कौन है ये नक्सल ! पहचानने की कोशिश में लगी है सरकार
पशुपति से लेकर तिरुपति तक रेड कोरिडोर बनाने का नक्सालियों का सपना लगभग पूरा होते हुए दिख रहा है । पिछले दस वर्षों में जितना आधार भारत में माओवादियों ने बढाया है वैसा आधार किसी और सियासी पार्टी ने नही बढ़ा पाई है । प बंगाल ,बिहार ,झारखण्ड ,उड़ीसा ,छत्तीसगढ़ ,आँध्रप्रदेश के आलावा महाराष्ट्र ,कर्नाटका ,उत्तरप्रदेश ,मध्य प्रदेश में तेजी से फ़ैल रहे नक्साली आन्दोलन ने सीधे तौर पर शाशन को अपनी सत्ता का एहसास दिलाया है । देश के तक़रीबन ६०० जिलों में १८० जिलो में या तो नक्सालियों का कब्जा है या फ़िर उनके दबदवे के सामने स्थानीय प्रशाशन लाचार है ।
पहलीबार देश के किसी गृह मंत्री ने ईमानदारी से यह कबूल किया है कि नक्सालियों को हमने लगातार अंडर एस्टिमेट किया है । पी चिदंबरम यह बात तब कह रहे है जब उनके ही शाशन काल में नक्सालियों ने ४६० से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया है ।उनके ही गृह मंत्री रहते हुए नक्सालियों ने ११३७ वारदातों को अंजाम देकर ३०० से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों को शहीद कर दिया है । देश के कई हिस्से को नक्सालियों ने अपना लिबरेटेड ज़ोन घोषित कर वहां अपनी हुकूमत चला रखा है । परमाणु अस्त्रों सहित अत्याधुनिक हथियारों से संपन्न इस देश में एक ही जगह अगर दो शाशन दो विधान चल रहे हैं तो हमारी संप्रभुता के दावे को समझा जा सकता है । यानि हमने कभी नक्सालियों को गंभीरता से लिया ही नही है क्योकि यह ग्रामीण अंचलों की समस्या है ,क्योंकि यह जंगल के आदिवासियों की समस्या है क्योंकि यह छोटे बड़े किसानों की समस्या है ।
पिछले दिनों एक ही दिन दो बड़ी घटनाये सामने आई । छत्तीसगढ़ के राज्नद गाँव मे नक्सालियों ने एस पी समेत ३८ पुलिस कर्मियों को हलाक कर दिया ,ठीक उसी दिन दिल्ली मेट्रो के निर्माण स्थल पर एक बड़ा हादसा हो गया । तमाम टीवी चैनलों ने दिन भर इस ख़बर की लाइव कवरेज दिखाई लेकिन किसी ने भी नक्सालियों के इस बर्बर करवाई की जिक्र तक नही की । संसद में मेट्रो और आम आदमी की सुरक्षा को लेकर दिन भर चर्चा होती रही । लेकिन इस शोर सराबे में पुलिस वालों की मौत कहीं गम सी गई । शहर और गाँव को लेकर यह अन्तर सिर्फ़ मीडिया में ही नही संसद में भी देखा जा सकता है ।
अक्सर यह तर्क दिया जाता है नक्साली पिछडेपन की कोख से निकले है । बन्दूक का जवाब बन्दूक से देने के बजाय निति निर्माताओं ने पिछडे इलाके में विकास की रफ़्तार तेज करने की सलाह दी । यानि बीमारी को पहचाने बगैर मरीज को अनाप सनाप दवा देकर सरकारी इंतजामिया ने कई इलाके को बीमारू बना दिया और नक्सालियो को मालामाल । जबकि नक्साली अपने हर साहित्य में इस बात का खुलासा करता रहा है कि उसका मकसद सिर्फ़ सत्ता पाना है ,उसे इस बात का पूरा यकीन है की सत्ता बन्दूक की नोक से ही निकलती है । यह संघर्ष उसका गरीबों और आदिवासियों को हक दिलाने से नही है बल्कि ये आदिवासी और पिछडे लोग उनके लिए महज सिर्फ़ सीढ़ी है जिसका इस्तेमाल नक्साली सिर्फ़ सत्ता पाने के लिए कर रहा है ।
