सेकुलर नरेन्द्र मोदी या एन जी ओ का खौफ
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नरेन्द्र भाई मोदी एक बार फ़िर चर्चा में है । चुनावी मौसम में नरेन्द्र मोदी की चर्चा भारतीय राजनीती का एक अपरिहार्य हिस्सा बन गई थी । नरेन्द्र मोदी को जी भर गरियाने के बाद ही कोई नेता सेकुलर होने का रुतबा पाता है .अगर उसने नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ की तो उसे कोम्मुनल माना जाता है लेकिन इस कोम्मुनल सेकुलर सियासी जुमले ने आखिरकार नरेन्द्र मोदी को भी पीछे मुड़कर देखने के लिए मजबूर कर दिया है । अहमदाबाद में पिछले साल नरेन्द्र मोदी के बुल्डोजेर सड़क के किनारे जहाँ तहा बने मंदिरों को धराशायी कर रहे थे , तब भी किसीने मोदी को सेकुलर नही कहा । हाँ मीडिया में यह ख़बर जरूर आई कि मोदी गांधीनगर इलाके में एन्क्रोअचमेंट ड्राइव चलाकर आडवानी जी की मुश्किलें बढ़ा रहे है । लेकिन इस बार मोदी ने जस्टिस बी जे सेठना के नेतृत्वा में एक कमीशन बैठा कर अपनी छवि से बाहर निकलने की कोशिश की है । यह कमीशन गुजरात में दंगों के बाद हुए सामाजिक और धार्मिक ध्रुवीकरण के कारणों का पता करेगा । पिछले वर्षों से मोदी गुजरात के निर्विरोध नेता रहे है । गुजरात और गुजरात से बाहर उन्हें हिंदू हिर्दय सम्राट कह कर हर चुनाव के मोके पर वोट बटोरने का सियासी खेल भी चलता रहा है , लेकिन ऐसा क्या हुआ कि मोदी को अब हिंदू हिर्दय सम्राट कहलाना अच्छा नही लग रहा है । मोदी यह जानते थे कि ज्यादा दिनों तक जज्वती भाषणों के जरिये वे गुजरात में सत्ता बरक़रार नही रख पाएंगे ,सो उन्होंने विकास को मुद्दा बनाया और दस वर्षों में गुजरात ने जो तरक्की की ऐसी तरक्की कई राज्य आज़ादी के साठ वर्ष बीत जाने के बाद भी नही कर सके। यानि मोदी को गुजरात में क्रांति पुरूष के रूप में पहचाना गया । वैसे भी किसी कारोबारी इलाके में जज्वात ज्यादा दिनों तक नही चलता ।जज्वती भाषणों से बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ही सत्ता पायी जा सकती है । अगर गुजरात दंगों का असर लोगों के दिलो दिमाग पर कायम होते तो कांग्रेस को हालिया लोक सभा चुनाव में ११ सीटें नही मिलती । रही बात धार्मिक ध्रुबिकरण की तो हर दंगा प्रभवित इलाके में इस अविश्वास की मोटी रेखा ने हिंदुस्तान में ही कई पाकिस्तान बना दिया है । गोधरा काण्ड से पहले भी गुजरात में ३० से ज्यादा सांप्रदायिक दंगे हुए । खास बात यह है कि इन दंगो के दौरान कांग्रेस की हुकूमत रही थी । तब भी समाज में हर जगह धार्मिक ध्रुबिकरण के रोग मौजूद थे । अहमदाबाद हो या बरोदा या गुजरात के दुसरे शहर हर जगह muslim और हिंदू आवादी अलग अलग हिस्सों में बटी थी कई जगह तो इन इलाकों में मोटी मोटी दीवारें उठा दी गई है । तो फ़िर इन वर्षों में इन दीवारों को गिराने की कोशिश क्यों नही हुई । यह एक बड़ा सवाल है कि इन दीवारों को गिराने का जिम्मा मोदी ने ही क्यों उठाया है ? muslim वोट को पोलारैज़ करने में लालू से लेकर मुलायम तक मायावती से लेकर सोनिया गाँधी तक हर ने अपने तरीके से वोट के फोर्मुले से सामाजिक ध्रुबिकरण पर जोर दिया है । लालू जी की जांच कमिटी ने गोधरा मामले मे एक अलग तरीके की जाँच प्रक्रिया को सामने लाकर कमीशन के अस्तित्वा पर ही सवालिया निशान लगा दिया था । लेकिन तब भी किसी ने सेकुलरवाद के इस नायब प्रयोग पर सवाल नही खड़ा किया था । तो क्या मोदी ने एन जी ओ के दुष्प्रचार अभियान के आगे हथियार डाल दिया है ?