तो क्या कश्मीर मसले का हल सिर्फ जनमतसंग्रह है ?

गृह मंत्री पी चिदम्बरम शायद कश्मीर को लेकर ज्यादा चिंतित है .उन्हें इस बात का अफ़सोस है कि २००४ मे जो नौजवान यहाँ आई आई टी और आई आई एम् के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे वही नौजवान आज कश्मीर की आज़ादी की मांग  कर रहे है .यह एक बड़ा सवाल है कि पिछले वर्षों मे जिन इलाकों मे लोगों ने भारी तादाद मे शिरकत करके भारत के लोकतंत्र मे अपनी आस्था जताई थी आज उन इलाकों मे लोगों का भरोसा अलगाववादियों ने जीत लिया है .कश्मीर पिछले ६० दिनों से बंद ,हड़ताल और कर्फु की चपेट मे पूरी तरह अस्त व्यस्त है लेकिन कही से उजाले की किरण नहीं दिखाई दे रही है .
पिछले जून महीने से अबतक कश्मीर मे ४० से ज्यादा नौजवान मारे गए है .सैकड़ो की तादाद मे लोग जख्मी हुए है . सरकार की ओर से यह दलील दी जा रही है १२०० से ज्यादा सुरक्षाबल घायल हुए है .यानि सरकार यह समझाने मे लगी है कि सुरक्षाबलों ने जब भी फायर खोला है वह उनकी मजबूरी रही है .सरकार की यह भी दलील है कि इन पत्थरबाजों के साथ आतंकवादी मिले हुए है .पत्थरबाजी की यह वारदात पाकिस्तान के इशारे पर हो रही है .अगर यह सब पाकिस्तान के इशारे पर हो रहा है तो फिर गृह मंत्री चिदम्बरम का यह अभियान कि वे

कश्मीरियों के दिल और दिमाग को दुबारा जीतेंगे शायद ही कामयाब हो . यानी मौजूदा हालत को समझे बिना एक बार फिर वही पुराने फोर्मुले दोहराने की कोशिश की जा रही है .आज चिदम्बरम कह रहे है कि अगर हालत मे सूधार हो तो वे आर्म्स फ़ोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट और फौज मे कटौती जैसे मसले की समीक्षा कर सकते है .चिदम्बरम पिछले एक वर्षों से यह लगातार कह रहे है कि कश्मीर का एक यूनिक प्रॉब्लम है जिसका यूनिक सोलुसन जरूरी है .शायद इसी सोच के बिना पर गृह मंत्री ने चुपचाप बातचीत की पहल शुरू की थी .लेकिन ऐसी बातचीत पहले भी  टीवी कैमरे की नजरो के बीच  हुई है लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला .नुकसान यह हुआ कि कश्मीर मे आज कोई बातचीत के लिए तैयार नहीं है .हुर्रियत का  एक ग्रुप भारत सरकार से चार रौंड की बातचीत कर चुका है लेकिन कभी भी उनकी मांग पर गौर नहीं किया गया .मिरवैज उमर फारूक केंद्र से यही मांग करते रहे हैं कि आर्म्स फ़ोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट की समीक्षा हो ,फौज मे कटोती का एलान हो . आज चिदम्बरम भी  वही बात कह रहे है जो हुर्रियत के कुछ लीडर कह रहे थे .अगर उनकी बात पर पहल होती तो शायद मिरवैज जैसे लीडर गृहमंत्री से बात करने के लिए आज  फ़ौरन हाज़िर होते .लेकिन आज मिरवैज जैसे उदारवादी हुर्रियत की कश्मीर मे कोई जगह नहीं है .आज एक अदना सा साबिक आतंकवादी मुशरत आलम कश्मीर मे अलगाववाद की आवाज़ बन गया है तो यह सवाल उठाना लाजिमी है कि पढ़े लिखे नौजवानों का यह अनपढ़ आतंकवादी लीडर कैसे बन गया ?

प्रधानमंत्री एक बार फिर कश्मीर मसले पर आल पार्टी मीटिंग कर रहे है लेकिन उन्हें शायद यह याद नहीं होगा कि मसले कश्मीर पर उन्होंने तीन बार रौंड टेबल कान्फेरेंस कर चुके है .आल पार्टी के उस चिंतन बैठकों से पांच वर्किंग ग्रुप भी बनाये थे .बुद्धिजीवियों के उन तमाम ग्रुपों ने अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौप दी .लेकिन उस पर कभी करवाई की चर्चा नहीं हुई .यानी जिस तरह अबतक कश्मीर पॅकेज के नाम पर करोडो अरबो बहाए गए उसी तरह वर्किंग ग्रुप का श्रम और पैसा पानी मे चला गया .यानी जो प्रयोग पिछले ६० साल से कश्मीर को लेकर चल रहे है वैसा ही प्रयोग आज भी जारी है .राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री उसी प्रयोग का एक हिस्सा है