सत्ता के दलालों और सरकारी ऑफिसरों ने जंगल से आदिवासियों को बेदखल किया ,उनके ही जंगल से उन्हें पत्ते चुनने के अधिकार से बंचित कर दिया । तो जाहिर है नक्साली उनके लिए देवदूत बनकर जंगल में आए और ठेकेदारों से उन्हें निजात दिलाई । ये अलग बात है कि उन तमाम ससाधनों पर नक्सालियों ने बाद में अपना कब्जा बना लिया । सिर्फ़ छत्तीसगढ़ में नक्साली इन जंगली इलाको से ३०० करोड़ रूपये से ज्यादा राजस्वा डकार जाते है । यह दवा मुख्यमंत्री रमन सिंह का है जिनकी सरकार ने इतना राजस्वा बस्तर रेजिओन में खोया है । अगर इस राजस्व में कोल और माइंस के क्षेत्रों में नक्सालियों की उगाही को शामिल करे तो नक्सालियों को प्रति वर्ष १२०० करोड़ रूपये से ज्यादा की आमदनी नक्सल प्रभावित इलाके से हो रही है । लेकिन सियासत ऐसी की लालगढ़ को नक्सालियों ने लिबरेटेड ज़ोन घोषित कर दिया लेकिन वामपंथी सरकार करवाई से बचती रही ,ताकि नक्सालियों का समर्थन एक मुस्त ममता बनर्जी को न मिल जाय । इस ऊहापोह में करवाई शुरू करने मे ही ६ महीने से ज्यादा वक्ता लगे । नक्सालियों को लेकर यही सियासत उड़ीसा में हो रही है यही सियासत झारखण्ड में हो रही ऐसी ही सियासत छत्तीसगढ़ और बिहार में हो रही थी । कुख्यात नक्सल कमांडर कामेश्वर बैठा झारखण्ड से सांसद चुनकर आए है । जाहिर है कल तक ये कमांडर विधायक ,सांसद बनाने की पहल करते थे । अब वे ख़ुद अपने लिए आजमा रहे है । मौजूदा दौर में समीकरण के जरिये सत्ता पाने की जुगाड़ दिल्ली से लेकर देहातों तक जारी है । नक्साली इस समीकरण को जानते है । नक्साली सत्ता पाने के लिए पैसे की अहमियत को जानते है । नक्साली प्रभावित इलाके में बगैर नक्सालियों को कट दिए कोई योजना लागू नही हो सकती । इस तरह सरकारी पैसा किसी न किसी बहाने नक्सालियों के पास पहुँच रहा है । और इस पैसे की ताक़त से नक्सालियों ने २२००० से ज्यादा लाल सेना तैयार कर ली है । इस लाल सेना की धार का अंदाजा इसी बात से लगा सकते है कि पिछले साल नक्साली करवाई में ७५० से ज्यादा लोग मारे गए । जबकि उसी साल आतंकवाद से प्रभावित जम्मू कश्मीर में महज १५० लोग हमलों के शिकार हुए थे । सरकार का दावा है कि जम्मू कश्मीर मे महज २०० से २५० आतंकवादी सक्रिय है ,लेकिन सरकार के तमाम संसाधन तमाम सिक्यूरिटी यहाँ व्यस्त है । जबकि नक्सालियों को मार भगाने की हमारी कोई तयारी नही है ,जबकि हम यह भूल जाते है जो आई एस आई कल जम्मू कश्मीर में जेहादियों को समर्थन दे रहा था आज वही आई एस आई नक्सालियों को चढा रही है ।
नक्सालियों को पहचाने से ज्यादा जरूरी है इनके लिबरेटेड ज़ोन से आम लोगों को आजाद कराना । ये मासूम लोग भारत के है इन्हे छत्तीसगढ़ ,झारखण्ड ,बंगाल की सियासत से अलग कर देखना होगा ।
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जनता तो गरीब की लुगाई है हर कोई खोले उसकी हयाई है