२००२ के बाद गुजरात दुनिया भर के एन जी ओ की प्रयोगस्थली बन गया । मानवाधिकार के मुद्दे पर कई दुकाने खुल गई । राहत शिविरों में लोगों को खाना पीना मिल रहा या नहीं इसकी सुध लेने वाला कम था , लेकिन बेस्ट बेकरी के मामले में असली नकली गबाहों को ढूंढने का सिलसिला चल पड़ा । जाहिरा शेख जैसी कई पीडितों को मीडिया के सामने लाया गया । टेलिविज़न के लिये दिल दहलाने वाली कहानियों का ताता लग गया । लेकिन क्लाइमेक्स आते आते कई स्टोरी के नायक और विलने बदल गए । सरकारी अमले मुकदमों से जुड़ी फाइलों को दिल्ली से लेकर मुंबई तक ढोते रहे । लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही साबित हुए । जाहिर है इन तमाम पहल में ईमानदारी से न्याय दिलाने की कोशिश कम थी सियासत ज्यादा थी । हाँ सर्बोच न्यालय की पहल पर कुछ उम्मीद जरूर दिखाई दी । लेकिन इन एन जी ओ ने अपना मकसद जरूर पुरा कर लिया । नरेन्द्र मोदी ने दो दो बार अमेरिका जाने की पुरी तयारी कर lee थी लेकिन अमेरिका ने उन्हें हर बार वीसा देने से मना कर दिया । जाहिर है गुजरात में मोदी ने भले ही विकास पुरूष का दर्जा पा लिया हो लेकिन गुजरात से बाहर उनकी छवि एक दंगाई या पक्षपात करने वाले शाषक के रूप मे ही स्थापित है । मोदी के राज मे दंगा पीडितों को न्याय नही मिला तो क्या किसी एन जी ओ ने आज तक यह सवाल उठाने की कोशिश की सेकुलर राज बिहार , महाराष्ट्र और दिल्ली में पीडितों को क्यों नही न्याय मिला । मोदी अपनी छवि से बाहर निकलना चाहते है । हिंदुस्तान की शानदार रिवायत ने उन्हें यह अहसास जरूर कराया है कि यहाँ दंगे जाती समूहों में होते रहे है यहाँ भाषा समूहों के बीच भी दंगे होते रहे है । यानि दंगा की पृष्ठभूमि भारत में धर्म से ज्यादा जाति या सामाजिक आधार में रही है । लेकिन हर बार वक्त के साथ घाव भरे है । फ़िर गुजरात में यह घाव क्यों नही भर रहे है , जाहिर है इसमें एन जी ओ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । मोदी जी ने आज जिस तत्परता से घाव पर मलहम लगाने की पहल की है ये पहल उन्हें २००२ में करना चाहिए था । पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी को जब राज धर्म की याद दिलाई थी तब मोदी सहित कई बीजेपी और संघ के लीडरों ने इसका उपहास किया था । मोदी में राष्ट्रीय लीडर होने की तमाम क्षमताये है लेकिन मोदी ने सेकुलर भारत की सोच को नजरंदाज कर दिया था । तब अगर बीजेपी बाजपाई की पहल को सर माथे लगाती तो २००४ में भी बीजेपी सत्ता में दुबारा लौटती और आज भी देश के सामने बड़ी सम्भावना बनती । लेकिन मोदी और बीजेपी ने पहले ही मौका खो दिया है । लेकिन बीजेपी में जारी आत्मचिंतन उसे राजधर्म को सही तरीके से पालन करने के लिए अग्रसर करता है तो इसे देर आयद दुरुस्त आयद जरूर कहा जा सकता है ।
