कश्मीर की दोगली सियासत ! निलोफेर और निगीन में इतना फर्क क्यों ?



कश्मीर से बहने वाली नदियों की कई धाराएँ है ,लेकिन जब हम सियासी धारा की बात करेंगे तो वहां सिर्फ़ दो धाराएँ है एक भारत की और दूसरा पाकिस्तान की ।लेकिन पिछले वर्षों से भारत की यह सियासी धारा सूखती जा रही है । कह सकते है कि कुंद होती जा रही है । यानि दोगली सियासत और सायकोलोजिकल वार का सामना करने के लिए हमारे हुकुमरानों के तमाम आईडिया फ्लॉप साबित हो रहे है । शोपिया के दो मासूम नीलोफ़र और आइसा की हत्या के बाद कश्मीर में उठा सियासी बबाल थमने का नाम नही ले रहा है । बंद पड़ी अलगाववादियों की दूकान एक बार फ़िर चल पड़ी है । रियासत के मुख्यमंत्री का कद आज सैयेद अली शाह गिलानी ,ओमर फारूक जैसे लीडरों के सामने छोटा हो गया है । पिछले पन्द्रह दिनों से कश्मीर के तमाम कारोबार ठप्प पड़े है । हड़ताली सियासत ने इंतजामिया को पुरी तरह से नाकारा साबित कर दिया है । लोग यह मानने के लिए तैयार नही है कि हत्या की जांच के लिए बनया गया कमीशन सही रिपोर्ट देगी । यानि हुर्रियत लीडर कह रहे है कि फौज ने हत्या की है और सरकार फौरन फौज पर करवाई करे और उन्हें कश्मीर से बाहर करे । फौज को कश्मीर से बहार निकलने की यह बड़ी साजिश हो सकती है लेकिन सच जानने की इच्छा किसी को नही है ।
अब जरा दूसरी हत्या पर गौर कीजिये । उसी शोपिया में पिछले दिनों १७ साल की निगीन अवान को हिजबुल मुजाहिद्दीन के दो स्थानीय आतंकवादी लतीफ़ थयून्दा और रियाज़ ने परिवार वालों के सामने गोलियों से छलनी कर दिया । खून से लतफत निगीन एक घंटे तक मदद के लिए दुआएं करती रही , लेकिन दोनों दहशतगर्दों ने उसके माँ बाप को हॉस्पिटल ले जाने की भी इजाजत नही दी । आज तक न ही ही ये मीडिया की ख़बर बनी न ही शोपिया में आतंकवादियों के ख़िलाफ़ आवाज उठी । अलगाववादियों के लिए इसमें सियासत के लिए कुछ भी नही था ।
दूसरी घटना सोपोर की है अली शाह गिलानी का यह इलाका शोपिया में निलोफेर की हत्या से इतना आहात है कि यहाँ के लोगों ने पिछले पन्द्रह दिनों से कोई काम काज नही चलने दिया है । हुर्रियत लीडरों के साथ हजारों की तादाद रोज इकठा होती है । "बहन हम शर्मिंदा है तेरे कातिल जिन्दा है "के नारे ने माहोल को आक्रामक बना रखा है ।लेकिन उसी सोपोर में पिछले जुम्मे के दिन हिजबुल मुजाहिद्दीन का एक कमांडर बशारत सरे आम रश्म जान को गोलियो से भून देता है और पुरे सोपोर में इसके खिलाफ एक आवाज़ नही उठती है । रश्म जान को हिज्ब का वह आतंकवादी ने इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्योंकि उसने अपनी बेटी की शादी दहशतगर्दों की मर्जी के ख़िलाफ़ की थी । राजौरी की शमा को हिज्ब के दहशतगर्दों ने शादी के ठीक एक दिन बाद बेवा बना दिया क्योंकि उसने आतंकवादी से शादी करने से मना कर दिया था ।

पिछले वर्षों में कश्मीर में सैकडों वाकये सामने आए है जब आतंकवादियों ने मासूम बहनों की जान ले ली है । लेकिन इन बहनों के लिए न तो कभी यह नारा लगा कि बहन हम शर्मिंदा है तेरे कातिल जिन्दा है । और न ही कभी इन मासूमों की हत्या को लेकर हड़ताल हुई न ही किसी इलाके में उत्साही नौजबनों ने पत्थर बाजी की ।
शोपिया मे जिन इलाके में निलोफेर और उसकी भाभी की हत्या की गई उस इलाके में दूर दूर तक न तो कोई आर्मी कैंप है न ही सी आर पी ऍफ़ । दो दिनों तक लोग यह तय नही कर पाए थे कि हत्या है या कुछ और । मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्लाह ने कहा की ये मौत डूबने से हुई । अचानक दुसरे दिन दोनों महिलाओ से रेप की बात भी सामने आई । फ़िर क्या था पुरे इलाके में यह बात जंगल की आग की तरह फैली । हुर्रियत के लीडरों के लिए तो यह मुदा ,मरते को तिनके का सहारा था , तो महबूबा मुफ्ती को सरकार को निचे दिखाने का मौका । रुमौर गेम के सामने हुकूमत झुकती नज़र आई । ओमर अब्दुल्लाह अपने बयान से पलटे और एक के बाद एक कई ऑफिसर नप गए । कई कमीशन बैठ गई लेकिन सियासत करने वाले चुप कहाँ बैठने वाले थे ।
पिछले पचास वर्षों में पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने के लिए कई प्रपंच किए है । कश्मीर को लेकर पाकिस्तान ने तीन जंग भी लड़े है । ज़ंग से परास्त पाकिस्तान ने दहशतगर्दी की रणनीति कश्मीर में शुरू किया । ब्लीडिंग बाय थौजेंड्स कट्स की निति अपनाते हुए पाकिस्तान ने भारत को थकने की कोशिश की । पाकिस्तनी हुकुमरान यह बात गरब से कहते है कि आतंकवाद के कारण ही कश्मीर विश्व के सामने मसला बना तो भारत बात करने के लिए तैयार हुआ । इसी आतंकवाद को जिन्दा रखने के लिए पाकिस्तान ने कश्मीर में हुर्रियत कांफ्रेंस बनया था । भारत की जम्हुर्रियत हुर्रियत को सियासत करने की पुरी आज़ादी देती है । भारत का कानून आतंकवादियों के मनोबल को कभी झुकने नही देता । यहाँ का मानवाधिकार संगठन और उसकी दोगली निति नीलोफ़र निगीन की हत्या में फर्क ढूंढ़ लेता है और सरहद पार के सायकोलोजिकल वार में हारता हुआ नज़र आता है ।




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