याद कीजिये ओमर अब्दुल्ला का वह जोशीला भाषण । विश्वास प्रस्ताव पर संसद में महज दो मिनट के भाषण से वे मिडिया के हीरो बन गए थे ।अलगाववाद की भाषा बोलकर ओमर अब्दुल्ला ने कश्मीर में नौजवानों के बीच अपनी पहचान बनाई थी . उन्हें लोगों ने हाथो हाथ लिया था । कांग्रेस के आलाकमान इस भाषण से इतने प्रभावित हुए थे कि जब बारी मुख्यमंत्री चुनने की बारी आई तो उन्होंने सिर्फ़ ओमर अब्दुल्ला के लिए हामी भरी । लेकिन इस अब्दुल्ला ने जल्द ही सबको निराश किया । पिछले दिनों जब ओमर अब्दुल्ला घायलों को देखने कश्मीर के एक अस्पताल पहुंचे तो लोगों के गुस्से का आलम यह था कि कुछ लोग उनपर झपटने तक की कोशिश की थी
.
यही मुख्यमंत्री अगर ११ साल के तुफैल की मौत पर गम जताने अगर उसके घर गए होते दोषियों के खिलाफ  कारवाई की होती तो शायद कश्मीर ये आग नही भड़कती  और न ही बेवजह ४० नौजवानों की मौत होती .यानी संवेदनशील कश्मीर का ओमर अब्दुल्ला असंवेदनशील मुख्यमंत्री साबित हुए है
पिछले पाँच वर्षों में भारत सरकार ने  ६० हजार करोड़ से ज्यादा खर्च कश्मीर मे  शायद इस भ्रम में किया है कि विकास की रफ़्तार के सामने में अलगाववाद की आवाज धीमी पड़ जायेगी । लेकिन ऐसा नही हुआ । पैसे की बौछार से कश्मीर में रियल स्टेट में बूम है । कस्बाई इलाके में भी शोपिंग मौल खुल गए हैं । लेकिन जब भी कोई आग भड़कती है तो वादी में जीवे जीवे पाकिस्तान की आवाज सबसे ज्यादा गूंजती है.... । क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश कि क्या पैसा कश्मीर मसले का समाधान है ? भ्रष्टाचार के आकंठ मे  डुबे  कश्मीर के सियासतदान  कभी भी यह स्वीकार नही करते है कि लोगों का भरोसा उन्होंने खोया है बल्कि हर बार वे कश्मीर को एक अलग समस्या बताते हुए सारा ठीकरा केंद्र के सर फोड़ देता देता है  कलतक सोपोर मे केंद्रीय विश्विद्यालय की मांग करने वाले गिलानी साहब आज अगर दोबारा जनमतसंग्रह की मांग करने लगे है तो माना जायेगा कि कश्मीर मे अलगाववाद की सियासत को वहां की सरकारों ने जिन्दा रखी है .कश्मीर के लोग पाकिस्तान की हालत से भली भाति वाकिफ है सो वह गिलानी साहब के कहने से पाकिस्तान नही चले जायेंगे .उन्हें यह भी पता है अगर जनमतसंग्रह हुए भी तो उन्हें भारत और पाकिस्तान मे से किसी एक को चुनना होगा .आज़ादी का तीसरा विकल्प नही है .उन्हें यह भी पता है कि जनमत संग्रह कराने के लिए पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र की शर्तों को मानना होगा और उसे पाक अधिकृत कश्मीर से लेकर गिलगित बल्तिस्तान से अपने फौज हटाने होंगे और उन इलाकों को भारतीय फौज के हवाले करने होंगे .क्या पाकिस्तान कभी संयुक्त राष्ट्र की शर्तो को मानने के लिए तैयार होगा .क्या पाकिस्तान कभी भी इन इलाकों से पंजाब ,सिंध और पख्तून के लाखों लोगों को निकाल बाहर करेगा  .पाकिस्तान खुद संयुक्त राष्ट्र के पुराने प्रस्ताव को बीते दिनों की बात कह रहा है लेकिन कश्मीर मे अलगाववादी संयुक्त राष्ट्र की बात करते है .जाहिर है वे लोगों से झूठ बोल रहे है और उनका यह झूठ तबतक चलता रहेगा जबतक कश्मीर मे भ्रष्टाचार कायम रहेगा और राजगद्दी की वंश परंपरा चलती रहेगी .

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