नरेन्द्र भाई मोदी एक बार फ़िर चर्चा में है । चुनावी मौसम में नरेन्द्र मोदी की चर्चा भारतीय राजनीती का एक अपरिहार्य हिस्सा बन गई थी । नरेन्द्र मोदी को जी भर गरियाने के बाद ही कोई नेता सेकुलर होने का रुतबा पाता है .अगर उसने नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ की तो उसे कोम्मुनल माना जाता है लेकिन इस कोम्मुनल सेकुलर सियासी जुमले ने आखिरकार नरेन्द्र मोदी को भी पीछे मुड़कर देखने के लिए मजबूर कर दिया है । अहमदाबाद में पिछले साल नरेन्द्र मोदी के बुल्डोजेर सड़क के किनारे जहाँ तहा बने मंदिरों को धराशायी कर रहे थे , तब भी किसीने मोदी को सेकुलर नही कहा । हाँ मीडिया में यह ख़बर जरूर आई कि मोदी गांधीनगर इलाके में एन्क्रोअचमेंट ड्राइव चलाकर आडवानी जी की मुश्किलें बढ़ा रहे है । लेकिन इस बार मोदी ने जस्टिस बी जे सेठना के नेतृत्वा में एक कमीशन बैठा कर अपनी छवि से बाहर निकलने की कोशिश की है । यह कमीशन गुजरात में दंगों के बाद हुए सामाजिक और धार्मिक ध्रुवीकरण के कारणों का पता करेगा । पिछले वर्षों से मोदी गुजरात के निर्विरोध नेता रहे है । गुजरात और गुजरात से बाहर उन्हें हिंदू हिर्दय सम्राट कह कर हर चुनाव के मोके पर वोट बटोरने का सियासी खेल भी चलता रहा है , लेकिन ऐसा क्या हुआ कि मोदी को अब हिंदू हिर्दय सम्राट कहलाना अच्छा नही लग रहा है । मोदी यह जानते थे कि ज्यादा दिनों तक जज्वती भाषणों के जरिये वे गुजरात में सत्ता बरक़रार नही रख पाएंगे ,सो उन्होंने विकास को मुद्दा बनाया और दस वर्षों में गुजरात ने जो तरक्की की ऐसी तरक्की कई राज्य आज़ादी के साठ वर्ष बीत जाने के बाद भी नही कर सके। यानि मोदी को गुजरात में क्रांति पुरूष के रूप में पहचाना गया । वैसे भी किसी कारोबारी इलाके में जज्वात ज्यादा दिनों तक नही चलता ।जज्वती भाषणों से बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ही सत्ता पायी जा सकती है । अगर गुजरात दंगों का असर लोगों के दिलो दिमाग पर कायम होते तो कांग्रेस को हालिया लोक सभा चुनाव में ११ सीटें नही मिलती । रही बात धार्मिक ध्रुबिकरण की तो हर दंगा प्रभवित इलाके में इस अविश्वास की मोटी रेखा ने हिंदुस्तान में ही कई पाकिस्तान बना दिया है । गोधरा काण्ड से पहले भी गुजरात में ३० से ज्यादा सांप्रदायिक दंगे हुए । खास बात यह है कि इन दंगो के दौरान कांग्रेस की हुकूमत रही थी । तब भी समाज में हर जगह धार्मिक ध्रुबिकरण के रोग मौजूद थे । अहमदाबाद हो या बरोदा या गुजरात के दुसरे शहर हर जगह muslim और हिंदू आवादी अलग अलग हिस्सों में बटी थी कई जगह तो इन इलाकों में मोटी मोटी दीवारें उठा दी गई है । तो फ़िर इन वर्षों में इन दीवारों को गिराने की कोशिश क्यों नही हुई । यह एक बड़ा सवाल है कि इन दीवारों को गिराने का जिम्मा मोदी ने ही क्यों उठाया है ? muslim वोट को पोलारैज़ करने में लालू से लेकर मुलायम तक मायावती से लेकर सोनिया गाँधी तक हर ने अपने तरीके से वोट के फोर्मुले से सामाजिक ध्रुबिकरण पर जोर दिया है । लालू जी की जांच कमिटी ने गोधरा मामले मे एक अलग तरीके की जाँच प्रक्रिया को सामने लाकर कमीशन के अस्तित्वा पर ही सवालिया निशान लगा दिया था । लेकिन तब भी किसी ने सेकुलरवाद के इस नायब प्रयोग पर सवाल नही खड़ा किया था । तो क्या मोदी ने एन जी ओ के दुष्प्रचार अभियान के आगे हथियार डाल दिया है ?