आओ सियासत सीखे

लोकतंत्र के मह्कुम्भ का ऐसा नजारा शायद ही दुनिया में कही देखने को मिलेंगे । ये भारत का लोकतंत्र है जहा दुनिया में सबसे ज्यादा लोग अपने
मत का प्रयोग करते है । कही चुनाव तो कही वहिष्कार...
कही धन बल तो कही बाहु बल। सत्ता पाने के लिए साम ,दंड और भेद की निति और न जाने क्या क्या । क्योंकि यह लोकतंत्र है क्योंकि इन्हे देश चलाना है । लेकिन चुनाव को लेकर जो सियासत जम्मू कश्मीर में हो रही है वैसी सियासत की आप कल्पना नही कर पाएंगे । देश के साबिक गृह मंत्री और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद शईद ने चुनाव वहिष्कार किया । उनकी सुपुत्री और पीडीपी के अध्यक्ष महबूबा ने भी ख़ुद वोट डालने से अपने को दूर रखा । राज्य में उनकी पार्टी के ६ उम्मीदवार चुनावी मैदान में है और लोगों से वोट मांग रहे है । लेकिन अनंतनाग में हुर्रियत के चुनाव बायकाट के बीच इन्हे वोट करना उचित नही लगा तो ये भी वहिष्कार कर गए । यानि अगर मुफ्ती साहब पॉवर में है तो भारत में भी लोकतंत्र है और कश्मीर में भी लेकिन सत्ता में नही है और न ही आने की हाल फिलहाल में सम्भावना है तो यह चुनाव प्रक्रिया बेमानी है । सत्ता का मतलब पैसा से है अगर केन्द्र का बेसुमार पैसा इनके हाथों से कश्मीर आ रहा है तो सबकुछ ठीक है वरना कश्मीर बनेगा पाकिस्तान और आज़ादी कहने से इन्हे कौन रोक सकता । कभी मुफ्ती साहब के गृह मंत्री रहते हुए कश्मीर में आर्म्स फाॅर्स स्पेशल पॉवर एक्ट लगा था । आतंकवाद को हराने के लिए मुफ्ती साहब ने कई पहल की अगुवाई की थी । आज स्पेशल पॉवर एक्ट को हटाने के लिए मुफ्ती साहब ने हुर्रियत को भी पीछे छोड़ दिया है । आतंकवाद से प्रभावित इलाकों से आर्मी और पारा मिलिटरी कैंप को हटाने के लिए मुफ्ती साहब की पार्टी पुरी जदोजहद कर रही है । पोल बायकाट की मुहीम मे हुर्रियत के लीडरों को कामयाबी मिलती है तो केन्द्र को यह समझाने के लिए मुफ्ती साहब आगे आयेंगे कि हुर्रियत की तोड़ सिर्फ़ उनके पास है । केन्द्र की सरकार मुफ्ती की सियासत को समझे न समझे लेकिन फारूक अब्दुल्ला ने मुफ्ती की सियासत समझ ली है । फारूक अब्दुल्ला को पता है कि सत्ता में पीडीपी को लाने में हिजबुल मुजाहिदीन का अहम् योगदान रहा है । राज्य का मुफ्ती साहब पहला मुख्यमंत्री थे जो आतंकवादी को अपना बच्चा कहते थे लेकिन उनकी पुलिस उन बच्चो से दिन रात जूझती थी । यानि सियासत के खेल में मुफ्ती साहब केन्द्र पर हमेसा भरी पड़े । फारूक अब्दुलाह की पार्टी की जबसे सरकार बनी है उन्होंने हिजबुल मुजाहिद्दीन के खिलाफ बोलना छोड़ दिया है । यही फारूक साहब कभी पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी ट्रेनिंग कैंप को तबाह करने के लिए केन्द्र को उकसाते थे । यानि सबकुछ समझौते की तरह चल रहा है ,तुम अपना काम करो हम अपना काम कर रहे है ।
कश्मीर में लीडरों को पता है जबतक वादी में आतंकवाद है तबतक पैसे की वारिस है ।
पहलीबार अपनी किताब इन द लाइन ऑफ़ फायर में परवेज मुशर्रफ़ ने इस बात का खुलासा किया था कि आतंकवाद की तथाकथित ज़ंग के कारण पाकिस्तान ने अमेरिका से १० बिल्लियन डॉलर कमाए थे । ये अलग बात है कि इसके एवज में पाकिस्तान को ४०-५० बेकसूरों को अल्कैदा दहशतगर्द बनाकर गुन्तामाओ भी भेजना पड़ा था । यानि आतंकवाद की सियासत के कारण अमेरिका और दुसरे देशों से पाकिस्तान ने दोनों हाथों से पैसे बटोरे है ।
पाकिस्तान आज बदहाली के कगार पर है लेकिन तालिबान है अल कैदा है तो फ़िर क्या गम है ।
पिछले दिनों दुनिया के प्रमुख देशों के प्रतिनिधि जापान में इस चर्चा के लिए बैठे कि आतंकवाद पर कैसे काबू पाया जाय ? एक बार फ़िर यह पाकिस्तान के लिए मौका था । सो राष्ट्रपति जरदारी साहब ख़ुद एक विडियो फ़िल्म दिखाने टोकियो पहुचे । जरदारी साहब ने दुनिया को बताया तालिबान के खुनी पंजो से पाकिस्तान पुरी तरह घायल हो चुका है । तालिबान से लड़ने के लिए पाकिस्तान को पैसे चाहिए । पैसे दो वरना तालिबान के हाथों नुक्लेअर बोम्ब आ सकता है । इस मार्केटिंग में जरदारी साहब ने ८ बिलियन डॉलर झटक लिया । अमेरिका ने कहा अब करवाई करो पैसा तो मिल गया ,आनन फानन में पाकिस्तान ने बुनेर में करवाई कि और ६० तालिबानियो को मार गिराने का दावा किया । यह अलग बात है स्थानीय लोग कह रहे है हमलों के निशाना आम शहरी ही हुए है । हमारे मीडिया प्राइम टाइम की ख़बरों में रोज तालिबान को दिखा रहा है । तालिबान को इस्लामाबाद तक पहुच जाने की ब्रेकिंग न्यूज़ देकर पुरी दुनिया को ख़बरदार कर रहा है । यानि हम पाकिस्तान मे तालिबान के बढ़ते असर से दुनिया को डरा रहे है और पाकिस्तान इसके एवज में दोनों हाथों से पैसा बटोर रहा है । मुंबई हमले को अंजाम देने वाले आतंकवादियों के ख़िलाफ़ हम पाकिस्तान से करवाई की रोज रोज मांग कर रहे है । लेकिन अभी तक अजमल आमिर कसब की उम्र को ही लेकर हमारी अदालत उलझी हुई है । आतंकवाद की लडाई में हम कितने कच्चे है यह अमेरिका ने हमें बार बार बताया है । लेकिन सियासत में हम कितने बच्चे है यह पाकिस्तान हमें सिखा रहा है ।

