्रद्धालु दूर से देख सके। लेकिन जब उन्हें यह बताया गया कि गंगा तटीय ये इलाका भूकंप प्रभावित है ज्यादा ऊंचाई की ईमारत यहाँ नहीं हो सकती तो उन्होंने निर्माण की प्रक्रिया विशेषज्ञों के ऊपर छोड़ दिया था। राम मंदिर निर्माण करोडो लोगों के आस्था का सवाल है लेकिन विशेषज्ञता की अहमियत देने की गुंजाइश छोड़नी होगी। देश के धार्मिक स्थल स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के प्रमुख साधन होते हैं. इस देश की प्राचीन परम्पराओं ने अर्थ के बाद ही धर्म और मोक्ष की चिंता की है जाहिर है राम में एकबार फिर लाखों भारतीय अपने अर्थ ,धर्म और मोक्ष को ढूंढने अयोध्या आएंगे



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