२००२ के बाद गुजरात दुनिया भर के एन जी ओ की प्रयोगस्थली बन गया । मानवाधिकार के मुद्दे पर कई दुकाने खुल गई । राहत शिविरों में लोगों को खाना पीना मिल रहा या नहीं इसकी सुध लेने वाला कम था , लेकिन बेस्ट बेकरी के मामले में असली नकली गबाहों को ढूंढने का सिलसिला चल पड़ा । जाहिरा शेख जैसी कई पीडितों को मीडिया के सामने लाया गया । टेलिविज़न के लिये दिल दहलाने वाली कहानियों का ताता लग गया । लेकिन क्लाइमेक्स आते आते कई स्टोरी के नायक और विलने बदल गए । सरकारी अमले मुकदमों से जुड़ी फाइलों को दिल्ली से लेकर मुंबई तक ढोते रहे । लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही साबित हुए । जाहिर है इन तमाम पहल में ईमानदारी से न्याय दिलाने की कोशिश कम थी सियासत ज्यादा थी । हाँ सर्बोच न्यालय की पहल पर कुछ उम्मीद जरूर दिखाई दी । लेकिन इन एन जी ओ ने अपना मकसद जरूर पुरा कर लिया । नरेन्द्र मोदी ने दो दो बार अमेरिका जाने की पुरी तयारी कर lee थी लेकिन अमेरिका ने उन्हें हर बार वीसा देने से मना कर दिया । जाहिर है गुजरात में मोदी ने भले ही विकास पुरूष का दर्जा पा लिया हो लेकिन गुजरात से बाहर उनकी छवि एक दंगाई या पक्षपात करने वाले शाषक के रूप मे ही स्थापित है । मोदी के राज मे दंगा पीडितों को न्याय नही मिला तो क्या किसी एन जी ओ ने आज तक यह सवाल उठाने की कोशिश की सेकुलर राज बिहार , महाराष्ट्र और दिल्ली में पीडितों को क्यों नही न्याय मिला । मोदी अपनी छवि से बाहर निकलना चाहते है । हिंदुस्तान की शानदार रिवायत ने उन्हें यह अहसास जरूर कराया है कि यहाँ दंगे जाती समूहों में होते रहे है यहाँ भाषा समूहों के बीच भी दंगे होते रहे है । यानि दंगा की पृष्ठभूमि भारत में धर्म से ज्यादा जाति या सामाजिक आधार में रही है । लेकिन हर बार वक्त के साथ घाव भरे है । फ़िर गुजरात में यह घाव क्यों नही भर रहे है , जाहिर है इसमें एन जी ओ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । मोदी जी ने आज जिस तत्परता से घाव पर मलहम लगाने की पहल की है ये पहल उन्हें २००२ में करना चाहिए था । पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी को जब राज धर्म की याद दिलाई थी तब मोदी सहित कई बीजेपी और संघ के लीडरों ने इसका उपहास किया था । मोदी में राष्ट्रीय लीडर होने की तमाम क्षमताये है लेकिन मोदी ने सेकुलर भारत की सोच को नजरंदाज कर दिया था । तब अगर बीजेपी बाजपाई की पहल को सर माथे लगाती तो २००४ में भी बीजेपी सत्ता में दुबारा लौटती और आज भी देश के सामने बड़ी सम्भावना बनती । लेकिन मोदी और बीजेपी ने पहले ही मौका खो दिया है । लेकिन बीजेपी में जारी आत्मचिंतन उसे राजधर्म को सही तरीके से पालन करने के लिए अग्रसर करता है तो इसे देर आयद दुरुस्त आयद जरूर कहा जा सकता है ।
टिप्पणियाँ
चलो ढूँढे नया कोई अमीर-ए-कारवाँ अपना.
(कुफ्र-ओ-ईमाँ - आस्तिकता और नास्तिकता, अमीर-ए-कारवाँ - नेतृत्व करने वाला)