टिप्पणियाँ

vaishali ने कहा…
आपने दुनिया के सबसे बड़े लोकत्रांत्रिक देश के लोकतान्त्रिक माया के जरिये पुरी सियासत का मिजाज ही भाप दिया । ये सही है की जम्मू कश्मीर की बात होती है तो कश्मीर की बात होती है और कश्मीर की बात होती है तो हुर्रियत की बात होती है और फिर इलेक्शन बायकाट की । लेकिन इलेक्शन बायकाट का ये फैशन कश्मीर से बहार निकल कर,देश के दुसरे हिस्से में खास कर नक्सल प्रभाबित राज्य में पहुच गया है , लेकिन दुर्भाग्य से ये न तो आपके लिए ये लिखने का सुब्जेक्ट होता है ,और न ही आप जैसे बुद्धिजीवी ज्यादा समय देना चाहते है । हा हुर्रियत आप लोगो के लिए कल भी मुद्दा था और आज भी। लेकिन आपको नही लगता की डिनर टेबल पर नक्सल की चर्चा करने की बजाय ये कितना गंभीर खतरा है ,शायद इस पर भी रौशनी डालने की जरूरत है । यहाँ तक जिस तरह तालिबान पाकिस्तान के लिए खतरा साबित हो रहा है उस्सी तरह हमारे देश में भी नाक्साल्ली भी उतना भी बड़ा मुसीबत साबित हो , और कल अमेरिका भी नक्सल आतंक से लड़ने के लिए भारत को आर्थिक मदद की बात करे ,जैसा की आज पाकिस्तान में तालिबान के आतंक से लड़ने के लिए दे रही है । इसलिए जरूरत है की कश्मीर से बहार भी झाकने की ।
ये सिर्फ़ देशद्रोही नहीं, मनुष्यता के भी दुश्मन हैं और इनसे किसी तरह से समझौता करने का अर्थ भी इनके जैसे ही होना है.
मुनीश ( munish ) ने कहा…
people boycotting elections and people tolerating them are both traitors of equal kind.
Udan Tashtari ने कहा…
इष्ट देव सांकृत्यायन जी की बात से पूर्णतः सहमत!

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